Cold War Era class 12 NCERT in Hindi

Cold War Era class 12 NCERT in Hindi | शीतयुद्ध का दौर Chapter 1

Cold War Era class 12 NCERT in Hindi :- स्टूडेंट्स आज हम शीतयुद्ध (Cold war) के बारे में जानेंगे जो की आपका पोलिटिकल साइंस में 1 Chapter है।

Cold War Era class 12 NCERT in Hindi – Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर (Cold-war Era)

शीतयुद्ध क्या है ?

शीतयुद्ध की शुरुआत दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुई। शीतयुद्ध एक विचारों का युद्ध है।

दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका दो बड़ी महाशक्ति बनकर उभरे।

और युद्ध के बाद दोनों महाशक्तियों के बीच टकराव और तनाव उभरने लगा और दोनों महाशक्तियों के बीच विचारों का युद्ध शुरू हो गया।

इसी स्थिति को शीतयुद्ध के नाम से जाना जाता है।

क्यूबा मिसाइल संकट क्या था ?

क्यूबा मिसाइल संकट 1962 में हुआ था उस समय Cuba के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो थे,

और सोवियत संघ के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव और अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी थे।

Cuba एक छोटा सा देश है जो की अमेरिका से सटा हुआ है शीतयुद्ध के समय क्यूबा का झुकाव सोवियत संघ की ओर था।

सोवियत संघ ने इस बात का फायदा उठाया और क्यूबा से परमाणु मिसाइलें अमेरिका की तरफ तैनात कर दी,

इससे अमेरिका सीधे मिसाइलों के निशाने पर आ गया। और इस बात की सूचना अमेरिका को तीन हफ्ते बाद लगी।

अमेरिका के राष्ट्रपति ऐसा कुछ नहीं करना चाह रहे थे जिससे दोनों देशो के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो जाये और लेकिन जॉन एफ कैनेडी सोवियत संघ को चेतावनी भी देना चाहते थे,

इसलिए उन्होंने अमरीकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोकने  आदेश दिया।

ऐसी स्थिति में यह लग रहा था की युद्ध होकर ही रहेगा लेकिन हुआ नहीं ।

इसी को क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में जाना गया। क्यूबा मिसाइल संकट शीतयुद्ध का चरम बिंदु था

दूसरा विश्व युद्ध कब हुआ था और मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्रों के बारे में बताइये ?

दूसरा विश्व युद्ध 1939-1945 तक हुआ था। दूसरा विश्व युद्ध मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र के बीच हुआ था।

मित्र राष्ट्र में अमेरिका ,ब्रिटेन , सोवियत संघ और फ्रांस शामिल थे।

धुरी राष्ट्र में जर्मनी ,इटली ,और जापान शामिल थे।

दूसरे विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और धुरी राष्ट्रों के नेतृत्व जर्मनी कर रहा था।

दूसरे विश्व युद्ध का  अंत किस प्रकार हुआ ?

अमेरिका द्वारा जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराने से जापान को झुकना पड़ा और दूसरे विश्व युद्ध का अंत हो गया।

दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका की आलोचना क्यों की जाती है ?

दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका की आलोचना इसलिए की जाती है ,

क्योंकि जापान आत्मसमर्पण करने वाला था यह बात अमेरिका को भी पता थी लेकिन फिर भी अमेरिका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिराए।

क्योंकि अमेरिका दुनिया को दिखाना चाहता था की अमेरिका जितना शक्तिशाली देश कोई भी नहीं है।

जापान पर फेंके गए परमाणु बमों के नाम क्या थे ?

जापान पर फेंके गए परमाणु बमों का नाम लिटल बॉय और फैट मैन था।

अपरोध से आप क्या समझते है ?

अगर कोई देश अपने शत्रु देश पर हमला करके उसके हथियारों को खत्म करने का प्रयास करता है।

और उस स्थिति में भी दूसरे देश के पास इतने हथियार बच जाये कि वो दुबारा लड़ने के लिए तैयार हो जाये तो इसी स्थिति को अपरोध कहते है।

दो ध्रुवीय विश्व से आप क्या समझते है ?

दूसरे विश्व युद्ध के बाद विश्व में दो महा शक्तियां उभर कर सामने आयी अमेरिका और सोवियत संघ।

और विश्व दो गुटों बंट गया कुछ देश अमेरिका के पक्ष  में हो गए और कुछ देश सोवियत संघ के पक्ष में हो गए। यहीं से दो ध्रुवीयता की शरुआत हुई।

विश्व दो गुटों में सबसे पहले कहाँ विभाजित हुआ था ?

विश्व दो गुटों में सबसे पहले यूरोप में विभाजित हुआ पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप।

पूर्वी यूरोप के देशो पर सोवियत संघ का दबदबा था और पश्चिमी यूरोप के देशो पर अमेरिका का दबदबा था।

NATO क्या है और इसमें कितने देश शामिल थे ?

नाटो का पूरा नाम उत्तर अटलांटिक संधि संगठन है (North Atlantic Treaty Organization)

नाटो की स्थापना अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने मिलकर अप्रैल 1949 में करी ।

NATO में कुल 12 देश शामिल थे। इस संगठन की स्थापना करने का उद्देश्य यह था की अगर सोवियत संघ नाटो में शामिल किसी एक देश पर हमला  करता है,

तो इस संगठन में शामिल सभी देश उस हमले को अपने ऊपर हमला समझेंगे और उस हमले का जवाब मिलकर देंगे।

NATO का उद्देश्य नाटो में शामिल देशो के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना था।

वारसा संधि क्या थी ?

नाटो के विरोध में सोवियत संघ ने 1955 में वारसा संधि करी।

इसका उद्देश्य भी वारसा संधि में शामिल सभी देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना था।

SEATO और CENTO क्या था ?

अमेरिका ने पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया तथा पश्चिम एशिया के देशो को अपने साथ मिलाने के लिए गठबंधन का तरीका अपनाया,

इन गठबंधनों को दक्षिण पूर्व एशियाई संधि संगठन (SEATO) और केंद्रीय संधि संगठन (CENTO) कहा गया।

नव अंतराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था क्या थी ?

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों  को अल्प विकशित देश का दर्जा प्राप्त था।

इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी।

नव स्वतंत्र देशों की आज़ादी के लिहाज से भी आर्थिक विकास महत्वपूर्ण था क्योंकि बगैर विकास के कोई देश आजाद नहीं रह सकता है उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।

इसी समझ से नयी अंतराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ।

1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास सम्मेलन में टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी।

इस रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार प्रणाली में  सुधार का प्रस्ताव किया गया।

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सुधारों से

1.अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते है।

2.अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए व्यापार फायदेमंद होगा।

3.अल्प विकसित देशों की अंतराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।

12th Political Science Notes NCERT in Hindi | Cold War Era Chapter 1 class 12

अस्त्र परिसीमन से आप क्या समझते है ?

शीतयुद्ध के दौरान दोनों महा शक्तियां ज़्यादा से ज़्यादा हथियार जमा कर रहे थे।

क्यूंकि दोनों महा शक्तियों को एक दूसरे के प्रति शंका थी,

ऐसी स्थिति में दोनों गुटों ने भरपूर हथियार जमा कर लिए और लगातार युद्ध के लिए तैयारी करते रहे।

दोनों महा शक्तियों ने हथियार तो जमा कर लिए लेकिन युद्ध कोई नहीं करना चाहता था।

दोनों महा शक्तियां एक दूसरे के हथियारों का सही अनुमान नहीं लगा सकती थी।

इसमें सवाल यह था की अगर कोई परमाणु दुर्घटना हो गयी तो क्या होगा या कोई सैनिक युद्ध की भावना से या शरारतन कोई हथियार चला दे तो दूसरा देश तो उसे षडयंत्र समझेगा न की दुर्घटना।

इसी समस्या के कारण दोनों महा शक्तियों ने हथियारों को सीमित करने के लिए कुछ संधियाँ करी जो कि थी :-

परमाणु परिक्षण प्रतिबंध संधि , परमाणु अप्रसार संधि और परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि। यही अस्त्र परिसीमन है।

महा शक्तियां छोटे छोटे देशो के साथ सैन्य गठबंधन क्यों रखना चाहती थी ?

1.छोटे-छोटे देश महत्वपूर्ण संसाधनों जैसे – तेल और खनिज की प्राप्ति के स्रोत थे।

2.महा शक्तियां छोटे-छोटे देशो में अपने सैनिक अड्डे बनाना चाहती थी जिससे कि महा शक्तियां अपने हथियारों और सेना का आसानी से संचालन  कर सके।

3.आर्थिक सहायता के लिए भी महा शक्तियां छोटे-छोटे देशो से गठबंधन करना चाहती थी क्योंकि छोटे देश सैन्य खर्च वहन करने में मददगार हो सकते थे।

गुटनिरपेक्षता की निति या (गुटनिरपेक्ष आंदोलन NAM) क्या था,

और इसकी शुरुआत कब हुई व इसके संस्थापक देशों के नाम क्या बताइये ?

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत  1961 में हुई। गुटनिरपेक्षता का अर्थ है किसी भी गुट  शामिल न होना।

जब विश्व दो गुटों में बंट चूका था तब सभी देशो के सामने ये संकट था कि वो किस महा शक्ति के साथ जाये।

कई देश शीतयुद्ध के दौरान ही औपनिवेशिक शासन से आज़ाद हुए थे।

कुछ छोटे देश तो अपने हित के लिए महा शक्तियों के पक्ष में चले गए ताकि उनकी आर्थिक सामाजिक स्थिति सुधर सके और कई देश दोबारा से गुलामी में नहीं जाना चाहते थे।

तब भारत जैसे ही कई देशो ने दोनों में से किसी भी महा शक्ति के पक्ष में जाने से इंकार कर दिया,

और तटस्थ रहना ही ठीक समझा ताकि वो अपना विकास स्वयं कर सके और दोनों महा शक्तियों से उनके सम्बन्ध अच्छे रह सके।

तब भारत और अन्य देशो ने जो किसी महा शक्ति के साथ नहीं जाना चाहते थे उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM Non-Aligned Movement) की शुरुआत करी।

जिससे की अब सभी देशों के सामने तीसरा विकल्प भी आ गया।

12th Political Science Notes NCERT in Hindi

गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) के संस्थापक देश निम्न है :

भारत जवाहरलाल नेहरू
युगोस्लाविया जोसेफ ब्रॉज टीटो
मिस्र गमाल अब्दुल नासिर
इंडोनेशिया सुकर्णो
घाना वामे एन क्रूमा

 शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी ? क्या आप मानते है कि इस निति ने भारत के हितो को आगे बढ़ाया ?

भारत ने आरम्भ से ही गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेश नीति का एक आधारभूत तत्व माना,

और इसी के तहत उसने संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दोनों के साथ ही मित्रता के संबंध बनाये रखने की नीति अपनाई।

हिंदुस्तान दोनों महा शक्तियों में से किसी के भी गठबंधन में शामिल नहीं हुआ और अपने को दोनों से तटस्थ रखा।

हिंदुस्तान द्वारा अपनाई गई तटस्थता की नीति ने भारत के हितो को निश्चित रूप से आगे बढ़ाया :-

1.भारत दोनों महा शक्तियों से मैत्री सम्बन्ध रखने के कारण दोनों ही देशो से आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकता था,

और अपने सामाजिक आर्थिक विकास की ओर ध्यान दे सका।

2.दोनों महा शक्तियों से  मित्रता होने के कारण भारत को शीतयुद्ध के समय किसी भी शक्ति संगठन से या उसके किसी सदस्य से किसी शत्रुता तथा आक्रमण की चिंता नहीं रही।

3.भारत उस समय एक पिछड़ा हुआ देश था और अगर भारत किसी भी गुट में शामिल हो जाता तो,

भारत किसी भी गुट से समानता के आधार पर आचरण करने की स्थिति में न होता,

बल्कि उस गुट के एक साधारण सदस्य की भूमिका निभाता और भारत की स्थिति गौण ही रहती।

4.भारत ने जो विकास और प्रगति की है उसमें भारत की स्वतन्त्र विदेश नीति का काफी योगदान रहा है।

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