चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण ( ध्रुवस्वामिनी )
चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण: ‘ध्रुवस्वामिनी’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक ऐतिहासिक नाटक है । नाटक के शीर्षक से ही पता चलता है कि नाटक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र ध्रुवस्वामिनी है । नाटक के पुरुष पात्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र चंद्रगुप्त, रामगुप्त, शिखर स्वामी और शकराज हैं । नाटक में चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण नायक के रूप में किया गया है ।
चंद्रगुप्त का चरित्र चित्रण | Chandergupt ka charitr chitran
ध्रुवस्वामिनी का प्रेमी होने के कारण और नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के कारण चंद्रगुप्त को प्रस्तुत नाटक का नायक कहा जा सकता है । इसके अतिरिक्त चंद्रगुप्त के व्यक्तित्व में ऐसी अनेक विशेषताएं हैं जिनके कारण पर वह अन्य पुरुष पात्रों से विशिष्ट बन जाता है ।
ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :
नाटक का नायक
चंद्रगुप्त प्रस्तुत नाटक में ध्रुवस्वामिनी के पात्र के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र कहा जा सकता है । उसके पात्र में एक नायक के सभी गुणों का समावेश है । वह वीर, पराक्रमी, कर्तव्यनिष्ठ और सद्गुणों से युक्त है । नायिका का पति होने के नाते रामगुप्त को नायक कहां जा सकता था लेकिन वह अनेक दुर्गुणों से युक्त है । कायर, स्वार्थी, विलासी और कर्तव्यविमुख व्यक्ति होने के कारण वह खलनायक बनकर रह गया ।
ऐसी स्थिति में चंद्रगुप्त अपने उदात्त गुणों के कारण रामगुप्त से अधिक महत्व प्राप्त कर जाता है । इसके अतिरिक्त नायिका का प्रेमी तथा खलनायकों का संहारक होने के कारण वह साहित्य-शास्त्र के मानकों के आधार पर भी नाटक के नायक की पदवी प्राप्त कर जाता है ।
वीर व पराक्रमी
चंद्रगुप्त वीरता और पराक्रम की साक्षात मूर्ति है । नाटक में अन्य पात्र भी उसकी वीरता की चर्चा करते हैं । इसके अतिरिक्त नाटक में कई स्थानों पर चंद्रगुप्त की वीरता और पराक्रम की झलक मिलती है ।
जब रामगुप्त ध्रुवस्वामिनी को शकराज के शिविर में भेजने के लिए तैयार हो जाता है तो चंद्रगुप्त का खून खौल उठता है । वह निडरता से रामगुप्त के इस निर्णय का विरोध करता है । यही नहीं वह ध्रुवस्वामिनी की रक्षा के लिए स्वयं शकराज के शिविर में जाने के लिए तैयार हो जाता है ।
नाटक के अंत में जब रामगुप्त उसे बंदी बना लेता है तो वह उन बेड़ियों को तोड़कर रामगुप्त का तख्ता पलट देता है । परंतु उसका भाई होने के नाते वह स्वयं उसका वध नहीं करता ।
मानवोचित गुणों से युक्त
चंद्रगुप्त वीर और पराक्रमी होने के साथ-साथ मानवोचित गुणों से युक्त है । धैर्य, विवेक, दया, परदुखकातरता आदि ऐसे अनेकों गुण हैं जो उसके व्यक्तित्व को महानता प्रदान करते हैं । वह अपने विरुद्ध हुए अनेक अत्याचारों को सहन कर जाता है । उसका बड़ा भाई रामगुप्त राज-सत्ता हथिया लेता है । यही नहीं उसकी प्रेमिका को भी छीन लेता है ।
कुल की मर्यादा का ध्यान रखते हुए चंद्रगुप्त अपने प्रति होने वाले इन अत्याचारों को मौन रहकर सह जाता है परंतु जब ध्रुवस्वामिनी और राज्य की अन्य नारियों के सम्मान की बात आती है तो वह न केवल शकराज का वध करता है बल्कि रामगुप्त के विरुद्ध भी विद्रोह कर बैठता है ।
त्यागी
सम्राट समुद्रगुप्त ने चंद्रगुप्त के गुणों को देखते हुए उसे भावी सम्राट घोषित कर दिया था । परंतु समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात चंद्रगुप्त का बड़ा भाई रामगुप्त राजसत्ता पर अपना अधिकार जताने लगता है। गृह-कलह से बचने के लिए चंद्रगुप्त प्रसन्नता पूर्वक राज्य रामगुप्त को सौंप देता है ।
चंद्रगुप्त की त्याग-भावना का दूसरा प्रमाण हमें तब मिलता है जब नाटक के पहले ही अंक में पाठकों को पता चलता है कि चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी का विवाह तय हो चुका था और दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे । रामगुप्त जबरन ध्रुवस्वामिनी से विवाह कर लेता है परंतु चंद्रगुप्त अपने त्यागी स्वभाव के कारण अपने प्रेम को भी खोने पर भी मूक रहता है ।
एक सच्चा प्रेमी
चंद्रगुप्त ध्रुवस्वामिनी से प्रेम करता है । रामगुप्त जबरन ध्रुवस्वामिनी से विवाह कर लेता है । कुल की मर्यादा का ध्यान रखते हुए वह चुप रहता है । परंतु ध्रुवस्वामिनी को कभी भुला नहीं पाता । वह हमेशा उसका हित चाहता है । उसके हित के लिए वह उसे भूलने की चेष्टा करने लगता है लेकिन जब रामगुप्त निरंतर विलास में डूबा रहता है और ध्रुवस्वामिनी की अनदेखी करता है तो चंद्रगुप्त का ध्रुवस्वामिनी के प्रति प्रेम और अधिक बढ़ जाता है ।
जब रामगुप्त शकराज के संधि-प्रस्ताव के अनुसार ध्रुवस्वामिनी को भेंट स्वरूप उसके पास भेजने के लिए तैयार हो जाता है तो चंद्रगुप्त इस बात का विरोध करता है । उसकी बात को अस्वीकार करने पर वह स्वयं शकराज के पास जाने के लिए तैयार हो जाता है । वह जानता है कि शकराज के शिविर में जाने का अर्थ है – मौत के मुंह में जाना लेकिन वह इसे सहर्ष स्वीकार कर जाता है । किंतु अपने पराक्रम के दम पर वह शकराज का वध कर देता है । अंत में रामगुप्त भी मारा जाता है और ध्रुवस्वामिनी चंद्रगुप्त से पुनर्विवाह कर लेती है ।
रूढ़िवादी मर्यादा का पोषक
चंद्रगुप्त मर्यादा का पोषक है । वह मानवीय संबंधों को हद से ज्यादा महत्व देता है । किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति उसके क्या कर्तव्य होने चाहियें वह इस बात को अधिक महत्त्व देता है, इस बात की परवाह नहीं करता कि दूसरा व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है या नहीं । वह राम गुप्त का छोटा भाई है । छोटा भाई होने के नाते वह रामगुप्त के उचित-अनुचित हर प्रकार के व्यवहार को सहन करता चला जाता है । यही कारण है कि उसका यह गुण उसके व्यक्तित्व की एक बड़ी कमी बन गया है ।
कर्तव्यनिष्ठ
चंद्रगुप्त कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है । नाटक में आरंभ से लेकर अंत तक वह अपने कर्तव्य का पालन करता है । छोटा भाई होने के नाते वह रामगुप्त के सभी अत्याचारों को सहन कर जाता है । एक सच्चा प्रेमी होने के नाते वह ध्रुवस्वामिनी को बचाने के लिए मौत के मुंह में जाने के लिए तैयार हो जाता है ।
नाटक के अंत में ध्रुवस्वामिनी उसे उसके वास्तविक कर्तव्य का स्मरण दिलाती है और ध्रुवस्वामिनी, राज्य की अन्य नारियां व समस्त प्रजा के हित के लिए वह रामगुप्त की सत्ता को अस्वीकार करते हुए उसे वहां से चले जाने का आदेश देता है ।
इस प्रकार चंद्रगुप्त एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है लेकिन यह तथ्य भी विस्मृत नहीं किया जा सकता कि चंद्रगुप्त कभी भी अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं रहा ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ध्रुवस्वामिनी नाटक के पुरुष पात्रों में चंद्रगुप्त का पात्र सर्वाधिक उदात्त तथा महत्वपूर्ण है । नाटक में आरंभ से लेकर अंत तक चंद्रगुप्त का पात्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गतिशील रहता है । जब चंद्रगुप्त प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं होता तो ध्रुवस्वामिनी, रामगुप्त, शिखर स्वामी जैसे पात्र भी किसी न किसी कारण से चंद्रगुप्त का स्मरण करते रहते हैं । अंत में चंद्रगुप्त ही शक राज का वध करके राज्य पर मंडरा रहे खतरे को दूर करता है और दुष्ट, स्वार्थी व कायर रामगुप्त से ध्रुवस्वामिनी व समस्त प्रजा को मुक्ति दिलाता है ।
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