कला किसे कहते हैं (Kala kise kahate Hain) कला के प्रकार
कला किसे कहते हैं : मानव मूलतः सौंदर्य का प्रेमी रहा है। सौंदर्य का अपने जीवन में हमेशा कामना करता है। मानव को इसे सौंदर्य भावना से प्रभावित होकर मानव ने सुंदर कलाकृतियों का निर्माण किया। मानव जो अपने भाव को व्यक्त करने के लिए किसी माध्यम का प्रयोग करता है तो कला का सृजन आरंभ होता है। कला मानव का अनुभव है।
कला किसे कहते हैं
कला सौंदर्य से परिपूर्ण होती है। संसार में अत्यंत सुंदर वस्तुएं हैं, किंतु उन सभी का जन्म कला से नहीं हुआ है। इसके अतिरिक्त हर वह वस्तु जो कला के द्वारा रची जाती है वह सुंदर हो ऐसा जरूरी नहीं है। सौंदर्य की कल्पना व्यक्ति की रूचि पर निर्भर है जो वस्तु व्यक्ति को अपनी पसंद की लगती है वही उसे सुंदर दिखते हैं। हर व्यक्ति के अलग-अलग रूचि होती हैं तथा एक ही वस्तु को व्यक्ति अलग-अलग ढंग से देखते हैं मानव अपने मन मस्तिष्क तथा शरीर से जो कार्य करने की चेष्टा करता है वह कला है।
कला किसे कहते हैं (Kala kise kahate Hain)
रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार :- “जो सत्य है जो सुंदर है वही कला है।”
शिक्षाशास्त्री अरस्तु के अनुसार :- “कला प्रकृति के सौंदर्यमय अनुभवों का अनुकरण है।”
शिक्षा शास्त्री प्लेटो के अनुसार:- “कला सत्य की अनुकृति है।”
मनोवैज्ञानिक फ्रायड के अनुसार :- “दमित वासनाओं का उभरा हुआ रूप ही कला है।”
कला का अर्थ
कला का वास्तविक अर्थ जानने के लिए हमें अंग्रेजी का आर्ट (Art) शब्द को लेना होगा। ‘आर्ट’ सत्य के साथ जो सुंदरता का बोध लगा हुआ है, वह अति आधुनिक तथा वैज्ञानिकता से भरा हुआ है। आर्ट शब्द लैटिन के ‘आर्स(Ars)’ शब्द से बना हुआ है जिसका ग्रीक रूपांतर है TEXVEN: महान दार्शनिक प्लेटो ने इसे Techne शब्द के रूप में लिया है। इस शब्द का प्राचीन अर्थ साधारण शिल्प या विशेष निपुण होता है।
कला शब्द ‘कल’ धातु से उत्पन्न हुआ है। जिसका अर्थ है ‘सुंदर’। कला शब्द में ‘ला’ धातु भी लगती है, जिसका अर्थ है ‘प्राप्त करना’ अर्थात् कला का अर्थ है सुंदरता को प्राप्त करना। भारत में भी पहले कलर्स शब्द का प्रयोग कारीगरी कौशल या शिल्प के लिए होता है। परंतु उस समय भी कुछ क्षेत्र में कला शब्द का प्रयोग आधुनिक ललित कला के अर्थ में हुआ है।
कला के प्रकार (Kala ke prakar)
मनुष्य अपनी भावनाओं को कला के माध्यम से ही व्यक्त करता है कला को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार है-
1. दृश्य कला
2. प्रदर्शनी कला
दृश्य कला को भी तीन भागों में बांटा गया है-
क) चित्रकला
ख) मूर्तिकला
ग) वास्तुकला
प्रदर्शनी कला को दो भागों में बांटा गया है :-
क) काव्य कला
ख) संगीत
1. दृश्य कला :-
दृश्य कला के द्वारा किसी भी पदार्थ चित्रण, मानव चित्रण, शारीरिक अंग, पशु-पक्षी तथा कीड़े मकोड़े का चित्रण क्या जाता है। दृश्य कला के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन कलाएं हैं-
क) चित्रकला :-
यह कला समस्त शिल्पों सर्वप्रिय माना जाता है जिसमें भौतिक दैविक एवं आध्यात्मिक भावना तथा सत्यम शिवम सुंदरम के समन्वित रूप की अभिव्यक्ति है। रेखा, वर्ण, वर्तना और अलंकरण इन चारों की सहायता से चित्र का स्वरूप निष्पादित होता है।
ख) मूर्तिकला
भारत में मूर्ति कला को अत्यंत प्रतिष्ठित माना जाता है। प्राचीन भारतीय मंदिरों की मूर्तिकला पर संपूर्ण विश्वास आश्चर्य करता है और मुग्ध होता है। मंदिरों में मूर्तिकला का अत्यंत उदान्त रूप देखने को मिलता है। उदाहरण दक्षिण भारत में नटराज की मूर्ति परमात्मा के विराट स्वरूप को परिलक्षित करता है।
ग) वास्तुकला :-
भारतीय वास्तुकला के विकास का स्रोत धर्म है। मूर्ति कला और चित्रकला को वस्तु कला के अंतर्गत ही स्थान दिया गया है प्राचीन गुफाओं, मंदिरों आदि में तीनों कलाएं एक साथ मिलती है। वस्तु कला का सीधा-साधा अर्थ है-“उन भावनाओं का निर्माण कला, जहां निवास किया जाता है।”
उपयुक्त तीनों कलाएं दृश्य कलाएं हैं। इन कलाओं को नेत्रों के माध्यम से देखा जाता है, इसलिए इन्हें दृश्य कलाएं कहा गया है।
2. प्रदर्शनी कला
प्रदर्शनकारी या प्रदर्शनी कला को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है-
क) काव्य कला
काव्य कला में संप्रेषण भाव और विचार के कुछ और भी होता है वही “कुछ और” काव्य की अस्मिमता या पहचान है। इस कुछ और को विचार कोने स्पष्ट करते हुए इसे “चारुता या सौंदर्य” कहा हैं। चारुता या सौंदर्य पर विचार करते हुए यह कहा जाता है कि जो चेतना को अपनी ओर खींचे व सुंदर है उसमें सौंदर्य है-
विभिन्न युगों में तथा विभिन्न वर्गों के कवियों में काव्य प्रेरणा के मूलाधार भिन्न भिन्न होते हैं। जैसे बाह्य प्रकृति और जगत के किसी दृश्य, घटना, परिस्थिति या अवस्था का प्रभाव, किसी अन्य व्यक्ति, आश्रयदाता, गुरु, आचार्य या मित्र को प्रेरणा, किसी विचार या जीवन दर्शन का अलौकिक प्रणय विरह या शोक की अनुभूति।
ख) संगीत कला :
संगीत के विविध आयाम हैं- गायन, वादन व नृत्य। गायन के क्षेत्र में तानसेन वजू से लेकर पंडित भीमसेन जोशी, पंडित जसराज के नाम विशिष्ठ सम्माननीय है। वादन के क्षेत्र में उत्साद अल्ला रंग (तबला), रवि शंकर (सितार), बिस्मिल्लाह रंग अग्रणी कलाकार है।
आज के समय में संगीत की दो धाराएं प्रचलित हैं-
1. शास्त्रीय संगीत
2. लोक संगीत तथा लोकप्रिय संगीत
भारतीय संगीत की आधारशिला आध्यात्मिक है।
निष्कर्ष :
इस प्रकार कला का वह मान्य आकृति है जो मानव के सौंदर्य और आनंद की अनुभूति को जागृत करती है कला को सामान्य रूप में इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है कला भाव के सौंदर्यमय अभिव्यक्ति है चित्रकला एक श्रेष्ठ ललित कला है। अन्य ललित कलाओं की भांति इस कला को आधारशीला भी संतुलित एवं सामंजस्य हैं। संतुलित एवं सामंजस्य के कारण ही यह कलाकार का सहृदय की आनंद एवं संतुष्टि प्रदान करती है। किसी वस्तु की विशेष ढंग जो एक नई आकृति एवं आकार प्रदान करना ही कला है।
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