हम्मीर रासो की सम्पूर्ण जानकारी 

हम्मीर रासो की सम्पूर्ण जानकारी

हम्मीर रासो की सम्पूर्ण जानकारी : हम्मीर की कथा को लेकर हिन्दी में कई ग्रन्थों का निर्माण हुआ है।

हम्मीर रासो की सम्पूर्ण जानकारी

हम्मीररासो नाम के कम से कम तीन काव्य मिलते हैं जिनकी भाषा, रचयिता और काल अलग-अलग हैं।

  • हम्मीर रासो – शारंगधर (1357)
  • हम्मीर रासो – महेश कवि
  • हम्मीर रासो – जोधराज (1875)

इनमें रणथम्भौर के राणा हम्मीर के चरित्र का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।

हम्मीरदेव सम्राट् पृथ्वीराज के वंशज थे।

उन्होंने दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन को कई बार परास्त किया था और अन्त में अलाउद्दीन की चढ़ाई में वे मारे गए थे। इस दृष्टि से इस काव्य के नायक देश के प्रसिद्ध वीरों में हैं।

(1) सारंगधर ने किसकी रचना की?

शारंगधर ‘रणथंबोर के राजा ‘हमीर’ के गुरु ‘राघवदेव’ के पोते थे। उनके पिता का नाम ‘दामोदर’ था। शारंगधर अपने समय में संगीत के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध नाम थे। सारंगधर ने ‘हमीर रासो’ ग्रंथ की रचना की जिसमें उन्होंने राजा ‘हमीर’ के चरित्र का बखान किया है। इनका समय विक्रम की 14वीं शदी (1357) का अन्तिम चरण माना जाता है।

वर्तमान में हम्मीररासो की कोई मूल प्रति नहीं मिलती।

प्राकृत पैंगलम में हम्मीर की प्रशस्ति में कई (8) छन्द दिये हुए हैं।

प्राकृत पैंगलम छंद शास्त्र विषयक ग्रन्थ है।

  • प्राकृत पैंगलम को राहुल सांकृत्यायन जी सारंगधर की रचना न मानकर ‘जज्जल’  कवि की रचना मानते है जबकि आचार्य शुक्ल जी ने जज्जल को एक चरित्र  माना हैं।
  • प्राकृत पैंगलम में बब्बर , जज्जल , विधाधर , सारंगधर आदि के पदों का संकलन है।
  • प्राकृत पैंगलम के संकलनकर्ता – लक्ष्मीधर
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का अनुमान है कि वे पद शार्ङ्गधर के “हम्मीररासो” से ही उद्धृत किये गये हैं।
  • शुक्ल जी ने इस रचना से अपभ्रंश एवं रासो रचनाओं की समाप्ति मानी हैं।

“हम्मीर शब्द अमीर का विकृत रूप है जो किसी पात्र का नाम न होकर एक विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता रहा है’’ : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं-

“परम्परा से प्रसिद्ध है कि उन्होने हम्मीर रासो नामक एक वीरगाथा काव्य की भी भाषा मे रचना की थी। यह काव्य आजकल नही मिलता – उसके अनुकरण पर बहुत पीछे का लिखा हुआ एक ग्रन्थ ‘हम्मीर रासो’ नाम का मिलता है। प्रकृति-पिंगल सूत्र’ उलटते पलटते मुझे हम्मीर की चढाई वीरता आदि के पद्य छंदों के उदाहरणों में मिले। मुझे पूरा निश्चय है कि ये पद्य असली ‘हम्मीर रासो’ के ही हैं।“

(2) हम्मीर रासो के रचयिता कौन है?

  1. हम्मीर रासो के रचयिता महेश कवि है।
  2. यह रचना जोधराज कृत हम्मीर रासो के पहले की है।
  3. छन्द संख्या लगभग 300 है।
  4. इसमें रणथंभौर के राणा हम्मीर का चरित्र वर्णन है।

(3) हम्मीर रासो कब लिखा गया?

  • जोधराज गौड़ ब्राह्मण बालकृष्ण के पुत्र थे। इन्होंने नीबँगढ़ (वर्तमान नीमराणा––अलवर) के राजा चंद्रभान चौहान के अनुरोध से “हम्मीर रासो” नामक एक बड़ा प्रबन्ध-काव्य संवत् 1875 में लिखा जिसमें रणथंभौर के प्रसिद्ध वीर महाराज हम्मीरदेव का चरित्र वीरगाथा-काल की छप्पय पद्धति में वर्णन किया गया है।
  • जोधराज ने चन्द आदि प्राचीन कवियो की पुरानी भाषा का भी यत्र-तत्र अनुकरण किया है;––जैसे जगह जगह ‘हि’ विभक्ति के प्राचीन रूप ‘ह’ का प्रयोग।
  • ‘हम्मीररासो’ की कविता बड़ी ओजस्विनी है।
  • घटनाओं का वर्णन ठीक-ठीक और विस्तार के साथ हुआ है।

काव्य का स्वरूप देने के लिये कवि ने कुछ घटनाओं की कल्पना भी की है। जैसे महिमा मंगोल का अपनी प्रेयसी वेश्या के साथ दिल्ली से भागकर हम्मीरदेव की शरण में आना और अलाउद्दीन को दोनों को माँगना। यह कल्पना राजनीतिक उद्देश्य हटाकर प्रेम-प्रसंग को युद्ध का कारण बताने के लिये, प्राचीन कवियो की प्रथा के अनुसार, की गई है।

जोधराजकृत हम्मीररासो का सम्पादन श्यामसुन्दर दास ने किया है। यह हम्मीररासो अहीरवाटी बोली में रचित है। सबसे पहले इसमें सृष्टि का वर्णन है। इस ग्रन्थ में चौहानों की उत्पत्ति के विषय में जो कथा आयी है वह पृथ्वीराज रासो की कथा से मेल खाती है।

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