मुद्रास्फीति: परिचय, अर्थ, सिद्धांत और निष्कर्ष | Inflation: Intro Meaning Theories and Conclusion
मुद्रास्फीति: परिचय अर्थ सिद्धांत और निष्कर्ष | Inflation: Intro, Meaning, Theories and Conclusion.
मुद्रास्फीति: परिचय, अर्थ, सिद्धांत और निष्कर्ष
मुद्रा स्फीति का परिचय (Introduction to Inflation):
युद्ध उत्तर काल के दौरान, विश्व के लगभग सभी देशों में मुद्रा स्फीति एक उच्च विवादास्पद विषय रहा है । मुख्य विवाद मुद्रा स्फीति के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित है ।
मुद्रा स्फीति क्या है ? इसके मूल कारण क्या हैं ? यह किसी अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली को कैसे प्रभावित करती है ? इसका सामना कैसे किया जाये ? क्या यह पूंजी निर्माण का साधन है ? यह किस सीमा तक आर्थिक वृद्धि का लाभप्रद उपकरण है ? किस सीमा तक यह किसी देश के आर्थिक विकास के संवर्धन का अर्थपूर्ण उपकरण हो सकता है ?
केन्ज़ का विश्वास है कि मुद्रा स्फीति किसी देश के विकास को तीव्र करती है । वह इस आधार पर मन्द मुद्रा स्फीति के पक्ष में है कि यह उच्च व्यापार प्रत्याशाओं का उचित वातावरण तैयार करके अधिक निवेश के लिये प्रोत्साहन उपलब्ध करवाती है ।
“अनिवार्य बचत की रचना द्वारा मुद्रा स्फीति पूंजी निर्माण का महत्त्वपूर्ण स्रोत है । यदि इसका उचित एवं कुशल प्रयोग किया जाता है तो यह आर्थिक विकास को बढ़ाने का सकारात्मक साधन है । यदि मुद्रा स्फीति की गति मध्यम है तो समाज पर अनिवार्य बचते ओपने के अच्छे अवसर होंगे, यह कार्य मजदूरी और वेतनों के पिछड़ने और आय वितरण के समृद्ध लोगों के पक्ष में परिवर्तित होने से होगा ।” –आर. नर्कस
”हमें अवश्य स्वीकार करना होगा कि विस्तृत क्षेत्र में, मुद्रा स्फीति अनिवार्य बचत के इंजन की भांति प्रभावी हो सकती है और इस प्रकार अनेक अल्प विकसित देशों में आज भी प्रभावी सिद्ध हो रही है ।” -आर नर्कस
संक्षेप में, वृद्धि के लिये केवल सम्भव योगदान अनिवार्य बचत यन्त्र से प्राप्त होता है, जिसके द्वारा वास्तव मजदूरी में गिरावट बढ़ती हुई कीमतों से होती है और वेतन में कमी निवेश योग्य लाभों में वृद्धि करेगा । इस प्रकार अनिवार्य बचत अतिरिक्त पूंजी निर्माण का एक साधन बन सकता है क्योंकि यह समाज के भौतिक उपयोग को कम करता है ।
मुद्रा स्फीति का अर्थ (Meaning of Inflation):
मुद्रा स्फीति की धारणा अस्पष्ट है और इसके लिये स्वीकारणीय परिभाषा का अभाव है । इसकी परिभाषा विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अपने-अपने ढंग से की है ।
“एक अवस्था के रूप में जिसमें मुद्रा की कीमत गिर रही है अर्थात कीमतें बढ़ रही हैं ।” –क्रोथर
“अत्याधिक मुद्रा का निर्गमन ।” -ई. डब्ल्यू. हाट्रे
”सामान्य स्तर अथवा औसत कीमतों में स्थिर तथा पर्याप्त वृद्धि का रूप है मुद्रा स्फीति ।” –एक्ले
”मुद्रा स्फीति कीमतों का ऊपर की ओर स्व-स्थायीकरण और अनिवार्य (Irreversible) चलन है जो पूंजी की क्षमता पर मांग के आधिक्य से उत्पन्न होता है ।” -ईमाइल जेम्ज़
”कीमतों के सामान्य स्तर में एक निरन्तर और पर्याप्त वृद्धि का रूप है ।” -शैपीरो
उपरोक्त सभी परिभाषाएं त्रुटिपूर्ण हैं क्योंकि वे या तो एक पक्ष पर बल देती हैं या फिर दूसरे पर तथा शेष को छोड़ देती हैं । तथापि, एक सामान्य विशेषता है तथा वह यह है कि मुद्रा स्फीति निश्चित रूप में, अर्थव्यवस्था में असन्तुलन की अवस्था का प्रतिनिधित्व करती है ।
पाल इनजिग (Paul Einzig) इसी प्रकार का विचार प्रकट करते हुये मुद्रा स्फीति को इस प्रकार परिभाषित करते हैं- “असन्तुलन की अवस्था जिसमें क्रय शक्ति का विस्तार कीमत स्तर में वृद्धि का कारण अथवा प्रभाव बनता है ।”
केन्ज़ के मुद्रा स्फीति पर प्रभाव (Keynes’s Views on Inflation):
केन्ज़ के मत अनुसार- मुद्रा स्फीति प्रभावपूर्ण मांग के आधिक्य से होती है और वास्तविक मुद्रा स्फीति तभी स्पष्ट होती है, जब आर्थिक विकास के किसी विशेष सोपान के ऊपर अर्थात् पूर्ण रोजगार पर कीमतों में वृद्धि होती है ।
अत: जब तक अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त नहीं करती, रोजगार उसी अनुपात में परिवर्तित होगा जैसे मुद्रा की मात्रा और जब पूर्ण रोजगार होगा, कीमतें उसी अनुपात में परिवर्तित होंगी जैसे मुद्रा की मात्रा ।
इस प्रकार, मुद्रा स्फीति से तब तक भय की आवश्यकता नहीं जब तक हमारे पास बेरोजगार मानव और सामग्रिक साधन हैं, मुद्रा की मात्रा में वृद्धि रोजगार को बढ़ाती रहेगी ।
यद्यपि, केन्ज़ इस बात से इन्कार नहीं करते कि कीमतें पूर्ण रोजगार से पहले भी बढ़ सकती हैं परन्तु इस स्थिति को अर्द्ध-स्फीति अथवा गत्यावरोधी स्फीति कहा जायेगा । पूर्ण रोजगार के पश्चात् मुद्रायें समग्र वृद्धि कीमत स्तर को बढ़ाती हैं ।
वे पूर्ण रोजगार को उस बिन्दु के रूप में परिभाषित करता है जिस पर अथवा जिसके बाद, वास्तविक मुद्रा स्फीति आरम्भ होती है जैसा कि रेखाचित्र 6.1 में दर्शाया गया है ।

रेखाचित्र 6.1 में CD पूर्ण रोजगार स्तर दर्शाती है । इसे पूर्ण रोजगार का बिन्दु भी कहा जा सकता है । इस तथ्य के बावजूद कि कीमतें पूर्ण रोजगार की बिन्दु O पर प्राप्ति से पहले ही बढ़ना आरम्भ हो जाती हैं, यह वास्तविक मुद्रा स्फीति नहीं बल्कि अर्द्ध-स्फीति अथवा रिफ्लेशन की गत्यावरोधी स्फीति है ।
जब तक पूर्ण रोजगार का स्तर प्राप्त नहीं होता मुद्रा की मात्रा में वृद्धि रोजगार में वृद्धि की ओर ले जाती है और एक बार पूर्ण रोजगार का स्तर प्राप्त पर मुद्रा की मात्रा में वृद्धि के परिणामस्वरूप वास्तविक मुद्रा स्फीति होती है जैसे कि OL द्वारा दर्शाया गया है ।
अत: केन्ज़ के अनुसार वास्तविक स्फीति, पूर्ण रोजगार की स्थिति के पश्चात् प्रभावपूर्ण मांग में अनुवर्ती वृद्धि के परिणामस्वरूप होती है । इसी प्रकार फ्रीडमैन ने वर्णन किया कि मुद्रा स्फीति एक मौद्रिक परिदृश्य है जो सदैव और सब स्थानों पर होता है ।
मुद्रा स्फीति को रोकने के उपाय (Safeguards against Inflation):
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि स्फीतिकारी वित्त एक बुरी प्रथा है फिर भी इसे अल्प विकसित देशों की आर्थिक वृद्धि का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है । परन्तु, ऐसे देशों में कुछ सुरक्षात्मक उपायों द्वारा इसके कुप्रभावों को न्यूनतम बनाया जा सकता है ।
स्फीतिकारी वित्त की छोटी खुराकें (Small Doses of Inflationary Finance):
मुद्रा स्फीति के विरुद्ध पहली सुरक्षा है स्फीतिकारी वित्त की छोटी खुराकें । नर्कस के विचार में यदि मुद्रा स्फीति की गति मध्यम है तो समाज पर कुछ अनिवार्य बचत थोपने के अवसर होते हैं जो मजदूरी और वेतनों के पिछड़ाव और आय के समृद्ध लोगों के पक्ष में स्थानान्तर द्वारा सम्भव हैं ।
इसी प्रकार डी. ब्राइट सिंह ने कहा है- ”घाटे की वित्त व्यवस्था मध्यम स्तर की होनी चाहिये, इसे अर्थव्यवस्था की समावेशी क्षमता के अनुसार नियमित अथवा समन्वित किया जाना चाहिये तथा इसे अनुकूलतम सीमा से बढ़ने नहीं दिया जाना चाहिये जो देश में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों द्वारा निर्धारित की जाती है ।”
केवल उत्पादक प्रयोग (Only Productive Use):
स्फीतिकारी वित्त का प्रयोग दृढ़ता से उत्पादक प्रयोग तक सीमित रखा जाना चाहिये । अन्य शब्दों में शीघ्र उत्पादन देने वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिये ।
नियन्त्रक उपाय (Control Measures):
आवश्यक वस्तुओं जैसे आहार और वस्त्रों को कीमतों पर कड़ा नियन्त्रण रखा जाना चाहिये । इसके अतिरिक्त कीमत नियन्त्रण और राशनिंग का प्रयोग किया जाना चाहिये ।
बफ्फर स्टाक (Buffer Stock):
उत्पादन बढ़ाने के विशेष उपाय किये जाने चाहियें । आवश्यक वस्तुओं क पर्याप्त बफ्फर स्टाक की रचना की जानी चाहिये ताकि अभावों की स्थिति से निपटा जा सके ।
प्रशासनिक दक्षता (Administrative Efficiency):
अन्तिम परन्तु आवश्यक है कि सुरक्षात्मक उपाय दक्ष प्रशासकीय मशीनरी के हाथ में होने चाहियें ।
सारांश (Conclusion):
परिचर्चा के निष्कर्ष में कहा जाता है कि अल्प विकसित देशों की सरकारों द्वारा अपनाये गये अनेक सुरक्षात्मक उपायों के बावजूद कुछ स्तर तक मुद्रा स्फीति अवश्य होगी । संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया अध्ययन दर्शाता है कि- “जहां तक कि अति विवेकी विकास कार्यक्रमों के भी स्फीतिकारी प्रभाव होते हैं ।”
इसका अर्थ है मुद्रा स्फीति की मन्द मात्रा कई प्रकार से लाभप्रद है । परन्तु यहां यह अवश्य याद रखा जाये कि स्फीतिकारी वित्त मध्यम स्तर का होना चाहिये और अर्थव्यवस्था की समावेशी क्षमता के भीतर होना चाहिये ताकि यह हर प्रकार से आर्थिक वृद्धि के उपकरण के रूप में कार्य करें, इसलिये इसे नियमित और नियन्त्रित रखना आवश्यक है ।
इसे उस अनुकूलतम सीमा से बढ़ने नहीं दिया जाना चाहिये जिसे अर्थव्यवस्था की विद्यमान परिस्थितियां निर्धारित करती हैं । “मुद्रा स्फीति की अनुकूलतम मात्रा” के नियम जिसका प्रतिपादन ब्रोनफेंब्रैनर (Bronfenbrener) ने किया है, का अनुकरण किया जाना चाहिये ।
अत: यदि न्यायसंगत मुद्रा स्फीति का उचित प्रयोग किया जाता है तो इसके परिणाम महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं । इस प्रकार, अल्प विकसित देशों की आर्थिक वृद्धि की नीति में स्फीतिकारी वित्त को एक आदरणीय स्थान प्राप्त है ।
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