वैदिक साहित्य का इतिहास | History Of Vedic Literature In Hindi
History Of Vedic Literature In Hindi वैदिक साहित्य का इतिहास : वेद शब्द विद् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है जानना या ज्ञान। कहा जाता है कि वेदों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से आदान प्रदान होता रहा और इसलिए इन्हें श्रुति अथवा देविज्ञान भी कहा जाता था। वेद चार है जिनके नाम ऋग्वेद, सामवेद युजुर्वेद तथा अथर्ववेद है। इस लेख में हम वैदिक काल साहित्य पुस्तकों एवं ग्रंथों का अध्ययन करेगे।
वैदिक साहित्य का इतिहास | History Of Vedic Literature In Hindi
प्रथम तीन वेदों को संहिताओ में विभाजित किया गया हैं। वेदों को अच्छी तरह स्मरण किया जाता था और गुरू शिष्य परम्परा द्वारा उन्हें जीवित रखा गया, वेदों के रचियता अथवा संकलनकर्ता कृष्णद्वैपायन कहे जाते हैं। इन्हें वेदों के प्रथक्करण व्यास के कारण वेदव्यास भी कहा जाता हैं।
ऋग्वेद का अर्थ रचियता ग्रंथ सहिता हिंदी में (History Of rig veda in hindi)
ऋग्वेद को विश्व की प्राचीनतम धार्मिक पुस्तक मानी जाती है। यह अनेक ऋषियों द्वारा रचित ऋचाओं या सूक्तों का संकलन है, जिसका यज्ञादि एवं अन्य अनुष्ठानों के समय श्रद्धा सहित वाचन किया जाता था।
ऋग्वेद में 10 मंडल 1028 श्लोक तथा लगभग 10,600 मंत्र है। ऋग्वेद में इंद्र, अग्नि, वरुण आदि देवताओं की स्मृति में रची गई प्रार्थनाओं का संकलन है तथा इनका पाठ करने वाले ब्राह्मण को होत्र या हाता कहा गया है।
कहा जाता है कि दसवां मंडल इसमें बाद में जोड़ा गया क्योंकि इसकी भाषा प्रारम्भिक नौ मंडलो से भिन्न है दसवें मंडल में प्रसिद्ध पुरूष सूक्त है
जिसमें ब्रह्मा के मुख भुजाओं और जाँघों और पैरों से चार वर्णों अर्थात क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र की उत्पत्ति का उल्लेख है। ऋग्वेद के तीसरे मंडल में गायत्री मन्त्र का उल्लेख है यह मंत्र सूर्य की स्तुति में हैं।
यजुर्वेद की मुख्य बाते रचना, रचनाकार व अर्थ (yajurveda in hindi)
यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान ग्रंथ है जिसमे विभिन्न यज्ञों से सम्बन्धित अनुष्ठान विधियों का उल्लेख है इसका पाठ करने वाले ब्राह्मणों को अध्वर्यु कहा गया है।
यजुर्वेद को दो भागों में बांटा गया है। कृष्ण यजुर्वेद (गद्य) व शुक्ल यजुर्वेद (पद्य) यजुर्वेद एकमात्र ऐसा वेद है गद्य और पद्य दोनों में रचा गया है।
सामवेद के रचियता मंत्र वेद कथा (sama veda in hindi pdf)
साम का अर्थ गान से है इसकी ऋचाओं का गान करने वाले ब्राह्मण को उद्ग्रात कहा गया है। साम वेद में कुल 1603 ऋचाएं है जिनमें 99 के अतिरिक्त शेष ऋचाओं को ऋग्वेद से लिया गया है।
वेदों में सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना गया है। सामवेद में ही सर्वप्रथम सात स्वरों की जानकारी प्राप्त होती हैं।
अथर्ववेद इन हिन्दी जादू की किताब (atharvaveda meaning in hindi)
यह पूर्वोक्त तीनों वेद से भिन्न है और अंतिम वेद है इसमें जनसाधारण के लोकप्रिय विश्वासों और अंधविशवासों का वर्णन है। इसमें 20 काण्ड और 711 सूक्त है
तथा सूक्तों के अंतर्गत 6000 श्लोक है। इसकी अधिकांश ऋचाएं दुरात्माओं और प्रेतात्माओं से मुक्ति का मार्ग बताती है।
ब्राह्मण ग्रन्थ इन हिंदी पीडीएफ (Brahmin Granth in Hindi PDF)
प्रत्येक वेद की एक गद्य रचना ब्राह्मण ग्रंथ है ये वेदों के सूक्तों की व्याख्या और धार्मिक अनुष्ठानों का विशद रूप से वर्णन करते है। हर वेद के साथ कुछ ब्राह्मण जुड़े हुए है जैसे-
ऋग्वेद- कौषीतकी, ऐतरेय यजुर्वेद- तैतिरीय, शतपथ, सामवेद- षड्विश, तांड्य, महाब्राह्मण और जैमिनीय, अथर्ववेद- गोपथ। शतपथ ब्राह्मण इन सबसे महत्वपूर्ण है।
इसका रचयिता याज्ञवल्क्य को माना जाता है इसमें विभिन्न प्रकार के यज्ञों का पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन मिलता है।
आरण्यक ग्रन्थ
आरण्यक शब्द अरण्य से बना है जिसका अर्थ है वन और इन्हें वन पुस्तक कहा जाता है। जो मुख्यतः जंगलों में रहने वाले सन्यासियों और छात्रों के लिए लिखी गई थी।
ये ब्राह्मण के उपसंहारात्मक अंश तथा उसके परिशिष्ट है। इसमें दार्शनिक सिद्धांतो और रहस्यवाद आत्मा, परमात्मा, जन्म, म्रत्यु, पुनर्जन्म का वर्णन है न कि धार्मिक कर्मकांड का।
वस्तुतः यह यज्ञ तथा अनेक पुराने धार्मिक कर्मकांडों के विरोधी हैं। इसका मुख्य जोर नैतिक गुणों पर है। आरण्यक ज्ञान मार्ग और कर्ममार्ग के मध्य सेतु का काम करते है।
उपनिषद (upanishads meaning in hindi)
इसका शाब्दिक अर्थ उस विद्या से है जो गुरू के पास समीप एकांत में सीखी जाती है। इसमें आत्मा और ब्रह्मा के सम्बन्ध में दार्शनिक चिन्तन है ये भारतीय दार्शनिकता के मुख्य स्रोत है।
आरण्यकों की भांति उपनिषद् भी अनुष्ठानों एवं यज्ञों की निंदा करते है इसमें सृष्टि की उत्पत्ति सम्बन्धी विभिन्न सिद्धांतो और कर्म की विचारधारा का विवेचन किया गया है।
इसे वेदांत भी कहते है क्योंकि ये वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है और ये वेदों का सर्वोच्च एवं अंतिम उद्देश्य बताते है।
वेदांग (vedang in hindi)
वेदों का अर्थ समझने व सूक्तियों के सही उच्चारण के लिए वेदांग की रचना की गई इनकी संख्या छः है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष। शिक्षा में उच्चारण कल्प में, धार्मिक अनुष्ठान व्याकरण में, विश्लेष्ण निरुक्त में व्युत्पत्ति, छंद में छन्दशास्त्र और ज्योतिष में खगोल विज्ञान का विवेचन है।
षड्दर्शन
इसमें आत्मा परमात्मा जीवन मृत्यु से सम्बन्धित बाते है। इन्हें सूत्र शैली में लिखा गया है, जिसके कारण ये संक्षिप्त एवं सटीक है। ये सभी जीवन के सद्गुणों के प्रवर्द्धन करते है तथा बाह्य कर्मकांडों के विरोधी है।
- दर्शन प्रवर्तक
- सांख्य- कपिल
- योग- पतंजलि
- वैशेषिक- कणाद या उलूक
- न्याय- गौतम
- पूर्व मीमांसा- जैमिनी
- उतर मीमांसा- बादरायण (व्यास)
पुराण का अर्थ कथा हिंदी में (purana in hindi)
कुल पुराणों की संख्या १८ है इसमें मुख्य है- मत्स्य, विष्णु, नारद, ब्रह्मांड, भागवत वामन आदि। सर्वाधिक प्राचीन और प्रमाणित मत्स्य पुराण है जिसमें विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख है।
रामायण (ramayana in hindi)
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इसमें मूलतः 6000 श्लोक थे जो कालान्तर में 12000 तथा 24000 हो गये। इसे चतुर्विशति सहस्री संहिता भी कहते है।
यह महाकाव्य बालकाण्ड, आयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड एवं उत्तरकांड नामक काण्डों में बंटा हुआ है।
महाभारत (mahabharata in hindi)
इसकी रचना महर्षि व्यास ने की थी। महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे जिसे जयसंहिता कहा जाता था। श्लोकों की संख्या 24 हजार होने पर यह भारत कहलाया।
गुप्त काल में श्लोको की संख्या एक लाख होने पर यह शतसहस्त्त्री संहिता या महाभारत कहलाया। महाभारत का प्रथम उल्लेख आश्वलायन गृहसूत्र में मिलता है। यह महाकाव्य 18 पर्वों में विभाजित है।
स्मृतियाँ (smritiyan in hindi)
इसमें सामाजिक नियम बताए गये है, कुछ मुख्य स्मृतियाँ निम्न है। मनुस्मृति, गौतमस्मृति, विष्णुस्मृति, नारदस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, विशिष्ट स्मृति
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