कम्पनी के संचालक की नियुक्ति किस प्रकार होती है ?
कम्पनी के संचालक की नियुक्ति किस प्रकार होती है ?: कम्पनी अधिनियम के अधीन संचालकों की नियुक्ति सम्बन्धी प्रतिबन्ध बताइए। अथवा ”एक सार्वजनिक कम्पनी के संचालकों की नियुक्ति पर क्या प्रतिबन्ध है ? अथवा ” संचालकों की संख्या, नियुक्ति और पारिश्रमिक के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम में क्या व्यवस्थाएँ हैं ?
कम्पनी के संचालक की नियुक्ति किस प्रकार होती है ?
कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति होने के कारण अपने सभी कार्य अपने एजेण्टों के द्वारा करवाती है,क्योंकि वह स्वयं कोई भी कार्य नहीं कर सकती। अत: वे व्यक्ति जो कम्पनी के एजेण्ट के रूप में कार्य करते हैं. संचालक कहलाते हैं।
कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 2 (13) के अनुसार, “संचालक का आशय ऐसे व्यक्ति से है.जो संचालक का स्थान ग्रहण किये हुए हो, चाहे वह किसी भी नाम से पुकारा जाता है।”
वेब्स्टर शब्दकोश के अनुसार, “संचालक का आशय ऐसे व्यक्तियों से है जो कम्पनी का प्रबन्ध करने के लिए नियुक्त किये जाते हैं, चूँकि एक कम्पनी में बहुत से अंशधारी होते हैं और ये सब अंशधारी कम्पनी के प्रबन्ध में भाग नहीं ले सकते हैं । अतः कम्पनी का प्रबन्ध कुछ चुने हुए व्यक्तियों के हाथ में दिया जाता है जिन्हें संचालक कहा जाता है। ये प्रभावशाली, विद्वान, व्यावहारिक कार्यों में कुशल तथा “धनवान होते हैं।”
संचालकों की संख्या (Number of Directors)
संचालकों की न्यूनतम संख्या-
धारा 252 के अनुसार एक सार्वजनिक कम्पनी में कम से कम तीन तथा निजी कम्पनी में कम से कम दो संचालकों का होना अनिवार्य है।
संचालकों की अधिकतम संख्या-
धारा 258 के अनुसार कम्पनी अपनी साधारण सभा में एक साधारण प्रस्ताव द्वारा पार्षद् अन्तर्नियमों में निर्धारित संचालकों की संख्या में वृद्धि कर सकती है।
संचालकों की नियुक्ति (Appointment of Directors)
भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 253 के प्रावधानों के अधीन केवल एक व्यक्ति ही संचालक नियुक्त किया जा सकता है अर्थात फर्म या नियुक्ति सम्बन्धी व्यवस्थाएँ निम्नलिखित हैंसमामेलित संस्था को संचालक नियुक्त नहीं किया जा सकता।-
1) प्रबन्ध संचालकों की नियुक्ति-
धारा 254 के अनुसार कम्पनी के प्रथम संचालकों की नियुक्ति प्रवर्तकों द्वारा की जाती है। प्रथम संचालकों का नाम कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियम में दिया जाता है। यदि ऐसा नहीं है तो पार्षद सीमा नियम पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति ही प्रथम साधारण सभा तक संचालक पद पर कार्य करते है I
(2) व्यापक साधारण सभा में संचालकों की नियुक्ति-
प्रथम संचालक सार्वजनिक कम्पनी की दशा में वैधानिक सभा तक और निजी कम्पनी की दशा में प्रथम सामान्य सभा तक कार्य करते हैं । इन सभाओं में संचालकों की पुनः नियुक्ति की जाती है। इनमें से कम से कम 1/3 भाग प्रतिवर्ष बारी-बारी अवकाश ग्रहण करते है I
(3) अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति-
धारा 260 के अनुसार कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों द्वारा अधिकृत संचालक मण्डल अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति कर सकता है लेकिन
(i) ऐसा संचालक कम्पनी की अगली व्यापक सभा होने तक ही कार्य कर सकेगा।
(ii) संचालकों और अतिरिक्त संचालकों की संख्या मिलकर कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों में वर्णित संख्या से अधिक नहीं होनी चाहिए।
(4) संचालक मण्डल द्वारा संचालकों की नियुक्ति-
धारा 262 के अनुसार बीच में आकस्मिक रूप में संचालक पद के लिए रिक्त स्थान की पूर्ति संचालक मण्डल द्वारा की जा सकती है। यदि अन्तर्नियम अनुमति दे तो संचालक मण्डल द्वारा अतिरिक्त संचालकों की नियुक्ति भी की जा सकती है।
(5) आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर नियुक्ति-
धारा 265 के अनुसार कोई भी सार्वजनिक कम्पनी या उसकी सहायक निजी कम्पनी अपने पार्षद अन्तर्नियमों के द्वारा अधिकृत होने पर आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर 2/3 संचालकों की नियुक्ति कर सकती है।
(6) केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालकों की नियुक्ति-
धारा 408 के अनुसार केन्द्रीय सरकार अधिक से अधिक दो संचालकों की नियुक्ति 3 वर्ष के लिए कर सकती है, बशर्ते कम से कम 100 अंशधारी या कुल मतदान शक्ति के 1/10 भाग के बराबर अंशधारी इस आशय के लिए प्रार्थना-पत्र दें या केन्द्रीय सरकार को कम्पनी में कुप्रबन्ध की शिकायत मिले।
(7) अन्य पक्षकारों द्वारा संचालकों की नियुक्ति-
यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में व्यवस्था हो तो बैंक, विशिष्ट वित्तीय संस्थाएँ, ऋणधारी आदि भी संचालकों की नियुक्ति कर सकते हैं।
संचालकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में प्रतिबन्ध (Restrictions in Respect of Appointment of Directors)
कम्पनी अधिनियम 1956 के अधीन संचालकों की नियुक्ति पर अग्रलिखित प्रतिबन्ध लागू होते हैं-
(1) केवल एक व्यक्ति ही संचालक बन सकता है-
कम्पनी अधिनियम की धारा 253 के अनुसार केवल एक व्यक्ति ही संचालक नियुक्त हो सकता है। अन्य शब्दों में किसी भी समामेलित संस्था फर्म या संघ को संचालक नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
(2) योग्यता अंश-
कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 270 के अनुसार,कोई भी व्यक्ति अंश पूँजी वाली कम्पनी का संचालक नियुक्त नहीं किया जा सकता जब तक उसने स्वयं अथवा अधिकृत एजेण्ट द्वारा
(i) संचालक के रूप में कार्य करने की अपनी लिखित अथवा हस्ताक्षरित सहमति रजिस्ट्रार के पास प्रस्तुत नहीं कर दी है, तथा
(ii) योग्यता अंश नहीं लिए हैं अथवा उनको लेने का लिखित वचन नहीं दिया है।
(3) संचालक की अयोग्यताएँ-
एक व्यक्ति संचालक नियुक्त किये जाने के योग्य न होगा, यदि
(i) किसी उपयुक्त न्यायालय ने उसे मस्तिष्क से अस्वस्थ पाया है।
(ii) वह ऐसा दिवालिया है जिसे मक्ति नहीं मिली है।
(iii) यदि उसने दिवालिया होने का प्रार्थना-पत्र दे दिया हो।
(iv) यदि उसे न्यायालय ने कम्पनी के प्रवर्तन, निर्माण अथवा प्रबन्ध में दोषीठहराया हो।
(v) यदि उसे नैतिक अपराध के लिए 6 माह की सजा दी गयी है और इस सजा को समाप्त हुए अभी 5 वर्ष भी पूरे न हुए हों।
(4) संचालक मण्डल की सभाओं में अनुपस्थित रहने पर-
यदि कोई संचालक बिना संचालक मण्डल की आज्ञा के निरन्तर सभाओं में तीन महीने तक अनुपस्थित रहता है तो ऐसे व्यक्ति को पुन: संचालक नियुक्त नहीं किया जा सकता
(5) कानूनी प्रतिबन्ध-
भारतीय कम्पनी विधान, 1956 की धारा 253 के अनुसार, प्रत्येक संचालक की नियुक्ति प्रत्येक प्रस्ताव द्वारा होनी चाहिए अर्थात दो या उससे अधिक संचालकों की नियुक्ति के लिए संयुक्त प्रस्ताव पारित नहीं किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा तब सम्भव है जबकि पूर्व में ऐसा करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास कर लिया हो।
संचालकों का पारिश्रमिक (Remuneration of Directors)
संचालक कनी का कर्मचारी नहीं होता। अतः इसे पारिश्रमिक पाने का गर्भित अधिकार होता है । लेकिन अन्तर्नियमों की व्यवस्था के अन्तर्गत अथवा सभा के सामान्य प्रस्ताव का अन्तर्नियम के अधीन विशेष प्रस्ताव के आधार संचालकों को पारिश्रमिक दिया जा सकता है। संचालकों के पारिश्रमिक के सम्बन्ध में व्यवस्थाएँ इस प्रकार हैं-
(1) प्रत्येक सभा की फीस के रूप में-
संचालक अपना पारिश्रमिक संचालक मण्डल की प्रत्येक सभा के लिए तथा समिति की प्रत्येक सभा के लिए फीस के रूप में भी प्राप्त कर सकता है।
(2) पर्णकालिक संचालक अथवा प्रबन्ध संचालक का पारिश्रमिक-
ऐसा संचालक जो कम्पनी के पूरे समय के लिए हो या प्रबन्ध संचालक हो तो उसे मालिक आधार पर या शुद्ध लाभ पर एक निश्चित प्रतिशत के आधार पर पारिश्रमिक का भुगतान किया जा सकता है । परन्तु बिना केन्द्रीय सरकार की अनुमति लिए हुए यह पारिश्रमिक प्रत्येक संचालक के लिए शुद्ध लाभ का 5% तथा एक से अधिक ऐसे संचालकों की दशा में शुद्ध लाभ का 10% से अधिक नहीं होना चाहिए।
(3) अन्य संचालकों की दशा में-
ऐसे संचालक जो कि पूरे समय के लिए न संचालक अथवा प्रबन्ध संचालक नहीं है, को दिया गया पारश्रमिक कम्पनी के शुद्ध लाभ का 1 प्रतिशत तथा किसी दशा में शुद्ध लाभ का 3 प्रतिशत तक हो सकता है।
(4) पारिश्रमिक पर प्रतिबन्ध-
यदि कोई संचालक उपर्युक्त निर्धारित सीमा से अधिक पारिश्रमिक प्राप्त कर लेता है तो वह अधिक पारिश्रमिक की राशि को कम्पनी के प्रत्याशी की भाँति रखेगा तथा उसे कम्पनी को वापस करेगा।
(5) पारिश्रमिक बढाने के लिए केन्द्रीय सरकार की अनुमति लेना-
एक सार्वजनिक कम्पनी या इसकी सहायक निजी कम्पनी के संचालक के पारिश्रमिक में वृद्धि बिना केन्द्रीय सरकार की अनुमति के नहीं की जा सकती।
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