घनानन्द का जीवन परिचय | Ghananand ka jivan parichay

Ghananand ka jivan parichay /Ghananand jiwan parichay/ Ritikaaal ke kavi ghananand /घनानन्द का जीवन परिचय /जीवन परिचय घनानन्द

घनानन्द का जीवन परिचय  : उनकी रचनाओं में प्रेम की आदर्श व्यंजना है, कोई आडम्बर या प्रदर्शन नहीं है, जो कुछ है हृदय की मौन पुकार है, प्रेम की सात्विकता है, अनुभूति की गहराई है ।

घनानन्द का जीवन परिचय | Ghananand ka jivan parichay

प्रस्तावना:

रीति ग्रन्थकारों में कुछ ऐसे भी कवि हुए हैं, जिन्होंने आचार्यत्व प्रदर्शन के लिए कविता नहीं लिखी, वरन् भाव-भरी कविताओं की सृष्टि करना ही अपना ध्येय बनाया । अपनी निजी भावना को काव्य में स्थान देते हुए उन्होंने श्रुंगार परक रचनाएं करते हुए भक्ति के गीत गाये । उनकी रचनाओं में प्रेम की आदर्श व्यंजना है, कोई आडम्बर या प्रदर्शन नहीं है, जो कुछ है हृदय की मौन पुकार है, प्रेम की सात्विकता है, अनुभूति की गहराई है । ऐसे कवियों में कविवर घनानन्दजी का स्थान अत्यन्त शीर्ष पर है ।

जीवन वृत:

रीतिकाल के स्वच्छंद प्रेममार्गी कवियों में घनानंद का स्थान सर्वश्रेष्ठ कवियों में रहा है। घनानंद के जन्म वर्ष और मृत्यु वर्ष के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं, फिर भी अधिकतर विद्वान इनका जन्म काल 1683 ईसवी और मृत्यु 1760 ईसवी स्वीकार करते हैं। यह दिल्ली के मुगल बादशाह मोहम्मदशाह रंगीला के दरबार में मीर मुंशी थे और बादशाह के दरबार की नृतकी सुजान से प्रेम करते थे। कहा जाता है कि एक बार इनके विरोधियों ने बादशाह को बताया कि मीर मुंशी साहब बहुत अच्छा गाते हैं। बादशाह ने गाने के लिए कहा। उन्होंने गाने के लिए टाल-मटोल कर दी परंतु सुजान के कहने पर इन्होंने आत्म-विभोर होकर गाया। इस कारण इनको बादशाह के कोप का भाजन बनना पड़ा और दिल्ली छोड़ना पड़ा। चलते समय उन्होंने सुजान को साथ चलने के लिए कहा। परंतु सुजान ने इनके साथ जाने से इंकार कर दिया।

सुजान के प्रेम से विरक्त होकर घनानंद वृंदावन चले गए और वहां उन्होंने निंबार्क संप्रदाय की दीक्षा ले ली। परंतु वे सुजान को भुला नहीं पाए। कालांतर में इनका सुजान प्रेम राधा-कृष्ण के प्रेम का पर्याय बन गया और यह कृष्ण-भक्ति में रम गए। इन्होंने अपने काव्य के प्रत्येक पद में सुजान शब्द का प्रयोग किया है और सुजान ही इनके काव्य की मूल प्रेरणा बनी। मथुरा पर अहमदशाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के समय, 1760 ईसवी में ये मार डाले गए। विश्वनाथप्रसाद मिश्र के मतानुसार उनकी मृत्यु अहमदशाह अब्दाली के मथुरा पर किये गए द्वितीय आक्रमण में हुई थी।

रचनाएँ:

घनानंद द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 41 बताई जाती है- 

सुजानहित, कृपाकंदनिबंध, वियोगबेलि, इश्कलता, यमुनायश, प्रीतिपावस, प्रेमपत्रिका, प्रेमसरोवर, व्रजविलास, रसवसंत, अनुभवचंद्रिका, रंगबधाई, प्रेमपद्धति, वृषभानुपुर सुषमा, गोकुलगीत, नाममाधुरी, गिरिपूजन, विचारसार, दानघटा, भावनाप्रकाश, कृष्णकौमुदी, घामचमत्कार, प्रियाप्रसाद, वृंदावनमुद्रा, व्रजस्वरूप, गोकुलचरित्र, प्रेमपहेली, रसनायश, गोकुलविनोद, मुरलिकामोद, मनोरथमंजरी, व्रजव्यवहार, गिरिगाथा, व्रजवर्णन, छंदाष्टक, त्रिभंगी छंद, कबित्तसंग्रह, स्फुट पदावली और परमहंसवंशावली। 

घनानन्दजी के काव्य में अपने प्रिय सुजान के प्रति प्रेम की व्यंजना यत्र-तत्र मिलती है । प्रेम की अन्तर्दशा पीड़ा का चित्रण उन्होंने जैसा किया है, वैसा किसी ने नहीं किया । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार ”घनानन्द ने तो अपने प्रेम के ताप को बिहारी की तरह न तो थर्मामीटर के पैमाने पर नापा है, न ही बाहरी उछलकूद मचाई है।“

घनानन्द की काव्य भाषा ब्रज है, जिसमें करुण व  श्रुंगार रस की प्रभावपूर्ण, मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है । उनके काव्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्पेक्षा का प्रयोग उन्होंने किया है । लाक्षाणिक भाषा का प्रयोग उनके काव्य की विशेषता है । आवश्यकतानुसार सूक्तियों, कहावतों का प्रयोग उन्होंने किया है । घनानन्द ने अपने काव्य में कवित्त एवं सवैया छन्द का प्रयोग विशेषत: किया है ।

उपसंहार:

हिन्दी की सम्पूर्ण काव्यधारा का अनुशीलन करने के बाद यह ज्ञात होता है कि इस धारा के अन्य कवियों-रसखान, आलम, बोधा ठाकुर भी है, किन्तु उन्होंने प्रेमानुभूति का ऐसा वर्णन नहीं किया है, जैसा कवि घनानन्द ने किया है ।

घनानन्द ने अपनी प्रेयसी सुजान को आलम्बन बनाकर उसके रूप-सौन्दर्य का बड़ा ही गरिमापूर्ण, शालीनता, शिष्टता एवं औदात्यपूर्ण वर्णन किया है । सुजान की तिरछी चितवन मृदु मुसकान के अक्षय सौन्दर्य में प्रेम की गूढ़ता भरी है । सुजान की निष्ठुरता को वे सह लेते हैं । इस प्रकार उनका प्रेम लौकिकता से अलौकिकता की ओर अग्रसर हो जाता है ।

इसे भी पढ़ें : डॉ० धर्मवीर भारती का जीवन परिचय

Leave a Comment

close