मेरे जीवन की सबसे रोचक यात्रा

मेरे जीवन की सबसे रोचक यात्रा | Essay on The Most Interesting Journey of My Life in Hindi

मेरे जीवन की सबसे रोचक यात्रा |Essay on The Most Interesting Journey of My Life in Hindi

मेरे जीवन की सबसे रोचक यात्रा : मेरी त्रैमासिक परीक्षा समाप्त हो रही थी । परीक्षा की तैयारी करते-करते मेरा जी ऊब गया था। परीक्षा के बाद विद्यालय कुछ दिनों के लिए बंद होनेवाला था, इसलिए मैं परीक्षा समाप्त होते ही अपने गाँव जाने का कार्यक्रम बना रहा था ।

किंतु इसी बीच स्काउट-अध्यापक ने आकर यह घोषणा की कि परीक्षा समाप्ति पर छुट्टियों में स्काउटों का एक दल अजंता की गुफाओं की सैर पर जाएगा । इसलिए जो स्काउट जाना चाहें, वे अपना नाम लिखवा दें । स्काउट विद्यालय की ओर से जाएँगे और विद्यालय ही उनका यात्रा-व्यय आदि वहन करेगा ।

अजंता की गुफाओं की सैर करने की लालसा मेरे मन में बहुत दिनों से थी । इसलिए विद्यालय से छुट्‌टी पाते ही अपने घर जाकर मैंने अपने माता-पिता से अजंता जाने की आज्ञा माँगी । माता-पिता ने मुझे सहर्ष आज्ञा दे दी । दूसरे दिन हमने अपने स्काउट-अध्यापक को अजंता जाने के लिए अपना नाम लिखवा दिया ।

इस तरह कुल पचास स्काउट अजंता जाने के लिए तैयार हो गए और रियायती टिकट खरीद लिये गए । अक्तूबर का महीना था । मौसम भी सुहावना था । स्काउट दल को जलगाँव जाना था । जलगाँव मध्य रेलवे का एक छोटा, पर प्रसिद्ध स्टेशन है । यह मुंबई से ४२० कि.मी. की दूरी पर उत्तर-पूर्व की ओर आंध्र प्रदेश में स्थित है ।

वहाँ जाने के लिए मुंबई से कई गाड़ियाँ जाती हैं । अपनी सुविधा के अनुसार हमारे स्काउट-अध्यापक ने रविवार को मुंबर्ड-हावड़ा जनता एक्सप्रेस से प्रस्थान करने का निश्चय किया । वह गाड़ी मुंबई मे सायंकाल ७.३५ बजे छूटती थी और प्रातःकाल लगभग ३.३० पर जलगाँव पहूँच जाती थी ।

रविवार के दिन प्रातःकाल उठकर मैंने जाने की तैयारी शुरू कर दी । अपने सूटकेस में कुछ आवश्यक वस्त्रों के साथ दंत मंजन, ब्रुश, तौलिया, साबुन और तेल आदि रख लिया । होल्डाल में मैंने अपना बिस्तर रखा और एक गिलास । इस तरह साधारण तैयारी कर मैं सायंकाल ६.१५ पर स्टेशन के लिए रवाना हो गया ।

चलते समय पिताजी ने मुझे १०० रुपए देकर सआशीर्वाद विदा किया । ७.०० बजते-बजते मैं स्टेशन पहूँच गया । वहाँ एक निश्चित स्थान पर स्काउट-अध्यापक के साथ मेरे साथी इंतजार कर रहे थे । मेरे पहुँचते ही सबने अपना-अपना सामान उठाया और जाकर गाड़ी में बैठ गए । ठीक समय पर गाड़ी ने सीटी दी और चल पड़ी । उस समय हम लोग बहुत प्रसन्न थे । एक घंटे में हम लोग कल्याण पहुँच गए । वहाँ हम लोगों ने हलका भोजन किया ।

हम भोजन कर ही रहे थे कि गाड़ी चल दी । हमारे साथ जल आदि का समुचित प्रबंध था, इसलिए किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हुई । खा-पीकर निश्चित होने के बाद हम लोग अजंता की गुफाओं के संबंध में बातें करते रहे । ठीक १२.३० बजे गाड़ी मनमाड पहुँची । हम लोग निद्राग्रस्त हो रहे थे, इसलिए सो गए ।

हमोर अध्यापक ने ३.०० बजे हम लोगों को जगा दिया । हमने अपना सामान ठीक किया और ३.३० बजे हम लोग जलगाँव स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर उतर गए । स्टेशन से बाहर आकर हम लोगों ने चाय पी । आने-जाने के लिए एक बस तय करके हम लोग अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गए।

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जलगाँव से अजंता की गुफाएँ लगभग ६०-६१ कि.मी. दूर हैं । मार्ग सर्पाकार है और उसमें इतने घुमाव हैं कि जब तक यात्री एकदम निकट न पहुँच जाए तब तक घुमावों का अनुमान नहीं होता । मार्ग में बाघोरा नदी पड़ती है । इसका अंतिम घुमाव समाप्त होते ही लगभग १२ मीटर ऊँचा वर्तुलाकार दीवार-सा खड़ा एक पीला पहाड़ दिखाई देता है ।

इसके बीचोबीच बारहदरियों की एक पंक्ति सी दिख पड़ती है । ये ही अजंता की गुफाएँ हैं । जलगाँव से चलकर हम लोग सूर्योदय होते-होते वहाँ पहुँच गए । अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर हम लोगों ने चाय पी और नाश्ता किया । इसके बाद कपड़े बदलकर हम लोग लगभग ८.०० बजे गुफाएँ देखने के लिए निकल पड़े ।

अजंता की गुफाएँ एक अर्द्ध-गोलाकार पहाड़ी के का भाग की चट्‌टानों को काटकर बनाई गई हैं । इन गुफाओं की संख्या २९ हें, जिनमें से २ अगम्य हैं, शेष दर्शनीय हैं । एक ही पत्थर को काटकर उसके अंदर कमरे और मूर्तियाँ बनाई गई हैं । इन गुफाओं की चित्रों में मानव की सारी चराचर सृष्टि समाई हुई है ।

देवता से लेकर दैत्यों तक के चित्र यहाँ उकेरे गए हैं । इनमें से एक भी चित्र हलका नहीं है । सभी चित्र सजीव और गतिमान हैं । अधिकांश चित्र भगवान् बुद्ध के जीवन से संबंधित हैं । बुद्ध के जन्म से लेकर महानिर्वाण तक की कहानी यहाँ रंग और रेखाओं में जी उठी है । कहीं विदेशी राजदूत अपने देश के रीति-रिवाजों के साथ चित्रित किए गए हैं तो कहीं बंदर चुहल कर रहे हैं ।

एक चित्र में हाथी-हथिनी किल्लोल करते दिखाए गए हैं । राहुल और यशोधरा के चित्र बहुत ही सुंदर हैं । चित्रों के अतिरिक्त रिक्त स्थानों और छतों पर की गई सज्जाकारी भी अत्यंत आकर्षक है । यों तो सभी गुफाओं के चित्र आकर्षक हैं, लेकिन पहली, सोलहवीं और सत्रहवीं गुफा के चित्र सर्वोत्तम हैं । दर्शक उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है ।

अजंता की गुफाओं के बारे में आज से ढाई सौ वर्ष पूर्व कोई नहीं जानता था । उस समय ये गुफाएँ जंगली पशु-पक्षियों, यायावर साधु-संन्यासियों और डाकुओं की आश्रम-स्थल थीं; किंतु आज यहाँ दिन-रात चहल-पहल रहती है । देश-विदेश के पर्यटक यहाँ आकर भारतीय चित्रकला का जो आनंद उठाते हैं, वह उन्हें विश्व के किसी अन्य स्थान में नहीं मिल सकता ।

हम लोगों ने सभी गुफाओं के चित्र इतनी तन्मयता से देखे कि हमें खाने की भी सुधि न रही । लगभग २.३० बजे हम लोगों ने एक भोजनालय में भोजन किया और थोड़ी देर विश्राम करके अपनी बस से जलगाँव लौट आए । वहाँ रात की गाड़ी पकड़कर प्रातःकाल हम लोग मुंबई पहुँच गए । अपने साथ हम लोग अजंता के अनेक चित्र खरीदकर लाए थे । ये चित्र अब भी हमें अजंता की सुखद याद दिलाते रहते हैं ।

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