भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं

भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं

भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं – प्रथम पंचवर्षीय योजना के अनुसार, “एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था, एक ओर श्रम शक्ति दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों कामोवेश कम अनुपात में उपयोग द्वारा जानी जाती है।” ऐसी परिस्थितिकनीकों में विकास के अभाव तथा कुछ अवरोधक सामाजिक आर्थिक तत्वों के कारण होती है। जो अर्थव्यवस्था में स्फूर्ति शक्तियों को उभारने में रुकावट बनती है।

अल्पविकसित देश सापेक्ष शब्द सामान्यतः वे देश जिनकी वास्तविक प्रति व्यक्ति आय संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय एक चौथाई से कम है। अल्पविकसित देशों के वर्ग में रखे जाते हैं। हाल ही के वर्षों में इन अर्थव्यवस्थाओं को अल्पविकसित कहने की बजाए संयुक्त राष्ट्र प्रकाशनों में इन्हें विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के रूप में सम्बोधित किया गया है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के शब्द से यह बोध होता है कि चाहे ये अर्थव्यवस्थायें अल्पविकसित हैं किन्तु इनमें विकास प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ होने के कारण अनेक परम्परावादी विशेषताओं का अन्त हो गया। नये नये उद्योगों की स्थापना हुई। हरितक्रान्ति का जन्म हुआ तथा पुराने उद्योगों की कार्य पद्धति एवं उत्पादन में भी परिवर्तन हुआ है। इसके अतिरिक्त यातायात एवं संचार वाहन के साधनों का विकास हुआ बैंकिंग सुविधाओं एवं सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार हुआ है। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई तथा पूँजी निर्माण में काफी सफलता प्राप्त हुई है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देष में क्रांतिकारी परिवर्तन हुये है। नये-नये उद्योग स्थापित हुए है। जो विकास के क्षेत्र में चलायमान हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र में वृद्धि औद्योगिक विकास, बैकिंग सुविधाओं का विकास प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, बचत एवं पूँजी-निर्माण में वृद्धि व नवीन उद्योगों की स्थापना, आदि नवीन विशेषताएँ है।

1. नियोजित अर्थव्यवस्था-

भारत में विकास के लिये नियोजन की नीति अपनायी गयी हैं। यह नियोजन 1 अप्रैल 1951 से चालू किया गया है। अब तक बहुत सी विकास योजनाओं को क्रियान्वित किया गया हैं। जिससे देष का विकास हुआ है।

2. सार्वजनिक क्षेत्र का विकासः-

 यहाँ पर सार्वजनिक क्षेत्रों का विकास भी लगातार हो रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत लोहा एवं इस्पात उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, रसायन उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, कोयला उद्योग व अनेक उपभोक्ता उद्योग शामिल हैं।

3. बैंकिंग सुविधाओं का विकासः-

यहाँ पर बैंकिंग सुविधाओं का बराबर विकास हो रहा है। जून 1969 में भारत में व्यापारिक बैंकों की 8262 शाखाएँ थी, लेकिन जून 2007 के अंत में इन शाखाओं की संख्या 72,165 हो गई है।

4. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-

भारतीय अर्थव्यवस्था में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद व्यक्ति के आय लगातार बढ़ रही है। वर्तमान की कीमतों के आधार पर यह 1999-2000 में 15,881 रुपये में बढ़कर 2006-2007 में 29ए642 रुपये हो गयी है। और 2016-17 में यह 1,03,870 रुपये थी। 2017-18 में वर्तमान मूल्य पर प्रति व्यक्ति आय बढ़कर 1,12,835 रुपये पर पहुँचने का अनुमान है।

5. बचत एवं पूंजी निर्माण दरों में वृद्धि-

 बचतों व पूंजी निर्माण की दरों में भी वृद्धि हो रही है। 1950-51 में बचते सफल घरेलू आय का 8.6 प्रतिषत थी, जबकि 06-07 में 34.8 हो गयी। और यह वर्तमान समय में लगातार बढ़ रही है।

6. सामाजिक सेवाओं का विस्तार-

 भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं का विकास हुआ है। शोध एवं तकनीकी शिक्षा में प्रगति हुई। साक्षरता का स्तर है। व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रौद्योगिकीय शिक्षा के विद्यालयों में महाविद्यालयों की संख्या बढ़ी हैं।

7. सामाजिक परिवर्तनः-

 देश में हो रहे विकास के फलस्वरूप यहाँ सामाजिक परिवर्तन की गति तेज हुई हैं। रूढि़वादिता, जाति-प्रथा, बाल-विवाह तथा छुआ-छूत जैसी बुराइया कम हुई हैं। सामाजिक राजनैतिकता तथा आर्थिक क्रियाकलापों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ी हैं। महिलाओं में शिक्षा एवं ज्ञान का स्तर बढ़ा हैं।

8. बाजार तंत्र-

भारतीय अर्थव्यवस्था में एक मजबूत व्यापार तंत्र का विकास हुआ है। यहाँ वस्तुओं के साथ-साथ श्रम एवं पूंजी के संगठित बाजार हैं। वस्तु बाजार अधिकांश वस्तुओं की कीमतें माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। साथ ही अनिवार्य वस्तुओं के अभाव में उनका वितरण उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से किया जाता हैं। कृषकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा अनेक उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया जाता हैं।

9. गरीबी एवं बेरोजगारी दूर करने के उपायः-

देश में गरीबी एवं बेरोजगारी दूर करने के लिये विशिष्ट कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जैेस ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम आदि।

10. नवीन प्रौद्योगिकीः-

भारत में नित हो रहे नवीन खोजो से नवीन प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। इसमें उत्पादन तकनीक में सुधार और नये उद्योगों की स्थापना हो रही है। ‘विकास उद्योगों’ की स्थापना से व्यावसायिक जीवन में गति शीलता बढ़ गई है तथा प्रबंधकों के समक्ष प्रबंधकों के समक्ष प्रबंधन के नये-नये आयाम विकसित हो रहे है।

11. कृषि पर निर्भरता :-

भारत की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आधारित है। कृषि का कुल राष्ट्रीय आय में 30 प्रतिशत का योगदान है। विकसित देशों में राष्ट्रीय आय में योगदान 2 से 4 प्रतिशत है। वर्षा कृषि के लिये जल का प्रमुख स्त्रोत है। अधिकांश क्षेत्रों में पुरानी तकनीक से कृषि की जाती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं – नवीनतम

  1. योजनाबद्ध विकास स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त बाद सन् 1950-51 से नियोजित आर्थिक विकास की प्रक्रिया का शुभारम्भ किया गया था। अभी बारह पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी हैं। इन योजनाओं के माध्यम से सार्वजनिक उपक्रमों, लघु एवं मध्यम उद्योगों की स्थापना को बल मिला है तथा कृषि क्षेत्र में क्रान्ति आई है। खनिज विकास, परिवहन विकास एवं समाज कल्याणकारी कार्य भी समान हुए हैं।
  2. औद्योगिक विकास स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात विशेष रूप से द्वितीय पंचवर्षीय योजना से देश में आधारभूत एवं पूंजीगत उद्योगों का विकास तीव्र गति से हुआ। औद्योगिक विकास हेतु आधारभूत संरचना का निर्माण किया जा चुका है। तकनीकी और प्रबन्धकीयशिक्षा का विस्तार हुआ तथा औद्योगिक संरचना में विविधता लायी गयी। नियोजनकाल के इन 59 वर्षों में औद्योगिक उत्पादन तीन गुना से अधिक बढ़ा है। भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
  3. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास भारत में सार्वजनिक उद्योगों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। 1951 में यहाँ सार्वजनिक उद्योग थे, जिनमें 29 करोड़ रुपये की पूँजी लगी हुई थी। इनकी संख्या बढ़कर 2001-02 में 232 हो गयी, जिसमे 82,400 करोड़ रुपये की पूँजी लगी हुई थी, किन्तु वर्तमान में इसकी संख्या बढ़कर 242 व इनमें विनियोजित पूँजी 3,30,649 करोड़ रुपये हो गयी है। इसके अन्तर्गत खनन एवं धातु कर्म, विद्युत सामान, मशीनरी उपकरण, रसायन और उर्वरक, वायुयान तथा रेल के इंजनों का निर्माण, भवन निर्माण, औद्योगिक वित्त व्यवसाय तथा जीवन बीमा आदि आते है।
  4. बैंकिंग सुविधाओं का विकास भारत में बैंकिंग सुविधाओं का विकास निरन्तर हो रहा है। जून 1969 में भारत में व्यापारिक बैंकों की 8,262 शाखाएँ थी, किन्तु जून 2002 के अन्त में इन शाखाओं की संख्या 66,239 हो गयी औद्योगिक क्षेत्र में वित्त सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए औद्योगिक और अन्य निगमों की स्थापना की गयी।
  5. बचत एवं पूँजी निर्माण दरों में वृद्धि भारत में बचत एवं पूँजी निर्माण दरों में भी निरन्तर वृद्धि हुई है। 1951 में राष्ट्रीय आय का 6 प्रतिशत बचत की गयी जोकि बढ़कर 2001-02 में 15.3 प्रतिशत हो गयी थी। इसी प्रकार यहाँ पर पूँजी निर्माण की दर 1950-51 में 72 प्रतिशत थी, जोकि बढ़कर 2001-02 में 16 प्रतिशत हो गयी।
  6. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि यहाँ पर प्रति व्यक्ति आय में भी निरन्तर वृद्धि हुई है। 1993-94 में यह 7,698 रुपये थी, जो बढ़कर 2002-03 में 11,014 रुपये हो गयी थी। भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं
  7. नवीन उद्योगों की स्थापना भारत में नियोजन के दौरान अनेकों नवीन उद्योगों की स्थापना हुई जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि भारत एकविकासशील देश है।
  8. समाजवादी समाज की स्थापना के प्रयास भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् आर्थिक विषमता को दूर करने की दृष्टि से समाजवादी समाज की स्थापना हेतु अनेको सार्थक प्रयास किये गये हैं। जैसे जमींदारी प्रथा का अन्त, बैंकों और बीमा कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण, सहकारिता का विकास, सम्पत्ति की अधिकतम सीमा का निर्धारण तथा पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास कार्यक्रम आदि।

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