कबीरदास के पदों की व्याख्या

कबीरदास के पदों की व्याख्या ( बी ए – हिंदी, प्रथम सेमेस्टर )

कबीरदास के पदों की व्याख्या : ( यहाँ KU, MDU, CDLU विश्वविद्यालयों द्वारा बी ए प्रथम सेमेस्टर -हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित ‘कबीरदास’ के पदों की सप्रसंग व्याख्या दी गई है । )

कबीरदास के पदों की व्याख्या | Kabir ke padon ki vyakhya | BA 1st Yaer HIndi KUK

सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार ।

लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावणहार ।। (1)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।

व्याख्या — सतगुरु की महिमा का वर्णन करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि सतगुरु की महिमा असीम है । सतगुरु अपने शिष्य पर अनंत उपकार करता है । सतगुरु अपने शिष्य को अनंत अर्थात ब्रह्म के दर्शन कराने के लिए उसकी ज्ञान चक्षुओं को खोल देता है ।

राम नाम के पटतरे, देबे कौ कुछ नाहिं ।

क्या ले गुर संतोषिए, हौस रही मन मांहि ।। (2)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि राम नाम की तुलना में इस संसार में कोई भी वस्तु श्रेष्ठ नहीं है । गुरु ने उसे राम नाम रूपी अनमोल मंत्र दिया है और उसके पास ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो इस अनमोल मंत्र के प्रतिदान के रुप में गुरु को दी जा सके । इसलिए मेरे मन में हमेशा टीस बनी रहती है कि मैं अपने गुरु को क्या भेंट करूं कि गुरु संतुष्ट हो सकें । अर्थात सतगुरु अपने शिष्य को राम नाम रूपी अनमोल मन्त्र देता और संसार की कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है जिसे देकर गुरु के इस ऋण से उऋण हुआ जा सके ।

हँसै न बोलै उनमनी, चंचल मेल्ह्या मारि ।

कहै कबीर भीतरि भिद्या, सतगुर कै हथियार ।। (3)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि सतगुरु के उपदेश रूपी बाण ने उसके ह्रदय को भीतर तक भेद दिया है और उसकी चंचलता को समाप्त कर दिया है । अब उसका ह्रदय उस उनमना अवस्था को प्राप्त हो गया है जहां ना वह हंसता है और ना बोलता है । अर्थात सतगुरु ने अपने उपदेश के माध्यम से साधक को सांसारिक राग-विराग से विरक्त कर दिया है ।

पीछै लागा जाइ था, लोक वेद के साथि ।

आगै थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि ।। (4)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि मैं इस संसार में लोक और वेदों द्वारा बताए गए मार्ग पर चलता जा रहा था । इस प्रकार लोक व्यवहार और वेद शास्त्रों का अंधा अनुकरण करते हुए मैं निरंतर भटक रहा था किंतु इस प्रकार भटकते हुए अचानक मुझे मेरे सतगुरु मिल गए और उन्होंने ज्ञान का दीपक मेरे हाथ में दे दिया और इस भवसागर से पार उतरने का मुझे सही रास्ता दिखा दिया ।

दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट ।

पूरा किया बिसाहूणाँ, बहुरि न आँवौँ हट्ट ।। (5)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि सद्गुरु ने उन्हें ज्ञान रूपी दीपक दिया और उसे प्रेम-भक्ति रूपी तेल से भर दिया है और कभी भी समाप्त नहीं होने वाली बाती उसमें लगा दी है । इस प्रकार संसार रूपी बाजार में मैंने अपने कर्मों का समस्त लेन-देन सही ढंग से कर लिया है, अब मुझे इस बाजार में पुन: आने की आवश्यकता नहीं है । कहने का भाव यह है कि अब मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो गई है और मैं आवागमन के चक्र से मुक्त हो गया हूँ ।

माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवै पडंत ।

कहै कबीर गुर ग्यान थैं, एक आध उबरंत ।। (6)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि माया दीपक के समान है और मनुष्य पतंगे के समान है जो बार-बार भटक कर इस माया रूपी दीपक की लौ से आकर्षित होकर उसमें झुलसता रहता है । कहने का भाव यह है कि जिस प्रकार पतंगे दीपक की लौ की तरफ आकर्षित होकर उसमें झुलस जाते हैं और अपना जीवन नष्ट कर देते हैं ठीक उसी प्रकार से मनुष्य भी सांसारिक प्रलोभनों के जाल में फंसकर अपने जीवन को नष्ट कर देता है ।

कबीर बादल प्रेम का, हम परि बरष्या आइ ।

अंतरि भीगी आत्माँ, हरी भई बनराइ ।। (7)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में प्रभु प्रेम के प्रभावों का वर्णन है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर के प्रेम का बादल मेरे ऊपर उमड़ कर अपने प्रेम की वर्षा कर रहा है जिससे मेरी अंतरात्मा अंदर तक भीग गई है । ईश्वर की प्रेम-वर्षा से मेरे हृदय की वन-राशि हरी-भरी हो गई है अर्थात हृदय आनंद-निमग्न हो गया है ।

भगति भजन हरि नाँव है, दूजा दुक्ख अपार ।

मनसा बाचा क्रमनाँ , कबीर सुमिरण सारा ।। (8)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में ईश्वर के नाम स्मरण के महत्व का को उजागर किया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि प्रभु के नाम का स्मरण करना ही वास्तविक भक्ति और भजन है । इसके अतिरिक्त यदि हम प्रभु भक्ति का दूसरा कोई दूसरा उपाय अपनाते हैं तो वह अपार दुःख का कारण बनता है । अत: हमें मन, वचन और कर्म से ईश्वर का नाम स्मरण करना चाहिए । वस्तुतः यही सार तत्त्व है ।

कबीर निरभै राम जपि, जब लग दिवै बाति ।

तेल घट्या बाती बुझी, ( तब ) सोवैगा दिन राति ।। (9)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में ईश्वर भक्ति का संदेश दिया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य जब तक हमारे शरीर रूपी दीपक में जीवन रूपी बाती है, तब तक हमें निर्भय होकर राम नाम का जाप करना चाहिए क्योंकि जैसे ही हमारे शरीर रूपी दीपक में से श्वास रूपी तेल समाप्त हो जायेगा, हमारे जीवन की बाती बुझ जाएगी और उसके पश्चात हम चिर निद्रा में सो जाएंगे । भावार्थ यह है कि जब तक हमारे शरीर में प्राण शेष है हमें प्रभु-भक्ति में तल्लीन रहना चाहिए ।

केसो कहि कहि कूकिये, नाँ सोइयै असरार ।

राति दिवस के कूकणो , (मत) कबहूँ लगै पुकार ।। (10)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘मध्यकालीन काव्य कुंज’ में संकलित कबीरदास के पदों से अवतरित हैं ।

प्रस्तुत पंक्तियों में रात-दिन ईश्वर के नाम स्मरण पर बल दिया गया है ।

व्याख्या — कबीरदास जी कहते हैं कि हमें प्रभु ( केशव ) के नाम का जाप करते रहना चाहिए, व्यर्थ में सोना नहीं चाहिए । क्योंकि रात-दिन प्रभु के नाम का जाप करने से न जाने कब हमारी पुकार प्रभु के कानों तक पहुंच जाए । कहने का भाव यह है कि लगातार प्रभु का नाम स्मरण करने से एक ना एक दिन अवश्य ही प्रभु हम पर अनुकंपा करते हैं ।

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