अनुपालन का अर्थ तथा परिभाषाएँ
अनुपालन का अर्थ तथा परिभाषाएँ : ‘अनुपालन’ समाजशास्त्र की प्रमुख संकल्पना है। अनुपालन का अर्थ व्यक्तियों द्वारा समाज की मान्यताओं के अनुकूल व्यवहार करना है। इसकी विपरीत स्थिति को ‘विचलन’ कहते हैं जिसका अर्थ समाज के आदर्शों एवं मान्यताओं से हटकर व्यवहार करना है। यद्यपि समाज के अधिकांश व्यक्ति समाज की मान्यताओं एवं आदर्शों के अनुरूप व्यवहार करते हैं, तथापि प्रत्येक समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो कि समाज की मान्यताओं व आदर्शों से हटकर व्यवहार करते हैं। उनके इसी व्यवहार को विचलन कहा जाता है। इस अर्थ में ये दोनों संकल्पनाएँ एक-दूसरे के विपरीत हैं।
अनुपालन का अर्थ तथा परिभाषाएँ
प्रत्येक समाज में व्यवहार करने के कुछ आदर्श प्रतिमान होते हैं। जब बच्चा पैदा होता है तो उसे समाज में प्रचलित आदर्शो, मान्यताओं, मूल्यों, प्रथाओं, रूढ़ियों आदि का कोई ज्ञान नहीं होता। समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा समाज अपने सदस्यों को इनका ज्ञान प्रदान करता है। इसी प्रकार के माध्यम से व्यक्तेि उनका अपने व्यक्तित्व में आंतरीकरण कर लेते हैं और उन्हीं के अनुकूल व्यवहार करने लगते हैं। इसी को हम अनुपालन कहते हैं। अतः समाज द्वारा स्वीकृत आदर्श नियमों के अनुरूप व्यवहार करना ही अनुपालन है।
अनुपालन को विद्वानों ने निम्नवर्णित प्रकार से परिभाषित किया है-
- मर्टन (Merton) के अनुसार-“इस शब्द का सामान्य अर्थ यह है कि व्यक्ति जिस समूह का सदस्य है उसमें प्रचलित आदर्शों एवं प्रत्याशाओं के अनुरूप व्यवहार करें।
- जॉनसन (Johnson) के अनुसार-“अनुपालन वह क्रिया है जो (1) सामाजिक आदर्श या आदर्शों की ओर अभिमुख होती है और (2) सामाजिक आदर्श द्वारा स्वीकृत व्यवहार के अनुसार होती है। अन्य शब्दों में, अनुपालन केवल मान्य सामाजिक आदर्शों के अनुसार व्यवहार करना ही नहीं है। संबंधित आदर्श भी क्रिया करने वाले कर्ता की प्रेरणा के अंग हैं, चाहे वह अनिवार्य रूप से इनके बारे में एक समय विशेष पर अथवा सदैव जागरूक नहीं होता।”
- कुले (Cooley) के अनुसार-“अनुपालन एक समूह द्वारा निर्धारित प्रतिमानों को बनाए रखने ” का प्रयत्न है। यह क्रिया के स्वरूपों का एक स्वैच्छिक अनुकरण है।”
- थियोडोरसन एवं थियोडोरसन (Theodorson and Theodorson) के अनुसार “सामाजिक समूह की प्रत्याशाओं के अनुसार व्यवहार करना ही अनुपालन है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसी समाज के सदस्यों द्वारा स्वीकृत आदर्शो या प्रतिमानों के अनुसार व्यवहार करना ही अनुपालन है। वास्तव में, समाज के आदर्शों एवं मूल्यों में समाज या समूह की दबाव की शक्ति होती है जो व्यक्ति को इनके अनुसार व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है। समाजीकरण तथा सामाजिक नियंत्रण द्वारा व्यक्तियों के व्यवहार में अनुपालन लाने का प्रयास किया जाता है।
अनुपालन की विशेषताएँ
अनुपालन की संकल्पना को इसकी निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
- सामाजिक आदर्शों से संबंधित सामाजिक आदर्श, प्रथाएँ, रूढ़ियाँ जनरीतियाँ अथवा कानून वे मानदंड हैं जो व्यक्ति को समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं। अनुपालन का संबंध व्यवहार के इन्हीं मानदंडों से है क्योंकि इनके अनुसार व्यवहार करना ही अनुपालन कहलाता है।
- कर्तव्यों का ज्ञान–अनुपालन का संबंध कर्तव्यों के ज्ञान से हैं अर्थात् अनुपालन में व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह अपने कर्तव्यों व अधिकारों के अनुसार ही समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार करेगा।
- मूर्त क्रियाएँ-अनुपालन की दूसरी विशेषता यह है कि इसका संबंध मानदंडों के अनुरूप मूर्त क्रियाओं से है अर्थात् व्यक्ति की क्रियाओं से ही हम इस बात का पता लगा सकते हैं कि व्यक्ति में अनुपालन पाया जाता है अथवा नहीं।
- संगठन से संबंधित–अनुपालन का एक अन्य लक्षण यह है कि इससे किसी समाज में संगठन तथा व्यवस्था बनाए रखने में सहायता मिलती है। अगर किसी समाज के व्यक्ति मान्यताओं के अनुरूप व्यवहार नहीं करेंगे तो उस समाज में विघटन की स्थिति पैदा हो सकती है।
- मानदंडों में भिन्नता–अनुपालन की प्रकृति में भिन्नता पाई जाती है अर्थात् यह सभी समाजों के एक समान व्यवहार से संबंधित नहीं है। इसलिए इसके मानदंडों में भी भिन्नता पाई जाती है।
अनुपालन के प्रमुख कारण
प्रत्येक समाज यह, चाहता है कि उसके सभी सदस्य समाज द्वारा स्वीकृत आदर्शों के अनुसार ही व्यवहार करें ताकि इससे अनुपालन बना रहे और समाज में स्थायित्व व संगठन भी बना रहे। अतः प्रत्येक समाज अनेक ऐसे उपाय करता है जो अनुपालन को प्रोत्साहन दें तथा इसकी विपरीत स्थिति (अर्थात् विचलन) पर अंकुश लगाए रखें। अनुपालन को बनाए रखने में सहायक प्रमुख कारण अग्रांकित हैं–
- समाजीकरण-अनुपालन में सहायक सर्वप्रथम कारण समाजीकरण की प्रक्रिया है। इसी प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति में सामाजिक आदशों व मानदंडों के अनुरूप व्यवहार करने का ज्ञान प्रदान किया जाता है। वास्तव में समाजीकरण द्वारा ही सामाजिक आदर्शों व प्रतिमानों का आंतरीकरण होता है और वे व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं।
- पद-सोपान–पद-सोपान भी व्यक्ति के व्यवहार में अनुपालन लाता है। इससे हमें यह पता चलता है कि सामाजिक आदर्शों में किस प्रकार का क्रम पाया जाता है और अगर एक व्यक्ति किसी परिस्थिति में एक आदर्श के अनुरूप व्यवहार नहीं कर पाए तो उसे उसके बाद किस आदर्श को मानना होता। आदर्शों के विकल्पों में पदे-सोपान पाया जाता है।
- आवश्यकताओं की पूर्ति-व्यक्तियों के अनुपालन का एक अन्य कारण आवश्यकताओं की पूर्ति भी है। अनुपालन से जिन आवश्यकताओं की पूर्ति होती है वह विचलन से नहीं हो सकती और अगर होती भी है तो वह समाज द्वारा स्वीकृत नहीं होती।
- समूह का दबाव-समूह के दबाव के कारण भी व्यक्तियों में अनुपालन अधिक पाया जाता है। अगर व्यक्ति को यह अनुभव होता है कि सामूहिक मान्यताओं का उल्लंघन करने पर उसे समूह द्वारा दंड दिया जाएगा तो वह मान्यताओं व आदर्शों के अनुरूप ही व्यवहार करने का प्रयास करता है।
- विचारधारा–विचारधारा व्यक्तियों के व्यवहार में अनुपालन बनाए रखने में सहायता प्रदान करती है। अगर समाज में प्रचलित विचारधाराएँ सामाजिक आदर्शों व मूल्यों का ही समर्थन करने वाली हैं तो व्यक्तियों के व्यवहार में अनुपालन की संभावना अधिक होती है।
- निहित स्वार्थ-व्यक्ति निहित स्वार्थों के कारण भी सामाजिक आदर्शों का अनुकरण करता है। ताकि उसे इनसे सामाजिक सुरक्षा मिलती रहे। अनुपालन के कारण ही समाज व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा करते हैं।
- सामाजिक नियंत्रण-जो व्यक्ति समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा आदर्शों के अनुरूप व्यवहार करना नहीं सीखते और इनके विरुद्ध व्यवहार करते हैं, उन पर समाज राज्य व कानून द्वारा नियंत्रण रखता है तथा उनके द्वारा बलपूर्वक उन्हें सामाजिक आदर्शों के अनुकूल व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।
- विसंवाहन–विसंवाहन का संबंध व्यक्तियों द्वारा विभिन्न भूमिकाओं के संपादन से है। व्यक्ति को अनेक भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं और कई बार कुछ भूमिकाएँ परस्पर विरोधी भी होती हैं। विसंवाहन द्वारा व्यक्ति अपनी भूमिकाओं को इस प्रकार से निभाता है कि उसके व्यवहार में अनुपालन बना रहता है।
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