हर मन का उत्सव – आजादी का अमृत महोत्सव निबंध

हर मन का उत्सव – आजादी का अमृत महोत्सव निबंध/आत्मनिर्भर भारत शक्तिशाली भारत-स्वावलंबी भारत

हर मन का उत्सव – आजादी का अमृत महोत्सव

भूमिका :

हर मन का उत्सव – आजादी का अमृत महोत्सव निबंध : आज हर भारतीय के मन में उत्सव है क्योंकि हम “आजादी का अमृत महोत्सव” मना रहे हैं। इस आजादी के लिए हमने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है।  मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में स्वतंत्रता पूर्वक जीने का अधिकार है। संसार में सभी प्राणी स्वतंत्र रहना चाहते हैं। यहां तक कि पिंजरे में बंद पक्षी भी स्वतंत्रता के लिए निरंतर अपने पंख फड़फड़ाता रहता है। उसे सोने का पिंजरा, सोने की कटोरी में रखा स्वादिष्ट भोजन भी अच्छा नहीं लगता। वह भी स्वतंत्र होकर मुक्त गगन में स्वच्छंद उड़ना चाहता है। मनुष्य को मनुष्य हैतो, उसे भी स्वतंत्रता प्रिय है। वह भी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता हुआ प्राणों की बाजी लगा देता है।

महाकवि तुलसीदास जी का कहना है कि “पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं” – इस उक्ति का अर्थ यह है कि पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख को अनुभव नहीं कर सकता है। सुख पराधीन और परावलंबी लोगों के लिए नहीं बना है। पराधीन एक तरह का अभिशाप होता है। पराधीनता के लिए कुछ लोग भगवान को दोष देते हैं लेकिन ऐसा नहीं है वे स्वंय तो अक्षम होते हैं और भगवान को दोष देते रहते हैं भगवान केवल उन्हीं का साथ देता है जो अपनी मदद खुद कर सकते हैं। महान स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक जी ने कहा था “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।”

स्वतंत्रता के लिए संघर्ष :

15 अगस्त 1947 से पहले लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेज सरकार हम पर शासन कर रही थी। इससे पूर्व 230 वर्षों तक मुगलो ने हम पर राज किया। लेकिन धीरे-धीरे भारत के लोगों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न होने लगी  और भारतवासी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष करने लगे। भारत वासियों ने लंबे संघर्ष के पश्चात स्वतंत्रता प्राप्त की। सन 1857 को हमारा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ।

अंग्रेजों ने इसे ‘गदर’ या ‘विद्रोह’ का नाम दिया तो भारतीयों ने इसे “स्वतंत्रता संग्राम” कहा। रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहब, राव तुलाराम जैसे देशभक्तों ने अंग्रेजों को यहां से भगाने के लिए तलवार उठाई। इसमें देश के असंख्य वीरों ने खुलकर भाग लिया। परंतु देश में कुछ ऐसे गद्दार और अंग्रेजों के पिट्ठू राजा भी थे, जिन्होंने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए अंग्रेजों का साथ दिया। इसलिए स्वतंत्रता का यह प्रथम प्रयास सफल नहीं हुआ।

भारत की स्वतंत्रता की कहानी भी लगातार संघर्षों और बलिदानों की कहानी है।

भारत की स्वतंत्रता की कहानी भी लगातार संघर्षों और बलिदानों की कहानी है। स्वतंत्रता की चिंगारी जो 1857 में सुलगी थी, उसे महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, लोकमान्य तिलक, सरदार पटेल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आदि ने इसे शोला बना दिया। भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर ने इसे हवा दी। हम स्वतंत्रता पाने के लिए संघर्ष करते रहे। देश भक्तों ने जेल यात्राएं की, गोलियां खाई, अनेक वीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अनेक बार सत्याग्रह किया। स्वतंत्रता उन्होंने दांडी यात्रा करके नमक कानून को भी भंग किया। अंग्रेज सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों को जेलों में भर दिया और जनता पर अत्याचार किए जाने लगे। अंत में 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में “अंग्रेजों भारत छोड़ो” का नारा लगाया। इस आंदोलन में बहुत से भारतीयों ने भाग लिया। परिणाम स्वरूप 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।

प्रकृति भी स्वतंत्रता का संदेश देती है :

प्रकृति का कण-कण स्वतंत्र होता है। प्रकृति को अपनी स्वतंत्रता में किसी भी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं होता है। जब-जब मनुष्य प्रकृति के स्वतंत्र स्वरूप के साथ छेड़छाड़ करता है तो प्रकृति उसे अच्छी तरह से सजा देती है। जब मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसका परिणाम प्रदुषण, भूकंप, भू-क्षरण, बाढ़ें, अतिवृष्टि और अनावृष्टि होता है।

जब हम दो फूलों की तुलना करते हैं – एक तो उपवन में लगा होता है जो प्रकृति को सुंदरता और सुगंध प्रदान करता है और दूसरा फूलदान में लगा होता है जो मुरझा जाता है। जो फूल उपवन में होता है खुशी से झूमता है लेकिन जो फूलदान में लगता है वह केवल अपनी किस्मत को रोता रहता है। सर्कस के पशु-पक्षी अगर बोल पाते तो उनसे हमे पराधीनता के कष्टों का पता चलता। वे बेचारे अपने दुखों को बोलकर भी प्रकट नहीं कर पाते हैं।

भारत की पराधीनता और उसका शोषण :

हमारे भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। हमारा भारत कभी मानवता के सागर के लिए जाना जाता था। प्राचीन समय में हमारा देश सबसे उन्नत था। लेकिन कई सालों तक पराधीनता के होने की वजह से हमारे देश की स्थिति ही बदल गई है। भारत आज के समय में दुर्बल, निर्धन और सिकुडकर रह गया है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए कई महान लोगों ने अपने प्राणों को त्याग दिया था।

लेकिन स्वाधीन होने के कई सालों बाद भी मानसिक रूप से हम अभी तक स्वाधीन नहीं हो पाए हैं। हमने विदेशी संस्कृति, विदेशी भाषा को अपनाकर अपने आपको आज तक मानसिक पराधीनता से परिचित करवा रही है।

आजादी का अर्थ उदंडता नहीं :

भारत के लोग ही पराधीनता को अधिक समझते हैं क्योंकि उन्होंने ही पुराने समय से अंग्रेजों द्वारा पराधीनता को सहन किया है। पराधीनता के महत्व को केवल वो व्यक्ति समझ सकता है जो कभी खुद पराधीन रहा हो। हमारा देश कई सालों से लगातर पराधीन होता आ रहा है। इसकी वजह से हम केवल व्यक्तिगत रूप से पिछड़ गए हैं और सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारे देश का पतन हो रहा है।

(Essay on Har man ka utsav azadi ka amrit mahotsav in Hindi)

देश के पराधीन होने की वजह से हम विदेशी संस्कृति और सभ्यता से बहुत ही बुरी तरह से प्रभावित हैं। आज हम स्वतंत्र होने के बाद भी अपनी संस्कृति और सभ्यता को पूरी तरह से भूल चुके हैं। हमें स्वाधीनता का सही मतलब पता होने की वजह से आज तक मानसिक पराधीनता के लिए स्वतंत्र होने का झूठा अनुभव और गर्व करते हैं। आज के समय में हमारी यह स्थिति हो गई है कि हम आज तक स्वाधीनता के मतलब को गलत समझ रहे हैं। आज हम स्वाधीनता के गलत अर्थ को स्वतंत्रता से लगा कर सबको अपनी उदण्डता का परिचय दे रहे हैं।

“आजादी का अमृत महोत्सव”:

आज जब हम आजादी की 75वीं वर्षगांठ बनाने के लिए “आजादी का अमृत महोत्सव” मना रहे हैं तो इस समय हम उन देश प्रेमियों को याद करते हैं, जिन्होंने अपने सारे सुखों को ठोकर मार कर अंग्रेजों से केवल इसलिए लोहा लिया था ताकि दूसरे देश वासी एवं भावी भारतीय सुखचैन और सम्मान के साथ जी सके। निश्चित रूप से उनके बलिदान रंग लाए।

परंतु अब हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम देश को इतना सुरक्षित और मजबूत बनाएं कि कभी कोई विदेशी इसकी ओर आंख उठाकर भी ना देख सके। केवल स्वतंत्रता दिवस में ही हमारा कर्तव्य पूरा नहीं हो जाता। हम सबको अपने अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और देश के हित में विभिन्न समस्याओं का सामना करना चाहिए।

राष्ट्रोंन्नति में स्वाधीनता का महत्व :

हमारा यह कर्तव्य होता है कि हमें किसी भी राजनैतिक, सांस्कृतिक और किसी भी अन्य प्रकार की पराधीनता को अपनाना नहीं चाहिए। हर राष्ट्र के लिए स्वाधीनता का बहुत महत्व होता है। कोई भी राष्ट्र तभी उन्नति कर सकता जब वह स्वतंत्र हो। जो देश या जाति स्वाधीनता का मूल्य नहीं समझते हैं और स्वाधीनता को हटाने के लिए प्रयत्न नहीं करते वे किसी-न-किसी दिन पराधीन जरुर हो जाते हैं और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। स्वाधीनता को पाने के लिए क़ुरबानी देनी पडती है। स्वाधीनता का महत्व राष्ट्र में तभी होता है जब पराधीनता प्रकट नहीं होती है।

उपसंहार :

हमें “आत्मनिर्भर भारत-शक्तिशाली भारत-स्वावलंबी भारत” के सपने को सच करते हुए अपनी कर्तव्य-परायण भावना का परिचय राष्ट्र के प्रति समर्पित होकर करना चाहिए, ताकि हम इतने शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर सके। ताकि भविष्य में कोई भी आसुरी शक्ति भारत की ओर आँख उठाकर भी न देख सकें। हमारे पूर्वजों ने हमें जो आजादी दी है, उसे हमें सुरक्षित रखना है तथा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर रखना है।

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