अशोक का धम्म ( Ashoka’s Dhamma )
अशोक का धम्म ( Ashoka’s Dhamma ) : अशोक का निजी धर्म तो बौद्ध था, परन्तु जो लोग बौद्ध धर्म का अनुकरण नहीं कर सकते थे, उनके लिए एक नए धर्म का आविष्कार किया। महान अशोक अपनी प्रजा के भविष्य का भी सुधार करना चाहता था। उसने कुछ नैतिक नियमों का संग्रह किया। इस संग्रह में उसने बौद्ध धर्म के साथ-साथ हिन्दू धर्म व जैन धर्म के कुछ सिद्धान्तों का मिश्रण कर दिया। इसे अशोक का ‘धम्म’ अथवा ‘पवित्रता का नियम’ कहा जाता है।
अशोक का धम्म ( Ashoka’s Dhamma )
जिस प्रकार एक पिता अपने पुत्र को अथवा अध्यापक अपने विद्यार्थियों को छोटी-छोटी बातें बताते हैं, उसी प्रकार अशोक के ‘धम्म’ में साधारण बातें थीं। इस ‘धम्म’ का उद्देश्य अधिक-से-अधिक लोगों की अधिक-से-अधिक भलाई करना था ।
कुछ इतिहासकार इस ‘धम्म’ को अशोक का राजधर्म मानते हैं, जिससे राजा के कर्त्तव्यों का ज्ञान हो सके, परन्तु यह मान्य नहीं है। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार अशोक के ‘धम्म’ का स्रोत तथा आधार बौद्ध धर्म ही था। परन्तु यह मत भी सत्य दिखाई नहीं देता। अशोक का ‘धम्म’ तो सभी धर्मों का सार था। यह अशोक का अपना आविष्कार था। यह राजा की ओर से लोगों के लिए व्यावहारिक तथा सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत करने और
नैतिकता का पालन करने का आदेश था।
अशोक के धम्म के विषय में डॉ० रोमिला थापर (Dr. Romila Thapar) तथा डॉ० आर० के० मुखर्जी (Dr. R.K. Mukherjee) का कहना है, “अशोक ने सार्वभौमिक धर्म की नींव रखी और ऐसा कार्य करने वाला सम्भवतः वह पहला व्यक्ति था।”
‘धम्म’ (धर्म) के सिद्धान्त या शिक्षाएँ (Main Principles of Dhamma)
अशोक के ‘धम्म’ के मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार से थे —
(1) बड़ों का आदर (Respect of Elders) — एक लघु शिलालेख में लिखा है कि माता-पिता और गुरुओं का आदर करना चाहिए। छोटों को बड़ों के प्रति श्रद्धा और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए।
(2) छोटों के प्रति प्रेम (Love and Affection to the Youngers) — बड़ों को छोटों के प्रति प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए । यही नहीं स्वामी को सेवकों के साथ प्रेम का व्यवहार करना चाहिए। दासों और नौकरों के प्रति ‘धम्म’ में उदार व्यवहार करने का आदेश दिया गया है।
(3) सत्य (Truthfulness) — मनुष्य को सत्य-भाषी होना चाहिए। झूठा व्यक्ति कायर होता है और वह मोक्ष का अधिकारी नहीं हो सकता।
(4) अहिंसा (Non-violence) — अहिंसा ‘धम्म’ का मूल मन्त्र है। किसी भी जीव को मन, वचन तथा कर्म से कष्ट नहीं देना चाहिए। अशोक ने स्वयं भी माँस-भक्षण और शिकार करना छोड़ दिया था। सम्राट् अशोक ने कुछ दिनों के लिए पशु-वध भी निषेध कर दिया था। कुछ पशु-पक्षियों की हत्या दण्डनीय अपराध था।
(5) दान (Charity) — दान देने का सिद्धान्त भी बहुत महत्वपूर्ण था। विद्वानों को विचारों अथवा शिक्षा का दान देना चाहिए। यह दान सोने-चाँदी के दान से कहीं अच्छा है।
(6) पाप-रहित जीवन (Sinless Life) — मनुष्य को पाप के मार्ग से दूर रहना चाहिए। ईर्ष्या, क्रोध, अत्याचार, झूठ आदि पापों से बचना चाहिए।
(7) धार्मिक सहनशीलता (Religious Toleration) — इसके अनुसार मानव को सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। प्रत्येक धर्म में कुछ-न-कुछ गुण होते हैं। अशोक का स्पष्ट आदेश था कि सभी धर्म फलें-फूलें, कोई धर्म अन्य धर्म की निन्दा न करे।
(8) खोखले रीति-रिवाजों का त्याग ( Renunciation of False Customs and Ceremonies) — धम्म के अनुसार जन्म-मृत्यु , विवाह, रोग तथा तन्त्र-मन्त्र सम्बन्धी रीति-रिवाज़ खोखले हैं, इनको त्याग देना चाहिए। दान, दया, सहानुभूति और सदाचारी जीवन ही सच्चे रीति-रिवाज़ हैं, अतः मनुष्य को इन्हें ही स्वीकार करना चाहिए।
(9) आत्म-परीक्षण (Self-Analysis) — मानव को अपनी परीक्षा स्वयं करनी चाहिए। केवल ऐसा करने से ही बुरी आदतें समाप्त हो सकती हैं।
(10) मोक्ष (Salvation) — हर किसी को मोक्ष प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। अच्छे कर्म करने से मनुष्य के परलोक का सुधार हो सकता है। अपने शिलालेख में अशोक ने कहा है कि मेरे ये सभी प्रयास परलोक के लिए हैं।
यह धर्म पूर्ण रूप से न तो हिन्दू धर्म था और न ही जैन धर्म। इसे बौद्ध धर्म भी नहीं परन्तु यह कोई नया धर्म भी नहीं था। यह तो सभी प्रचलित धर्मों के नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह था। इसे सामाजिक सदाचार के नियमों का संग्रह भी कहा गया है। इसका धर्म और धर्मशास्त्र से बहुत कम सम्बन्ध था। यह भी कहा गया है कि अशोक ने बौद्ध धर्म का नहीं, अपितु अच्छी नागरिकता के गुणों का प्रचार किया।
‘धम्म’ का प्रचार ( Promotion of Dhamma )
अशोक ने देश के कोने-कोने में ‘धम्म’ का प्रचार किया और इसे लोगों तक पहुँचाने का क्रियात्मक कार्य किया। धर्म-प्रचार के लिए सम्राट अशोक द्वारा किये गए प्रमुख प्रयास निम्नलिखित थे —
(1) अशोक ने व्यक्तिगत उदाहरण देकर लोगों को प्रेरित किया। उसने माँस खाना, शिकार खेलना आदि छोड़ दिया और धार्मिक सहनशीलता की नीति को अपनाया।
(2) इस ‘धम्म’ के सिद्धान्तों को शिलालेखों एवं स्तम्भ-लेखों पर खुदवाया। अनपढ़ लोगों को ये सिद्धान्त ऊँचा पढ़-पढ़कर सुनाए जाते थे।
(3) अशोक ने स्वयं यात्राएँ कीं । परिणामस्वारूप ‘धम्म’ का प्रचार शीघ्र हो गया।
(4) अशोक ने ‘धम्म’ के प्रचार के लिए धर्म महामात्रों की नियुक्ति की। इन अधिकारियों ने जनता को ‘धम्म’ के सिद्धान्त बताए और लोगों को इसके सिद्धान्त व्यावहारिक रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया।
धम्म के प्रभाव ( Effects Of Dhamma )
अशोक के धम्म के निम्नलिखित प्रभाव पड़े —
(1) क्योंकि अशोक का धम्म कोई अलग धर्म न होकर विभिन्न धर्मों की अच्छी बातों का संग्रह था, अतः सभी धर्मों के लोगों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया । इससे धार्मिक सद्भाव में वृद्धि हुई तथा सामाजिक एकता सुदृढ़ हुई ।
(2) अशोक के व्यक्तिगत जीवन पर धम्म का गहरा प्रभाव पड़ा । उसने दिग्विजय के स्थान पर धर्म विजय के रास्ते को अपनाया । वह स्वयं सदाचारी बन गया तथा अपनी प्रजा के जीवन को सुखमय बनाना उसके जीवन का ध्येय बन गया ।
(3) अशोक ने अपने अधिकारियों को भी सदाचारी बनने को कहा । अधिकारियों का सदाचारी होना उनकी प्रमुख योग्यता बन गई । सत्यनिष्ठ, ईमानदार और सदाचारी अधिकारी जनता के कल्याण के लिए प्रयास करने लगे । जनता का जीवन सुख-समृद्धि से भर गया ।
(4) अपराध कम हो गए । ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का अनुसरण कर प्रजा भी नैतिक गुणों से युक्त हो गई ।
(5) अशोक के सम्मान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई । उसे एक साथ महान सम्राट और महान संन्यासी के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ ।
(6) विदेशों में भी धम्म का प्राचार किया गया । इसके लिए धर्म-प्रचारक विदेशों में भेजे गए। इससे विदेशों में भारतीय धर्म और संस्कृति के प्राचार हुआ। विदेशों में भी अशोक की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई ।
निष्कर्ष
अतः स्पष्ट है कि अशोक का धर्म बौद्ध धर्म से प्रेरित अवश्य था और इसकी अधिकांश शिक्षाएँ बौद्ध धर्म से ही ली गई थी परन्तु इसमें हिन्दू तथा जैन धर्म की अच्छी बातों को भी शामिल किया गया था । वास्तव में यह सम्राट अशोक का एक मौलिक प्रयास था जिसका मुख्य उद्देश्य अपनी प्रजा का नैतिक उत्थान करना था । परन्तु धीरे-धीरे यह बौद्ध धर्म में ही जाकर मिल गया । विशेषत: विदेशों में अशोक का धम्म बौद्ध धर्म के रूप में स्वीकार किया गया । लेकिन इससे धम्म का महत्त्व कम नहीं होता । चाहे इसे धम्म माना जाये या बौद्ध धर्म ; लेकिन अच्छे उद्देश्य से अशोक द्वारा किये गए धार्मिक प्रयासों का प्रजा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा ; यही अशोक की धार्मिक नीति की सफलता कही जा सकती है ।
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