उरण् रपरः १।१।५१॥
ऋ के स्थान पर जो अणु (अ इ उ) होता है वह र परक होता है। ऋ 30 प्रकार की होती हैं, 18 प्रकार की ऋ तथा 12 प्रकार की लू सम्मिलित हैं।
उरण् रपरः सूत्रच्छेदः
उः अण् रपरः
सूत्रार्थ
- उः – ऋ का
- अण् – अ इ उ
- रपर – र से पर
अगर ऋ का अण्
तो वह र पर होता है।
सरल अर्थ
ऋ लृ का अण्
र् ल्
देवर्षिः – देव + ऋषिः
- देव + ऋषिः
- दे (व + ऋ) षिः
- दे (व् + अ + ऋ) षिः …. आद्गुणः।
- दे (व् + अ) षिः …. उरण् रपरः।
- दे (व् + अर्) षिः
- दे (वर्) षिः
- देवर्षिः
महा + ऋषिः – महर्षिः
- महा + ऋषिः
- म (ह् + आ + ऋ) षिः …. आद्गुणः।
- म (ह् + गुणः) षिः …. अदेङ्गुणः।
- म (ह् + अ/ए/ओ) षिः …. स्थानेऽन्तरतमः।
- म (ह् + अ) षिः …. उरण् रपरः।
- म {ह् + अ(र्/ल्)} षिः …. स्थानेऽन्तरतमः।
- म (ह् + अर्) षिः
- म (हर्) षिः
- महर्षिः
उरण रपरः 1/1/51॥
ऋ के स्थान पर जो अणु (अ इ उ) होता है वह र परक होता है। ऋ 30 प्रकार की होती हैं जिनमें 18 प्रकार की ऋ तथा 12 प्रकार की लू सम्मिलित हैं। र प्रत्याहार में भी र और लु सम्मिलित है। अतः स्पष्ट है कि किसी सूत्र से जब ऋ अथवा ल् के स्थान पर अ इ उ आदेश होता है वह क्रमशः अर् और अल् होता है अर्थात् ऋ के स्थान पर अर् और लू के स्थान पर अल् होगा। ऋ वर्ण लू का बोधक होता है। जैसे- आद्गुणः में ऋ के स्थान पर यदि अ होगा तो वह रपरक अर्थात् अर् होगा। जैसे-
कृष्णद्धि- कृष्ण + ऋद्धिः > कृष्ण अ + ऋ द्धिः-कृष्ण अ द्धिः तथा उरण रपर:’ से र् परक होकर कृष्ण् अर् द्धिः तथा सु होकर कृष्णद्धिः शब्द सिद्ध होता है।
तवल्कार– तव + लृकार: > तव् अ + लू कारः–तव् अ कारः तथा ‘उरण रपरः’ से र परक ‘स्थानेऽन्तरतमः’ से लु परक होकर तथा सु होकर तव् अल्कारः = तवल्कारः शब्द सिद्ध होता है।
उरण रपरः 1/1/51॥ सम्बंधित कुछ और उदहारण
गजेन्द्र- गज + इन्द्रः > गज् अ + इ न्द्रः > गज् ए न्द्रः > गजेन्द्र सु होकर गजेन्द्रः।।
परीक्षोत्सव- परीक्षा + उत्सवः > परीक्ष् आ + उत्सव > परीक्ष ओ त्सव = परीक्षोत्सव + सु = परीक्षोत्सवः।
गणेश– गण + ईशः > गण् अ + ई शः > गण ए शः > गणेश + सु = गणेशः
रमेश- रमा + ईशः > रम् आ + ई श: > रम् ए शः > रमेशः। तथेति-तथा + इति > तथ् आ + इ ति > तथ् ए ति > तथेति।
वसन्तर्तु- वसन्त + ऋतु > वसन्त् अ + ऋ तु–वसन्त अ तु ‘उरण रपर:’ से रपरक होकर वसन्त् अर् तु तथा से होकर
वसन्तर्तु- शब्द सिद्ध हुआ।
देवर्षि- देव + ऋषिः > देव् अ + ऋ षि-देव् अ षि तथा ‘उरण रपरः’ से रपरक होकर देव् अर् षि तथा सु होकर
देवर्षि- शब्द सिद्ध होता है।
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