फ्रांस की क्रान्ति के कारण – राजनीतिक, सामाजिक, तथा आर्थिक
फ्रांस की क्रान्ति के कारण :क्रान्तियों की श्रृंखला में फ्रांस की क्रान्ति प्रथम नहीं थी परन्तु प्रभावों की दृष्टि से यह अति महत्त्वपूर्ण थी।
“एक बुरी राजनीतिक व्यवस्था, समाज का अन्यायपूर्ण विभाजन, करों की अनुचित प्रणाली, लुई सोलहवें तथा उसकी रानी मेरी आन्तोआन्त का व्यक्तिगत चरित्र तथा दार्शनिकों की भूमिका फ्रांस की क्रान्ति के लिए उत्तरदायी थे।” –मेडलिन
फ्रांस की क्रांति कब हुई ?
क्रान्तियों की श्रृंखला में फ्रांस की क्रान्ति प्रथम नहीं थी परन्तु प्रभावों की दृष्टि से यह अति महत्त्वपूर्ण थी। 1789 ई० में फ्रांस में क्रान्ति हुई। अठारहवीं शताब्दी में फ्रांस व्यवसाय और व्यापार की दृष्टि से उन्नतिशील देश था। उत्तरी अमेरिका का विशाल भू-भाग उसके पास था। औद्योगिक उत्पादन तथा विदेशी व्यापार में भी फ्रांस यूरोप से आगे था। साहित्य और कला के क्षेत्र में भी विकसित था। इतना सब होते हुए भी फ्रांस में क्रान्ति हुई। इसका मुख्य कारण साधारण वर्ग की दशा का अत्यधिक शोचनीय होना था। साथ ही राजाओं की निरंकुशता, उनकी अयोग्यता एवं शासन सम्बन्धी विभिन्न अनियमितताएँ भी जन आक्रोश का कारण थीं। तात्कालिक असंतोष को समझने के लिए निम्नलिखित विचार करें-
“एक बार जब फ्रांस के राजा और रानी की सवारी के पीछे भूखी-नंगी जनता रोटी-रोटी (ब्रेड) के नारे लगाते हुए दौड़ रही थी, तो परिस्थितियों से अनभिज्ञ रानी ने कहा, ‘रोटी नहीं मिलती तो केक क्यों नहीं खा लेते।’ जिस देश के राजा-रानी का वहाँ की जनता से सम्पर्क न हो, राजा अपनी जनता की वास्तविक स्थिति को जानता न हो, जिस देश की जनता भूखी हो; उस देश की जनता में असंतोष का होना स्वाभाविक है।’ यही असंतोष क्रान्ति का मूल कारण बना।
फ्रांस की राजनीतिक क्रान्ति के कारण
फ्रांस में 1789 ई. में जो क्रान्ति हुई उसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(1) राजनीतिक कारण –
फ्रांस की राज्य क्रान्ति के नेता सम्राट की सत्ता समाप्त नहीं करना चाहते थे। वे केवल राजा की निरंकुशता को सीमित करना चाहते थे, परन्तु तत्कालीन सम्राट् लुई सोलहवें के मूर्खतापूर्ण कार्यों के कारण क्रान्ति हुई। फ्रांस में स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश शासन था। वहाँ का शासक कार्यकारिणी, विधायिनी तथा न्यायिक सभी शक्तियों का स्रोत था। वह राज्य के सभी अधिकारियों की नियुक्ति करता था तथा जिसे चाहता था, उसे पद से हटा देता था । उसकी इच्छा ही कानून थी । लोगों का कर्तव्य अपने राजा की आज्ञा का पालन करना था । न्याय के मामले में उसका निर्णय अन्तिम माना जाता था ।
वह जिसे चाहता दण्ड दे सकता था। इसके अलावा फ्रांस के लोगों को भाषण, लेखन तथा विचार व्यक्त करने की स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं थी । राजा जिस व्यक्ति को चाहता था, बन्दी बना सकता था और बिना मुकदमा चलाए मनचाही सजा दे सकता था। इस प्रकार राज्य की सारी शक्ति राजा के हाथ में केन्द्रित थी तथा वह निरंकुश रूप से जनता पर शासन कर रहा था। यही कारण था कि फ्रांस के शासकों ने इस्टेट जनरल की एक भी बैठक नहीं बुलाई। इसलिए फ्रांस की जनता में निरंकुश शासन के विरुद्ध असन्तोष व्याप्त था।
फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन से स्पष्ट है कि क्रान्ति से पूर्व सम्पूर्ण फ्रांस में अराजकता तथा अव्यवस्था व्याप्त थी। ऐसी स्थिति में जनता के सामने क्रान्ति के सिवाय और कोई विकल्प नहीं था।
(2) सामाजिक कारण –
फ्रांस की सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त असन्तोष भी क्रान्ति का महत्वपूर्ण कारण था। 1789 ई. में क्रान्ति स्वेच्छाचारी तथा दमनपूर्ण शासन प्रणाली के विरुद्ध युद्ध होने की अपेक्षा फ्रांसीसी समाज की असमानता के विरुद्ध एक महान् संघर्ष था। फ्रांस की पुरातन व्यवस्था के अन्तर्गत समाज चार वर्गों में विभाजित था। ये वर्ग थे-
(1) पादरी वर्ग, (2) कुलीन वर्ग, (3) साधारण वर्ग, (4) मध्यम वर्ग ।
क) पादरी वर्ग-
इस वर्ग में पादरी या धर्माधिकारी लोग आते थे। इन लोगों का समाज पर बहुत अधिक प्रभाव था। इस वर्ग के लोगों को विशेष सुविधाएँ या विशेषाधिकार प्राप्त थे। धर्माधिकारी किसी भी व्यक्ति को चर्च से निकाल सकते थे। ऐसे व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कृत व्यक्ति समझा जाता था। पादरी अपार धन-सम्पत्ति के स्वामी थे और फ्रांस की विशाल भूमि पर उनका अधिकार था। जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों को सम्पादित करवाने का कार्य पादरियों के हाथ में था। परन्तु वे अपने धार्मिक कर्तव्यों को भुलाकर विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। उनका नैतिक पतन हो चुका था। अतः धर्म-सुधार आन्दोलन शुरू हुआ।
(ख) कुलीन वर्ग –
फ्रांस में दूसरा वर्ग कुलीनों का था जिन्हें कई प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे । इस वर्ग में सामंत, राजदरबारी तथा बड़े-बड़े अधिकारी आते थे। फ्रांस की सारी भूमि के एक-चौथाई भाग पर कुलीन वर्ग का अधिकार था, जिसके सहारे वे विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। सामन्तों के दो वर्ग थे – प्रथम सैनिकों का वर्ग तथा द्वितीय न्यायाधीशों का वर्ग। प्रथम वर्ग के लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी फ्रांस के राजाओं की सेवा करते आए थे।
द्वितीय वर्ग के लोग अपने न्यायिक पदों के कारण कुलीन वर्ग के सदस्य बन गए थे। ये सभी लोग राजा की चापलूसी करते थे तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करते थे । किसानों को इन सामन्तों की भूमि जोतनी पड़ती थी। फसल काटकर उनकी गढ़ी (टोली) तक पहुँचानी पड़ती थी। जागीर में आने वाले माल से सामन्त लोग कर वसूल करते थे। सामन्त कदम-कदम पर साधारण जनता का अपमान करते थे।
(ग) साधारण कृषक व मजदूर वर्ग
तीसरा वर्ग साधारण व्यक्तियों का था। इस वर्ग के लोग सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित थे। इसलिए इनकी दशा बहुत शोचनीय थी। तीसरे वर्ग में किसान, मजदूर, शिल्पकार आदि थे। सामन्त तथा पादरी किसानों तथा मजदूरों का शोषण करते थे। इसलिए किसानों की दशा दयनीय थी। उन्हें चर्च तथा जागीरदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे। इस प्रकार एक किसान अपनी आय का 80% भाग करों के रूप में चुका देता था और शेष 20% से वह बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा चला पाता था। यही कारण है कि क्रान्ति के समय किसानों ने कुलीन वर्ग का सफाया करने में अपना पूरा सहयोग दिया।
(घ) मध्यम वर्ग
फ्रांस में मध्यम वर्ग के लोग भी साधारण वर्ग के लोग माने जाते थे। इस वर्ग को बुर्जुआ वर्ग कहा जाता था । ये लोग शिक्षक तथा बुद्धिमान थे। समाज में उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी। लेखक, कलाकार, वकील, डॉक्टर, व्यापारी, अध्यापक, साहित्यकार, व्यवसायी, साहूकार, कारखानों के मालिक आदि मध्यम वर्ग में आते थे। इन लोगों के पास धन की कमी नहीं थी लेकिन उन्हें कुलीनों के समान सामाजिक सम्मान प्राप्त नहीं था तथा वे राजनीतिक अधिकारों से भी वंचित थे।
(3) आर्थिक कारण
क्रान्ति के समय फ्रांस की आर्थिक दशा बहुत दयनीय थी। लुई 14 वें ने फ्रांस के अनेक युद्धों में भाग लिया था जिससे राज्य का कोष रिक्त हो गया था। इसके अलावा लुई ने अपनी विलासिता पर पानी की तरह पैसा बहाकर देश की आर्थिक दशा को और अधिक दयनीय बना दिया था। लुई 15वें ने आर्थिक दशा में सुधार करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया । उसके समय में भी फ्रांस ने कई युद्धों में भाग लिया, जिन पर अपार धन खर्च हुआ। क्रान्ति से पूर्व फ्रांस की सम्पत्ति कुलीन वर्ग के हाथ में थी। साधारण वर्ग के व्यक्तियों के पास भूमि नहीं के बराबर थी। उनके साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जाता था।
लुई 16वें के समय फ्रांस आर्थिक दृष्टि से दिवालिया हो चुका था । इसका प्रमुख कारण यह था कि फ्रांस के शासक तथा सामन्त विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। लुई चौदहवें ने वर्साय का शीशमहल बनवाकर सरकारी खजाना खाली कर दिया था तथा कर्ज का भार भी बढ़ा दिया था। इस प्रकार एक तरफ राजकोष खाली था तो दूसरी तरफ फ्रांस के शासक भोग-विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। इसके लिए वे जनता से तरह- तरह के कर वसूल करते थे । सम्राटों की इस नीति के विरुद्ध जनता में भयंकर असन्तोष था।
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