हिंदी कहानी उद्भव और विकास । Hindi Kahani Udbhav aur Vikas
हिंदी कहानी उद्भव और विकास : आधुनिक हिंदी कहानी का स्वरूप अंग्रेजी तथा बांग्ला कहानी से प्रभावित है। समय के साथ इसने अपनी पहचान भी बनायीं हैं।
हिंदी की प्रथम कहानी को लेकर विद्वानों में मतभेद है । कुछ विद्वान इंशा अल्ला खां द्वारा रचित ‘रानी केतकी की कहानी (1803 ईo) को हिंदी की प्रथम कहानी मानते हैं । इसी प्रकार अमेरीकी पादरी रेवरेंड जेo न्यूटन द्वारा रचित ‘एक जमींदार का दृष्टान्त’ ( 1871 ईo ), ‘राजा भोज का सपना’ (राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ), एक अद्भूत अपूर्व स्वप्न ( भारतेन्दु हरिश्चन्द्र )’, ‘ग्यारह वर्ष का समय ( 1903 ईo)’ (आचार्य रामचंद्र शुक्ल ), ‘इंदुमती ( 1900 ईo )’ ( किशोरी लाल गोस्वामी ) आदि कहानियों पर भी हिंदी की प्रथम कहानी को लेकर चर्चा हुई । अधिकांश विद्वान जहाँ किशोरी लाल गोस्वामी की कहानी ‘इंदुमती’ को हिंदी की प्रथम कहानी मानते हैं वहीं आधुनिक शोध के अनुसार माधव प्रसाद मिश्र के द्वारा रचित ‘एक टोकरी भर मिट्टी ( 1901 ईo )’ को हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी माना जाता है ।
हिंदी कहानी उद्भव और विकास । Hindi Kahani Udbhav aur Vikas
हिंदी कहानी की विकास यात्रा को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है :
प्रेमचंद पूर्व युग
प्रेमचंद युग
प्रेमचंदोत्तर युग
स्वातंत्र्योत्तर युग
हिंदी कहानी उद्भव और विकास
प्रेमचंद पूर्व युग
हिंदी कहानी के विकास की यात्रा ‘सरस्वती‘ तथा ‘इंदु‘ पत्रिकाओं के प्रकाशन से आरंभ हुई । हिंदी की आरंभिक कहानियां इन्ही पत्रिकाओं में छपी । सन 1907 में बंग महिला ( राजेंद्र बाला घोष ) की कहानी ‘दुलाईवाली ( 1907 ईo)‘ प्रकाशित हुई । सन 1910-11 में जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘ग्राम ( 1911ईo )’ प्रकाशित हुई । प्रेमचंद-युग में चंद्रधर शर्मा गुलेरी का नाम भी प्रमुख है । उसके द्वारा लिखित कहानी ‘उसने कहा था ( 1915 ईo )’ अत्यंत लोकप्रिय हुई । यह कहानी उदात्त प्रेम की कहानी है । कला की दृष्टि से यह कहानी उत्कृष्ट मानी जाती है ।
प्रेमचंद-पूर्व युग में प्रेमचंद, विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक, सुदर्शन, पांडेय बेचैन शर्मा उग्र, आचार्य चतुरसेन शास्त्री आदि कहानीकार आते हैं ।प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ तथा विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक की कहानी ‘रक्षाबंधन ( 1913 ईo)‘ प्रेमचंद-पूर्व युग की कहानियां कही जा सकती है । इस युग में चरित्र-प्रधान, घटना-प्रधान व ऐतिहासिक कहानियां लिखी गई। कहानी का वास्तविक स्वरूप प्रेमचंद युग में निखर कर सामने आया ।
प्रेमचंद युग
प्रेमचंद युग से अभिप्राय उस युग से है जिसमें प्रेमचंद ने प्रौढ़ कहानियों की रचना की । इस युग में हिंदी कहानी के स्वरूप का विकास हुआ । इस युग में हिंदी कहानी में कलात्मकता का विकास हुआ । इस युग में हिंदी के संस्कृत, परिष्कृत व कलात्मक रूप का प्रयोग कहानी में हुआ । कहानी के सभी आवश्यक तत्व यथा कथानक, संवाद व कथोपकथन, चरित्र-चित्रण, देशकाल व वातावरण, भाषा, उदेश्य आदि सभी में निखार आया । किसी युग में कहानी में भावनाओं व मानसिक द्वंद्व का समावेश हुआ ।
इस युग के सबसे बड़े कहानीकार प्रेमचंद जी हैं । उन्होंने 300 से अधिक कहानियां लिखिए जो मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं । उनकी प्रमुख कहानियां हैं- बड़े घर की बेटी, पूस की रात, पंच परमेश्वर, ठाकुर का कुआं, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा, कफन आदि ।
प्रेमचंद ने अपनी कहानी-यात्रा आदर्शवाद से आरंभ की परंतु धीरे-धीरे वे यथार्थवाद की ओर उन्मुख हुए ।उन्होंने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों की विभिन्न समस्याओं व बुराइयों का वर्णन किया । उन्होंने हिंदी कहानी को नया आयाम प्रदान किया इसीलिए उन्हें ‘कहानी-सम्राट’ भी कहा जाता है ।
प्रेमचंद-युग के दूसरे प्रमुख कहानीकार जयशंकर प्रसाद ( Jaishankar Prasad ) जी हैं । आकाशदीप, पुरस्कार, गुंडा आदि उनकी प्रतिनिधि कहानियां हैं । उन्होंने मुख्यतः ऐतिहासिक कहानियां लिखी ।
विश्वम्भर नाथ शर्मा कौशिक की प्रमुख कहानियां हैं – ताई, रक्षाबंधन, पगली, काकी आदि ।
सुदर्शन की कहानियां आदर्शवादी हैं । उनकी कहानी ‘हार की जीत’ हिंदी साहित्य जगत में बहुत अधिक लोकप्रिय हुई ।
प्रेमचंद युग के दो अन्य प्रसिद्ध साहित्यकार हैं- पांडेय बेचैन शर्मा कौशिक व यशपाल ( Yashpal ) । उग्र की कहानियाँ कटु यथार्थवादी हैं । उन्होंने समाज के विभत्स चित्र अपनी कहानियों में प्रस्तुत किये । उनकी प्रतिनिधि कहानियों में प्रमुख हैं- ‘उसकी माँ‘ व ‘सनकी अमीर‘ ।
यशपाल मार्क्सवादी विचारधारा के कवि हैं । उन्होंने अपनी कहानियों में ऐसे समाज व परम्पराओं की आलोचना की जो गरीबों का शोषण करते हैं । तर्क का तूफ़ान, फूलों का कुर्ता, अभिशाप आदि उनकी प्रमुख कहानियां हैं ।
उपेंद्रनाथ अश्क़, भगवती चरण वर्मा, भगवती प्रसाद वाजपेयी आदि भी प्रेमचंद-युग के कहानीकार हैं ।
प्रेमचंदोत्तर
प्रेमचंदोत्तर युग में कहानी लेखन में अनेक परिवर्तन हुए । इस युग में एक तरफ मनोवैज्ञानिक कहानियां लिखी गई तो दूसरी तरफ सामाजिक कहानियां लिखी गई ।
प्रेमचंदोत्तर युग के प्रमुख कहानीकारों में यशपाल, अमृतराय, रांगेय राघव, भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर व चंद्रगुप्त विद्यालंकार ।
प्रेमचंदोत्तर युग के अधिकांश कहानीकार मार्क्सवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे । विशेषत: यशपाल ने मार्क्सवाद को अपनी कहानियों का आधार बनाया । इन्हें हम यथार्थवादी कहानीकार भी कह सकते हैं । तर्क का तूफ़ान, फूलों का कुर्ता, अभिशाप आदि इनकी प्रमुख कहानियां हैं ।
प्रेमचंदोत्तर युग में मनोवैज्ञानिक कहानियां भी लिखी गई । मनोवैज्ञानिक कहानीकारों में जैनेंद्र कुमार, इलाचंद्र जोशी तथा अज्ञेय का नाम प्रमुख है । जैनेंद्र कुमार ( Jainedra Kumar ) की प्रमुख कहानियां है- नीलम देश की राजकन्या, एक दिन, पाजेब, वातायन आदि । परंपरा, विपथगा, शरणार्थी आदि अज्ञेय ( Agyey ) की प्रमुख कहानियां हैं ।
आंचलिक कहानीकारों में फणीश्वर नाथ रेणु तथा मारकंडेय का नाम उल्लेखनीय है । रेणु की प्रमुख कहानियां हैं- लाल पान की बेगम तथा तीसरी कसम । मारकंडेय ने हंसा जाई अकेला तथा गुलरा के बाबा जैसी आंचलिक कहानियां लिखी ।
स्वातंत्र्योत्तर युग
स्वतंत्रता के पश्चात की कहानियों में कथ्य तथा शिल्प की दृष्टि से अनेक नवीन प्रयोग हुए लंबी यात्रा के पश्चात हिंदी कहानी ‘नई कहानी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गई । स्वातंत्र्योत्तर युग की कहानियों को निम्नलिखित उप शीर्षकों में विभक्त किया जा सकता है :
नई कहानी:
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात नई चेतना का विकास हुआ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आम आदमी ने जिन आशाओं और सपनों को संजोया था वे अब टूटने लगे थे । राजनीतिक स्तर पर जहाँ भ्रष्टाचार बढ़ने लगा था वहीं सामाजिक स्तर पर जातिवाद और अधिक भयानक रूप धारण करने लगा था। ऐसे वातावरण में लेखकों ने इन समस्याओं पर जो कहानियां लिखी वह ‘नई कहानी’ ( Nai Kahani ) के नाम से विख्यात हुई ।
मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, अमरकांत, शेखर जोशी, भीष्म साहनी आदि कहानीकारों की कहानियां ‘नई कहानी’ के अंतर्गत आती हैं ।
सहज कहानी :
सहज कहानी ( Sahaj Kahani ) की बात अमृतराय ने उठायी । ‘सहज’ शब्द की व्याख्या करते हुए अमृतराय ने कहा – “सहज वह है जिसमें आडंबर नहीं है, ओढ़ा हुआ मैनरिज्म या मुद्रा-दोष नहीं है ।”
उनके अनुसार ‘सहज कहानी’ वह है जो सहज कथा-रस से युक्त हो । सहज कहानी के संबंध में उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि सहज कहानी न तो कोई नारा है और न ही कोई आंदोलन । वास्तव में ‘सहज कहानी’ अकेले कंठ की पुकार बनकर रह गई । उनकी इस वैचारिकता को अन्य कहानीकारों का समर्थन नहीं मिला ।
सचेतन कहानी :
सचेतन कहानी ( Schetan Kahani ) डॉo महीप सिंह की देन मानी जाती है । ‘सचेतन कहानी’ व्यक्तिवाद का विरोध करती है और मनुष्य को उसके समग्र परिवेश के संदर्भ में स्वीकार करती है ।
‘अकहानी’ ( Akahani ) में सेक्स का जबरदस्त आतंक था लेकिन ‘सचेतन कहानी’ इस आतंक से मुक्त है । ‘सचेतन कहानी’ में विविधता और गहराई दोनों मिलती हैं ।
समांतर कहानी :
समांतर कहानी ( Samanantar Kahani ) की अवधारणा कमलेश्वर ने प्रस्तुत की । अक्टूबर, 1974 के ‘सारिका‘ पत्रिका के अंक से ‘समांतर कहानी’ का दौर शुरू हुआ ।
कमलेश्वर , कामतानाथ, जितेंद्र भाटिया, मिथिलेश्वर आदि कहानीकारों ने इसका समर्थन किया ।
परंतु ‘समांतर कहानी’ के अधिकांश पक्षधर इसे आंदोलन नहीं मानते थे । मिथिलेश्वर ने इसे आंदोलन मानने से इनकार किया है परंतु इसकी खूबियों की प्रशंसा की है । अनेक आलोचकों ने इसकी आलोचना भी की है । शैलेश मटियानी एक प्रमुख कहानीकार हैं जो इसकी आलोचना करते हैं । उनके अनुसार समांतर कहानी समकालीन दौर का सर्वाधिक हास्यास्पद तथा हानिकारक आंदोलन है ।
सक्रिय कहानी और जनवादी कहानी :
‘सक्रिय कहानी’ ( Sakriya Kahani ) की अवधारणा राकेश वत्स ने प्रस्तुत की । राकेश वत्स के अनुसार ‘सक्रिय कहानी’ का अर्थ है- “आदमी की चेतनात्मक ऊर्जा और जीवंतता की कहानी ।”
सक्रिय कहानी और जनवादी कहानी एक बिंदु पर बहुत निकट हैं और वह है – व्यवस्था विरोध । दोनों आधुनिक आंदोलनों के कहानीकार आर्थिक- सामाजिक शोषण के विरुद्ध हैं और इसके लिए मौजूद व्यवस्था को जिम्मेदार मानते हैं ।
बहुत से कहानीकारों ने इन आंदोलनों से दूर रहते हुए भी सार्थक सृजन किया । इन आंदोलनों से जुड़े कहानीकार भी इन आंदोलनों से हटकर कहानियां लिखते रहे । कहानी आज भी निरंतर विकास की ओर अग्रसर है । भाषा, भाव व शिल्प की दृष्टि से कहानी में आज भी निरंतर नवीन प्रयोग हो रहे हैं । परंतु इन्हें आंदोलन का नाम नहीं दिया जा रहा । आज की कहानी को हम ‘21वीं सदी की कहानी’ नाम दे सकते हैं ।
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