मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में क्या अंतर है?

मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में क्या अंतर है?

मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में क्या अंतर है? : एक संसदीय व्यवस्था में मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल बहुत ही महत्वपूर्ण व्यवस्था है, हालांकि न पता होने की स्थिति में हम दोनों को एक ही समझ लेते हैं, इसीलिए,

मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में क्या अंतर है?

इस लेख में हम मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल (Council of Ministers and Cabinet) के मध्य अंतरों पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, एवं इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।

मंत्रिपरिषद क्या है?

संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और महान्यायवादी (Attorney General) शामिल होता है। इसी तरह से राज्य कार्यपालिका में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राज्य मंत्रिपरिषद एवं महाधिवक्ता शामिल होता है।

संविधान के भाग 5 का अध्याय 1 यानी कि अनुच्छेद 52 से लेकर 78 तक संघीय कार्यपालिका का वर्णन करता है। इसी के अंतर्गत अनुच्छेद 74 और 75 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद की चर्चा की गई है। इसी तरह संविधान के भाग 6 का अध्याय 2 राज्यों के कार्यपालिका का वर्णन करता है। और इसी के तहत अनुच्छेद 163 और 164 में राज्यों के लिए मंत्रिपरिषद की चर्चा की गई है।

◼ केंद्रीय मंत्रिपरिषद जो काम केंद्र में करती है वहीं काम राज्य में राज्य मंत्रिपरिषद करती है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में तीन प्रकार के मंत्री होते हैं, काबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री एवं उपमंत्री। इसी तरह से राज्य मंत्रिपरिषद में भी तीन प्रकार के मंत्री होते हैं, कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री एवं उपमंत्री।

◼ जिस तरह से केंद्र में सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष यानी कि प्रधानमंत्री होता है, उसी तरह से राज्यों में सर्वोच्च कार्यकारी अधिकारी राज्य मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष यानी कि मुख्यमंत्री होता है।

◼ जिस तरह अनुच्छेद 74 में बताया गया है कि राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगा जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होगा उसी तरह से अनुच्छेद 163 में लिखा है कि राज्यपाल को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगा जिसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री होगा।

◼जिस तरह अनुच्छेद 75 में लिखा है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा एवं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा, उसी तरह से अनुच्छेद 164 में लिखा है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा एवं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा।

इतने तथ्य से ये समझा जा सकता है कि जिस तरह से केंद्र में मंत्रिपरिषद की व्यवस्था है उसी तरह से राज्यों में भी हैं, काम करने का तरीका भी एक ही है। केंद्र में भी कैबिनेट, मंत्रिपरिषद का एक भाग है, राज्य में भी कैबिनेट मंत्रिपरिषद का एक भाग है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ ये है कि मंत्रिपरिषद और कैबिनेट में अंतर जिस तरह केंद्र में है उसी तरह राज्य में भी है बस कुछ चीजों को छोड़कर जैसे कि केंद्र में कैबिनेट का आकार थोड़ा बड़ा होता है क्योंकि वहाँ लोकसभा में सदस्यों की संख्या भी अधिक है, वहीं राज्यों में कैबिनेट का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है क्योंकि सदस्यों की संख्या कम होती है और अलग-अलग राज्यों के लिए विधानसभा सदस्य संख्या अलग-अलग होता है।

हालांकि यहाँ याद रखने वाली बात ये है कि केंद्र में भी प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद में सदस्यों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है और राज्यों में भी मुख्यमंत्री सहित मंत्रिपरिषद में सदस्यों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता है। ये व्यवस्था 91वां संविधान संशोधन 2003 द्वारा लाया गया था। लेकिन राज्य के मामलों में यहाँ दिलचस्प बात ये है कि मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी। ऐसा संभवतः संतुलन स्थापित करने के लिए किया गया होगा।

इसे गोवा के उदाहरण से समझ सकते हैं;

चूंकि वहाँ विधानसभा में सदस्यों की संख्या 40 है ऐसे में वहाँ के मंत्रिपरिषद में सदस्यों की संख्या 6 से अधिक नहीं होनी चाहिए (क्योंकि 40 का 15 प्रतिशत तो 6 ही होता है)। अगर ऐसा होगा तो फिर कार्यकारी कामों में सरकार को दिक्कत आ सकती है। इसीलिए न्यूनतम सदस्य संख्या 12 कर देने से गोवा जैसे कम विधानसभा सीटों वाले राज्यों को फायदा होगा।

मंत्रिमंडल क्या है? (What is a cabinet?)

जैसा कि ऊपर अभी हमने पढ़ा मंत्रिमंडल या कैबिनेट, मंत्रिपरिषद का ही एक हिस्सा है जिसमें मंत्रिपरिषद की तुलना में लगभग एक तिहाई सदस्य होता है। इन सदस्यों के पास सभी मुख्य मंत्रालय होता है, जैसे गृह मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, कृषि मंत्रालय आदि।

इसीलिए सरकार का काम मुख्य रूप से यही करते हैं क्योंकि ये सप्ताह में आमतौर पर एक दिन बैठक करते हैं और सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। मंत्रिपरिषद इस बैठक में शामिल नहीं होता है।

इतना समझने के बाद आइये अब मंत्रिपरिषद और कैबिनेट के मुख्य अंतर को समझते हैं।

मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल के बीच अंतर

मंत्रिपरिषद मंत्रिमंडल
मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) एक बड़ा निकाय है जिसमें 60 से 70 मंत्री होते हैं। वहीं मंत्रिमंडल (Cabinet) एक लघु निकाय है जिसमें 15 से 20 मंत्री होते है।
मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीनों श्रेणियां – कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री व उपमंत्री शामिल होता है। वहीं मंत्रिमंडल में केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते है। क्योंकि यह मंत्रिपरिषद का ही एक भाग है।
मंत्रिपरिषद का कोई सामूहिक कार्य नहीं होता हैं और यह सरकारी कार्यों हेतु एक साथ बैठक नहीं करती है। मंत्रिमंडल के कार्यकलाप सामूहिक होते है, यह समान्यतः हफ्ते में एक बार बैठक करती है और सरकारी कार्यों के संबंध में निर्णय करती है। केंद्र की बात करें तो हर बुधवार को कैबिनेट बैठक होता है।
मंत्रिपरिषद को वैसे तो सभी शक्तियाँ प्राप्त हैं परंतु कागजों में। इसके कार्यों का निर्धारण मंत्रिमंडल करती है और यह मंत्रिमंडल के निर्णयों को लागू करती है। मंत्रिमंडल वास्तविक रूप में मंत्रिपरिषद की शक्तियों का प्रयोग करती है और उसके लिए कार्य भी करती है। ये मंत्रिपरिषद को राजनैतिक निर्णय लेकर निर्देश देती है तथा ये निर्देश सभी मंत्रियों पर बाध्यकारी होते हैं।
मंत्रिपरिषद एक संवैधानिक निकाय है। इसका विस्तृत वर्णन संविधान के अनुच्छेद 74 तथा 75 में किया गया है। मंत्रिमंडल एक निकाय है जिसे 44वें संविधान संशोधनअधिनियम द्वारा शामिल किया गया था। अत: यह संविधान के मूल स्वरूप में शामिल नहीं था।

ये थी वो कुछ मुख्य बाते जो मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल को एक दूसरे से अलग करती है। उम्मीद है आप समझ गए होंगे। यहाँ पर एक बात और जाननी जरूरी है कि केंद्र में जिस तरह से मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है उसी तरह से राज्यों में मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है।

सामूहिक उत्तरदायित्व का मतलब

सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective responsibility) का मतलब ये है कि सभी मंत्रियों की उनके सभी कार्यों और निर्णयों के लिए लोकसभा के प्रति (केंद्र में) और विधानसभा के प्रति (राज्य में) संयुक्त ज़िम्मेदारी होगी। वे सभी एक दल की तरह काम करेंगे, भले ही किसी निर्णय से कोई व्यक्तिगत रूप से सहमत न हो लेकिन मंत्रिपरिषद के रूप में उसे सार्वजनिक तौर पर उसे स्वीकारना होगा और उस निर्णय के लिए वे भी उत्तरदायी होंगे।

दूसरे शब्दों में कहें तो सभी मंत्रियों का यह कर्तव्य है कि वो मंत्रिमंडल के निर्णयों को माने तथा संसद के बाहर और भीतर उसका समर्थन करें। यदि कोई मंत्री, मंत्रिमंडल के किसी निर्णय से असहमत है और उसके लिए तैयार नहीं है, तो उसे त्यागपत्र देना होगा।

इसे भी पढ़ें :  राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है

Leave a Comment

close