भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ
भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ : हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बांटा गया है-आदिकाल, भक्ति काल, रीतिकाल, आधुनिक काल, भक्ति काल की निम्नलिखित प्रवृतियां हैै
भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ
हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बांटा गया है
आदिकाल
भक्ति काल
रीतिकाल
आधुनिक काल
भक्ति काल की निम्नलिखित प्रवृतियां हैै
(1) नाम का महत्व:-
जप भजन, कृतन आदि के रूप में भगवान के नाम के महता संतो, सूफियों और भक्तों ने स्वीकार की है, कभी कहते हैं:-“सभी रसायन हम करें, नहीं नाम सम कोई” सूफियों और कृष्णा भक्तों ने कीर्तन को बहुत महत्व नदिया है। सूरदास कहते हैं:-“भरोसो नाम को भारी।”तुलसी की तो धारना ही है कि उनके सर्वसंबंध राम का नाम महिमा का वर्णन ठीक से नहीं कर सकते।
(2) गुरु की महत्ता :-
ईश्वर अनुभवग्मय है। उसका अनुभव गुरु ही करा सकता है। इसलिए सभी भक्तों गुरु महिमा का गान किया है। कबीर ने कहा है:-“गुरु बड़े गोविंद के मन में देख विचार”, इसी प्रकार सूरदास, तुलसीदास ने भी गुरु की महिमा की है।
(3) भक्तिभावना की प्रधानता:-
भक्ति भावना की प्रधानता को भक्ति काल के सभी शाखाओं के कवियों ने स्वीकार किया है। कबीर कहते है:- “हरीभक्ति जाने बिना बड़ि मूआ संसार”सूफियों ने प्रेम को ही भक्ति का रूप माना है। सूरदास की गोपिया भक्ति की प्रशंसा करते हुए उधर से कहती है-“भक्ति विरोधी जान तिहारों।” तुलसीदास ने भक्ति को जान से भी बढ़कर माना है।
(4) व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता:-
भक्ति काल के कवियों की रचनाओं में उनके व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता है। इस काल के प्राय: सभी कवि तीर्थ यात्रा या सत्संग कमना से प्रेरित हो देश भ्रमण करने वाले थे। कबीर कहते है:-“पेड़ गुने मत्ति होई मै सांझे पाया सोई” सूरदास के सूरसागर में व्यक्तिगत अनुभव की प्रधानता दी गई है। तुलसीदास पढ़े लिखे होने पर भी पुस्तक ज्ञान को महत्व नहीं देते। वे प्रेम और व्यक्तिगत साधना कोई प्रधानता देते है।
(5) अंह भाव का अभाव:-
मनुष्य के अंह भाव का जब तक विनाश नहीं होता तब तक वह भगवत प्राप्ति एवं मोक्ष से बहुत दूर रहता है। दीनता का आश्रय लेकर अन्य भाव से भगवान के शरण में जाने का उपदेश सभी भक्तों ने दिया है।
(6) साधु संगति का महत्व:-
शातसंग का गुणगान सभी शाखाओं के कवियों ने किया है। कबीर का कथन है- “कबीर संगति साधु की हरे और की व्यादी”
(7) स्वान्त: सुखाई रचना:-
भक्ति काल की रचनाएं स्वान्त सुखाई रची गई है। कृष्णा भक्त अष्टछाप के कवि-“शनतान का शिकारी कि काम घोषणा कर राज कृप्या से दूर रहने में ही अपना हित मानते है”। ये उदाहरण यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि भक्तिकाल के कवियों के रचनाएं सर्वार्थ या यशलिप्सा से प्रेरित होकर नहीं वरन स्वान्ता सुखाई लिखी गई है।
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