टेलीविजन और बच्चों पर उसका प्रभाव पर निबंध | Essay on Television and its Impact on Children in Hindi
टेलीविजन और बच्चों पर उसका प्रभाव : टेलीविजन विज्ञान की एक शानदार सृजनात्मक उपलब्धि है । इसमें समाचारों, रेडियो और सिनेमा तीनों की उपयोगिताओं का समाहार है । आज के युग में टेलीविजन की उपयोगिता और उसकी प्रभावोत्पादकता सर्वविदित है । टेलीविजन मनोरंजन का उत्तम साधन है । ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में इसकी भूमिका सराहनीय है ।
टेलीविजन और बच्चों पर उसका प्रभाव पर निबंध | Essay on Television and its Impact on Children in Hindi
एक ओर इसके माध्यम से देश-विदेश के समाचार व समसामयिक क्रिया-कलापों पर परिचर्चा का लाभ मिलता है, तो दूसरी ओर इसकी सहायता से शिक्षण का महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हो रहा है और अनेक शिल्पों और प्रौद्योगिकीय विषयों के प्रशिक्षण में भी इसका योगदान कम नहीं है । इस प्रकार टेलीविजन दर्शकों के ज्ञान क्षितिज को व्यापक करके उन्हें अधिकाधिक प्रबुद्ध बनाने का सराहनीय कार्य कर रहा है ।
विज्ञान की यह अनूठी देन दूरस्थ, दुर्गम स्थानों के और समाज की मुख्य धारा से पृथक पड़े लोगों के प्रबोधन एवं उन्नयन का शक्तिशाली साधन है । टेलीविजन विज्ञापन का सबसे सशक्त साधन है । इसकी वाणिज्यिक एवं व्यावसायिक उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है । टेलीविजन से प्रसारित आकर्षक एवं मनोरम विज्ञापन दर्शकों को बरबस अपनी ओर आकृष्ट करते हैं । विज्ञान के इस आविष्कार ने संसार को हमारे निकट ला दिया है ।
संसार के किसी भी कोने में घटित महत्वपूर्ण घटना में ससार के सभी प्रबुद्ध नागरिक अधिकाधिक रूचि लेने लगे हैं । इस प्रकार टेलीविजन ने संसार को एकता के सूत्र में बांधने का अभूतपूर्व कार्य किया है ।
एक ओर जहां टेलीविजन की सर्वक्षेत्रीय उपयोगिता के बारे में दो राय नहीं हो सकती, वहीं दूसरी ओर हमारे बच्चों, किशोरों और नवयुवकों पर पड़ रहे इसके दुष्परिणामों के बारे से भी आम सहमति है । टेलीविजन ने हमारे घरों में प्रवेश करके नयी पीढ़ी को अपने मोह जाल में फंसा लिया है ।
नवयुवकों के मन पर इसकी पकड़ मजबूत होती जा रही है । इसके प्रभाव से बच्चों में एक नई संस्कृति विकसित हुई है और हो रही है, जो अनेक दृष्टियों से भारतीय परिवेश के साथ मेल नहीं खाती । नीचे हम इसके दुष्परिणामों-विशेषतया बच्चों पर बड़े दुषभावों की चर्चा करेंगे ।
बच्चों में टेलीविजन चलाकर इसके सामने बैठे रहने की लत पैदा हो गई । ‘लत’ इसलिए कहना ठीक है कि टेलीविजन देखे बिना उसका मन अतृप्त रहता है और उनकी इन्द्रियाँ अवसादपूर्ण रहती हैं । जो व्यक्ति उन्हें टेलीविजन के सामने बैठने से रोकता है, वह उन्हें सबसे बड़ा शत्रु लगता है।
‘लत’ इसलिए भी है कि टेलीविजन के पर्दे से चिपके रहने पर उन्हें भूख-प्यास भी नहीं सताती । इससे उन्हें कोई मतलब नहीं कि पर्दे पर आ रहा कार्यक्रम उनकी समझ में आ रहा है या नहीं, उन्हें बस देखते रहने से मतलब है ।
किन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि इससे उनको कोई हानि नहीं होती, केवल उनका बहुमूल्य समय बरबाद होता है । बच्चे टेलीविजन के पर्दे पर जो कुछ भी देखते हैं, उसका प्रभाव, अच्छा या बुरा, पडता अवश्य है । बच्चों में इतना विवेक नहीं होता कि वे सद् और असद् में भेद कर सकें; उनमें इतना संयम भी नहीं होता कि वे मात्र सद् को अपनायें और असद् का त्याग कर दें ।
अत: टेलीविजन के पर्दे पर जो कुछ भी आता रहता है, वह सब बच्चों पर अपनी छाप-सकारात्मक और नकारात्मक डालता रहता है । इस छाप की बच्चों के चरित्र-निर्माण में बड़ी नाजुक भूमिका, तात्कालिक ही नहीं, दूरगामी भी होती है । इसी प्रक्रिया से बच्चों में विविध संस्कार विकसित और दृढ़ होते हैं ।
नवयुवक और स्कूली बच्चे टेलीविजन देखने में जितना समय लगाते है । यह बहुत अधिक है । अमरीका में किये गये एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार वहां बच्चे जितना समय स्कूल में पढ़ाई में लगाते हैं, लगभग उतना ही समय घर पर टेलीविजन देखने में लगाते हैं । सर्वे में बताया गया है कि यह समय बहुत ज्यादा है । भारत में अभी हालत इतनी खराब नहीं है ।
भारत में किए गए एक सर्वे के मुताबिक यहां स्कूली बच्चे सप्ताह में औसतन 10-12 घंटे टेलीविजन देखते हैं । समृद्ध अमरीका में तो घर पर हर बच्चे के कमरे में टेलीविजन लगे होते हैं, पर भारत में इतनी समृद्धि अभी नहीं है । कुछ प्रबुद्ध लोगों का ख्याल है कि यदि भारत में स्कूली बच्चों के लिए घर में अलग-अलग कमरे हों, और उनमें उनके लिए अलग टेलीविजन की सुविधा हो, तो भारत के बच्चे अमरीकी बच्चों से पीछे रहने वाले नहीं हैं ।
एक विचित्र बात यह है कि टेलिविजन देखने के सम्बन्ध में बच्चों का रवैया कतई समझौता वाला नहीं है । खान-पान, वस्त्र, खेल-कूद आदि तमाम बातों के सम्बन्ध में वे समझौता कर लेते हैं, किन्तु टेलीविजन देखना इनका अपवाद है ।
टेलीविजन के पर्दे ने बच्चों पर न जाने कैसा जादू कर दिया है? यहां यह बताना अति प्रासंगिक होगा अनेक परिवारों में टेलीविजन देखने की इसी लत के कारण अनेक बच्चे अपने माता-पिता (जो टेलीविजन के साथ चिपके रहने की आदत के विरोधी हैं) को निहायत नापसन्दगी की नजर से देखते हैं । बच्चों और उनके माँ-बाप के बीच ऐसा टकरावपूर्ण रवैया पारिवारिक सौहार्द के लिए अनिष्टकर है । अनियन्त्रित ढंग से टेलीविजन देखते रहने से अनेक हानियों का पता लगा है ।
समाजशास्त्रियों द्वारा किये गये सर्वे और प्राप्त आकड़ों के आधार पर किये गये अध्ययन से कुछ निष्कर्ष निकले हैं, जिनका संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया जा रहा है:
- अधिक समय तक टेलीविजन देखने वाले बच्चों में घोर भौतिकवादी दृष्टिकोण पैदा हो जाता है । इससे बच्चों के चरित्र का एकांगी विकास होगा । अति भौतिकवादी दृष्टिकोण बच्चों के नैसर्गिक विकास में बाधक होता है।
- अधिक समय तक टेलीविजन से चिपके रहने के आदी बच्चे प्राय: दुराग्रही और जिद्दी बन जाते हैं । टेलीविजन पर प्रसारित विज्ञापनों के सम्बन्ध में उनका मताग्रह प्राय: सनक का रूप धारण कर लेता है ।
iii. यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जो बच्चे टेलीविजन के अधिक शौकीन हो जाते हैं, उनकी कल्पना शक्ति क्षीण होने लगती है ।
- टेलीविजन व्यसनी बच्चों में पढ़ने का शौक मन्द या समाप्त होने लगता है।
- लगातार लम्बे समय तक टेलीविजन देखते रहने से बच्चों में बड़ी थकान आ जाती है । यह तथ्य प्रयोग सिद्ध है कि पढ़ाई और टेलीविजन देखना इन दोनों में टेलीविजन देखना अधिक थकावट पैदा करता है । अत: अधिक टेलीविजन देखने वाले बच्चे प्राय: इसी काम में इतना थक जाते हैं कि उनकी पढ़ाई नहीं हो पाती ।
- देर तक टेलीविजन देखने वाले बच्चों की एकाग्रताशक्ति (सब इन्द्रियों को केन्द्रित करके एक काम में लगाने की क्षमता) क्षीण हो जाती है । वे अधिक समय तक किसी विषय या समस्या पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं रख पाते।
vii. पाया गया है कि समान प्रतिभा वाले बच्चों में से उन बच्चों को परीक्षा में अपेक्षाकृत कम अंक प्राप्त होते हैं, जो टेलीविजन देखने में बहुत समय लगाते हैं ।
viii. प्राय: देखा गया है कि जो बच्चे टेलीविजन देखने में अधिक रूचि रखते हैं, उनका खेल-कूद के प्रति अनुराग कम हो जाता है । ऐसे बच्चे खेल-कूद से अर्जित होने वाले कौशल और श्रेष्ठ नैतिक व चारित्रिक सदगुणों से वंचित रह जाते हैं ।
vii. जो बच्चे अधिक समय टेलीविजन देखने में व्यतीत करते हैं उनमें ख्याली पुलाव पकाने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है और वे प्राय: अन्तर्मुखी हो जाते हैं ।
कहने का आशय यह नहीं है कि टेलीविजन बहुत बुरी चीज या बुरी बला हैं । बुरी तो इसके साथ चिपक कर बैठने की लत है । जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि टेलीविजन विज्ञान की अनूठी देन है और इसके विवेकसम्मत प्रयोग से हानि की अपेक्षा लाभ अधिक हो सकते हैं ।
अत: बच्चों को लम्बे समय तक टेलीविजन के सामने बैठने से रोका जाना चाहिए । निःसन्देह उन्हें ऐसे कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जो प्रेरणादायक हों । बच्चों को नई खोजों, नए प्रयोगों और आधुनिकतम उपलब्धियों से सम्बन्धित कार्यक्रम अवश्य दिखाये जाने चाहिए ।
ऐसे कार्यक्रम बच्चों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते है, जो उनमें कल्पना-शक्ति को जागृत करें । समाचार और घटनाचक्र सम्बन्धी कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभदायक हैं । कुल मिलाकर सही सलाह दी जा सकती है कि बच्चों के लिए उपयोगी और सृजनात्मक क्रिया-कलापों से सम्बन्धित कार्यक्रम अवश्य दिखाए जाएं । शिक्षा सम्बन्धी प्रसारण द्वारा भी बच्चों का मार्गदर्शन करना उचित होगा तभी वे टेलीविजन के कुप्रभाव से बच सकते हैं ।
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