‘क्रेता सावधान’ नियम से आप क्या समझते हैं? इस नियम के अपवाद बताइए।
‘क्रेता सावधान’ नियम से आप क्या समझते हैं? इस नियम के अपवाद बताइए।
‘क्रेता सावधान’ नियम से आप क्या समझते हैं? इस नियम के अपवाद बताइए।
क्रेता सावधान का नियम/सिद्धान्त (Doctrine of Cavent Emptor or Buyer Beware) – सामान्य: वस्तु के वस्तु विक्रय के सम्बन्ध में क्रेता सावधान का नियम लागू होता है जिसका अर्थ है वस्तु के क्रय करते समय क्रेता को अपने हित का स्वयं ध्यान रखना चाहिए। जब विक्रेता और क्रेता में किसी माल को बेचने और खरीदने का समझौता होता है तो उस समय क्रेता का यह कर्तव्य होता है कि जिस माल को वह खरीद रहा है उसके गुण-दोष उपयोगिता एवं अनुपयोगिता के सम्बन्ध में उसका पूरा परीक्षण कर ले। विक्रेता का यह कर्तव्य नहीं है कि वह क्रेता को वस्तु की अनुपयुक्तता अथवा दोषों को बताये।
वास्तव में विक्रेता माल की बिक्री के बाद प्रकट हुए किन्हीं दोषों के लिए उत्तरदायी नहीं होता और न ही विक्रेता पर ऐसे किसी भी दोष के लिए वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। अतः क्रेता को स्वयं सावधानी से वस्तु का चयन करना चाहिए कि कौन-सी वस्तु उसकी आवश्यकता को पूरा करती है और कौन-सी नहीं। विक्रेता अपनी वस्तु के दोष बताने के लिए बाध्य नहीं है। संक्षेप में, जब क्रेता विक्रेता से माल के विषय कुछ पूछताछ नहीं करता है तो ऐसी दशा में विक्रेता माल के गुण-दोष बताने के लिए बाध्य नहीं है।
वस्तु विक्रय अधिनियम 1930 की धारा 16 में इस नियम को इन शब्दों में व्यक्त किया गया “विक्रय अनुबन्ध में हस्तान्तरित की गयी वस्तु के गुण या किसी विशिष्ट आवश्यकता के लिए उपयोगिता के सम्बन्ध में कोई गर्भित शर्त या आश्वासन नहीं होता अर्थात विक्रेता क्रेता को वस्तु बेचते समय वस्तु के गुण या उपयोगिता के सन्दर्भ में कोई गर्भित आश्वासन या शर्त नहीं देता। इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण जोखिम क्रेता की ही होगी।”
क्रेता सावधान नियम के अपवाद-
‘क्रेता सावधान’ का यह नियम सभी परिस्थितियों में सामान्य रूप से लागू नहीं होता इसके मुख्य अपवाद निम्नलिखित हैं-
(1) गुण अथवा उपयोगिता के सम्बन्ध में गर्भित शर्त- यदि क्रेता माल खरीदते समय विक्रेता को यह स्पष्ट कर देता है कि वह किसी उद्देश्य या कार्य के लिए माल खरीदना चाहता है तो इसका यह अर्थ होगा कि वह ऐसे विक्रेता के विवेक व चतुराई पर विश्वास करके माल खरीद रहा है। यहाँ पर यह शर्त छिपी है कि वस्तु क्रेता की आवश्यकता को पूरा करने वाली होनी चाहिए अन्यथा क्रेता वस्तु के अनुबन्ध को समाप्त करने तथा क्षतिपूर्ति के लिए विक्रेता पर वाद प्रस्तुत करने का अधिकारी होगा।
(2) विवरण द्वारा बिक्री – यदि क्रेता ने वस्तु को क्रय करने से पूर्व कभी नहीं देखा है और केवल वस्तु के सम्बन्ध में विक्रेता द्वारा दिये विवरण से प्रभावित होकर ही माल खरीदा है तो वस्तु विक्रेता के विवरण से मेल खाने वाली होनी चाहिए और विक्रेता उस वस्तु के गुणों के लिए बाध्य होगा।
(3) कपट की दशा में – यदि अनुबन्ध में विक्रेता ने कपट मय रीति से क्रेता की सहमति प्राप्त की है तो विक्रेता वस्तु के गुण तथा उपयोगिता के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी होगा तथा विक्रेता ऐसी सभी हानियों की पूर्ति के लिए बाध्य होगा जो क्रेता को उस वस्तु के प्रयोग से हुई हो।
(4) वस्तु में दोष- यदि वस्तु में ऐसे दोष है जिन्हें सामान्य बुद्धि वाला व्यक्ति उपयुक्त है निरीक्षण के द्वारा नहीं जान सकता तो ऐसे सभी दोषों के लिए विक्रेता उत्तरदायी होगा।
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