किशोरावस्था किसे कहते हैं ? किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन
किशोरावस्था किसे कहते हैं ? : किशोरावस्था एडोलसेन्स नामक अंग्रेजी शब्द का हिन्दी रूपान्तरणर है। जिसका अर्थ है परिचक्वता की ओर बढ़ना इस समय बच्चे न छोटे बच्चो की श्रेणी में आतें है और न ही बड़े या अपने शब्दो में कहे तो ये छोटे से बडे बनने की प्रक्रिया की समयावधि से गुजरते है।
किशोरावस्था 11 से 18 वर्ष के बीच की मानी जाती है। इस अवस्था में किशोर एवं किशोरी में नाना प्रकार के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते है। इस अवस्था में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक परिवर्तन होते हैं। वे व्यक्तित्व विकास दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते है।
किशोरावस्था किसे कहते हैं ?
कुछ मनोवैज्ञानकों ने किशोरावस्था को दो भागों में विभाजित किया है-
स्टेनले हाॅल ने पूर्व-किशोरावस्था को ‘एक अत्यन्त संवेगात्मक उथल-पुथल, झंझा और मानव तनाव की अवस्था’ कहा है। कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह अवस्था ‘एक अटपटी तथा समस्यावस्था’ भी कही गई है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार किशोरावस्था को 12, 13 वर्ष आयु से 18, 19 वर्ष की आयु तक मानना चाहिए।
किशोरावस्था के विकास के सिद्धांत
किशोरावस्था के विकास के दो सिद्धांत हैं-
2. क्रमिक विकास का सिद्धांत – इस सिद्धांत के समर्थक थार्नडाइक, विंफग और हालिंगवर्थ हैं। इनका कथन है कि किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक परिवर्तनों के फलस्वरूप जो नवीनताएँ दिखाई देती हैं, वे एकदम न आकर धीरे-धीरे क्रमशः आती हैं।
किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन
- किशोर की वाणी में कर्कशता एवं किशोरी की वाणी में कोमलता तथा मिठास आ जाती है।
- किशोर के मुख में मूँछों व दाढ़ी के प्रारम्भिक चिन्ह स्पष्ट होने लगते है एवं किशोर एवं किशोरी के गुप्तांगों में बाल उग आते है।
- किशोरियो में मांसिक स्त्राव एवं किशोरो में स्वप्न दोष होने लगते है।
- किशोरियों के कुल्हे एवं वक्षस्थल तथा किशोर के कंधें चौड़े होने लगते है।
- किशोर एवं किशोरी की हडिडयॉ सुदृढ़ होने लगती है।
- ज्ञानेन्द्रियो का पूर्ण विकास हो जाता हैं।
- कद लम्बा हो जाता है।
- किशोरियों में शरीर की गोलाई प्रदान करने के लिए अधिक वसीय ऊतक व त्वचा के नीचे के ऊतक विकसित होतें है जबकि किशोरों में मांसपेशियों का विकास होता है जिससे लड़को को भारी श्रम करने में मदद मिलती हैं।
किशोरावस्था की प्रमुख समस्याएं
किशोरों में तीव्र गति से शारीरिक परिवर्तन होता है। माता-पिता तथा समाज के अन्य वयस्कों की अपेक्षायें बदल जाती हैं। इससे किशोर भ्रमित हो जाते हैं। अपने माता-पिता, हम उम्र मित्र, विद्यालय व शिक्षकों की मदद से किशोर इस अवधि में परिपक्व हो जाते हैं लेकिन कुछ किशोरों को समुचित वातावरण न मिलने से उनके व्यवहार में विकार आ जाते हैं तथा वे समस्याग्रस्त बालक बन जाते हैं। किशोरावस्था की प्रमुख समस्याएं, ये समस्यायें निम्नलिखित हो सकती हैं :-
किशोरावस्था में सामाजिक संवेगात्मक विकास
किशोर का जीवन बहुत ही भावात्मक होता है। इस समय इनकी मन: स्थिति में काफी उतार चढ़ाव रहता है। ये अत्यंत भावुक एवं चिड़चिड़े हो जाते है। कभी-कभी यें भावावेश में ऐंसे कार्य कर डालते हैं जो असम्भव एवं असाधारण होते है।
सामाजिक रूप से ये अपने हम उम्र मित्रो के साथ रहना पसंद करते है। इस समय इनकी एक विशिष्ट संस्कृति मुल्य, कपड़ा, पहनने का तरीका, भाषा, संगीत एवं रूचि अरूचि होती है। किशोरो की मित्र मण्डली काफी बड़ी होती है। ऐसे किशोर जो सामाजिक रूप से हिलमिल नही पाते तथा मित्र नही बना पाते, अवसाद के शिकार हो जाते है जिसके परिणाम घातक हो सकते है।
किशोरावस्था की विशेषताएं –
स्वतंत्रता एवं विद्रोह की भावना –
किशोरावस्था में स्वतंत्रता की भावना प्रबल होती है । इस अवस्था में बालक या बालिका परिवार एवं समाज के परम्पराओ ,रीति-रिवाजो, अन्धविश्वासो एवं समाज को स्वीकार नही करता है। वह बंधकर जीवन व्यतीत नही करना चाहता है। किसी भी बात पर वह बिना तर्क के स्वीकार नही करता है। यदि आप उसपर कोई प्रतिबन्ध लगाना चाहते है तो वह विद्रोह करने का प्रयास करता है।
अपराध परिवृति की भावना –
इस अवस्था में इक्षापूर्ति नही होने या बाधा आने पर अपराध प्रविर्ती का विकास होता है। जैसे – अगर माँ-बाप कोई काम करने से मना करे तो घर छोड़ने या आत्म हत्या का मन करता है या माँ-बाप से झगड़ने का मन करता है।
चटोर की प्रविर्ती –
कोशोरावस्था में बाहर की खाद्यपदर्थो को अधिक से अधिक खाने का मन करता है । किशोर-किशोरी अधिक से अधिक पैसे बाहरी खाद्यपदर्थो को खाने में खर्च कर देते है।
शारीरिक विकास –
किशोरावस्था में शारीरिक विकास तेजी से होता है । जैसे – भार में वृद्धि , शारीरिक ढाचे और मांसपेशियो में वृद्धि , किशोरियों के वक्ष स्थल और कुल्हो में विकास होने लगता है।
मानसिक विकास –
किशोरावस्था में मानसिक योग्यता का पूर्ण विकास हो जाता है ।कल्पना , स्मृति , तर्कशक्ति , निर्णय लेने की क्षमता अधिक विकसित हो जाती है । वह सामजिक, राजनैतिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओ में रूचि लेने लगता है।
स्थिरता का अभाव –
इस अवस्था में इसके व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आता है ।उनके विचार हमेशा बदलते रहते है। वह सही निर्णय या गलत निर्णय में समायोजन स्थापित नही कर पता है।
घनिष्ठ मित्रता –
इस अवस्था में किशोर- किशोरियों का क्षेत्र बहुत बड़ा हो जाता है। वे अधिक से अधिक मित्र बनाते है परन्तु एक या दो परम मित्र होते है।
समूह का महत्व –
किशोरावस्था में प्रायः छात्र अपने समूह और साथियों को अधिक महत्व देते है। वे अपना अधिकांश कार्य समूह के साथ ही करना पसंद करते है। वे अपने समूह के दृष्टीकोण को अच्छा समझते है तथा उसके अनुरूप ही कार्य करते है।
विषमलिंगोय काम भावना –
किशोरावस्था में काम भावना के फलस्वरूप किशोर-किशोरी एक-दुसरे के प्रति आकर्षित होते है। वे परस्पर मिलने-जिलने बातचीत करने का प्रयास करते है तथा मैथुन की एच्छा रखते है।
रूचियो में परिवर्तन और स्थिरता –
इस अवस्था में रुचियों में परिवर्तन आने लगते है । इस अवस्था में विषमलिंगी मित्रो के प्रति रुझान अधिक होता है । आत्मसम्मान संबधित वस्तुओ और विचारों में अधिक रूचि होती है। लडके घर से बाहर के कार्य करने और लडकियाँ घर के अन्दर के कार्यो में अधिक रूचि लेती हैं।
इस पोस्ट से आपको क्या जानकारी मिली और आपको इस अवस्था में किन-किन बातो पर ध्यान देना होगा ताकि आप अपने जीवन में सफल हो। कमेंट कर के बताये।
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