क्या भूलू क्या याद करूँ की समीक्षा?
क्या भूलू क्या याद करूँ की समीक्षा?
क्या भूलू क्या याद करूँ एक सशक्त महागाथा है, जो हरिवंश राय बच्चन के जीवन और कविता की अन्तर्धारा का वृत्तान्त ही नहीं कहती बल्कि छायावादी युग के बाद के साहित्यिक परिदृश्य का विवेचन भी प्रस्तुत करती है। निस्सन्देह, यह आत्मकथा हिन्दी साहित्य के सफ़र का मील-पत्थर है।
बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
प्रख्यात लोकप्रिय कवि हरिवंशराय बच्चन की बहुप्रशंसित आत्मकथा हिन्दी साहित्य की एक कालजयी कृति है। यह चार खण्डों में है : ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ‘, ‘नीड़ का निर्माण फिर‘, ‘बसेरे से दूर’ औरा’ ‘‘गशद्वार’’ से ‘‘सोपान’’ तक’। यह एक सशक्त महागाथा है, जो उनके जीवन और कविता की अन्तर्धारा का वृत्तान्त ही नहीं कहती बल्कि छायावादी युग के बाद के साहित्यिक परिदृश्य का विवेचन भी प्रस्तुत करती है। निस्सन्देह, यह आत्मकथा हिन्दी साहित्य के सफ़र का मील-पत्थर है। बच्चनजी को इसके लिए भारतीय साहित्य के सर्वोच्य पुरस्कार-‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित भी किया जा चुका है।
डॉ. धर्मवीर भारती ने इसे हिन्दी के हज़ार वर्षों के इतिहास में ऐसी पहली घटना बताया जब अपने बारे में सब कुछ इतनी बेबाकी, साहस और सद्भावना से कह दिया गया है।
डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार इसमें केवल बच्चनजी का परिवार और व्यक्तित्व ही नहीं उभरा है, बल्कि उनके साथ समूचे काल और क्षेत्र भी अधिक गहरे रंगों में उभारा है।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’: हिन्दी प्रकाशनों में इस आत्मकथा का अत्यंत ऊचा स्थान है।
डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन की राय में ऐसी अभिव्यक्तियाँ नई पीढ़ी के लिए पाथेय बन सकेंगी, इसी में उनकी सार्थकता भी है।
नरेन्द्र शर्मा : यह हिन्दी के आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है।
चार खंडों में प्रकाशित कवि बच्चन की आत्मकथा हिन्दी साहित्य की कालजयी रचनाओं में गिनी जाती है। प्रस्तुत प्रथम खंड प्रकाशित होते ही अपनी स्पष्टवादिता के कारण चर्चा का विषय बन जाता था। इसके गद्य-लेखक में नये मानक स्थापित किये।
‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ सहित आत्मकथा के चारों खंडों को तीन लाख रुपये के ‘सरस्वती सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है।
क्या भूलू क्या याद करूँ के पहले संस्कण की भूमिका
लेखन द्वारा अपने को अभिव्यक्त करते हुए मुझे चालीस वर्षो से ऊपर हो चुके हैं। इतने दिनों में मैं अपने हृदय पर हाथ रखकर कह सकता हूँ-और कलाकार के लिए इससे बड़ी सौगंध नहीं-कि मैंने कुछ भी ऐसा नहीं लिखा जो मेरे अन्तर से नहीं उठा, जो उसमें नहीं उमड़ा-घुमड़ा-अनुवादों के मामले में भी।
यह जो आत्म-चित्रण आज मैं आपके हाथों में रख रहा हूँ, इसी प्रकार मानस-मन्थन का परिणाम है।
जीवन की जिस पीढ़ी पर मैं हूँ, उसपर अतीत का स्मरण शायद स्वाभाविक होता है- मेरे पास औरों का मन जानने के लिए भी केवल अपने मन का पैमाना है।
मुझे कई वर्षों से लग रहा था कि जब तक मैं अपने अंतर में निरन्तर उठती-स्मृतियों को चित्रित न कर डालूँगा तब तक मेरा मन शान्त नहीं होगा।
मेरी जिन अभिव्यक्तियों से आपके मन को भी यत्किंचित् शान्ति-‘शान्ति शब्द मैं इतने व्यापक अर्थ में प्रयोग कर रहा हूँ कि उसमें अशान्ति भी शामिल हो सके— मिलती रही है, मैं उन्हें अपने मन को ही शान्ति देने के लिए प्रस्तुत करता रहा हूँ।
इसी विश्वास के बल पर मैं यह आत्म-चित्रण प्रकाश में ला रहा हूँ।
मेरा जीवन एक साधारण मनुष्य का जीवन है। और इसे मैंने अपना सबसे बड़ा सौभाग्य, और अपनी सबसे बड़ी प्रसन्नता का कारण माना है। मुझे फिर से इच्छानुकूल जीवन जीने की क्षमता दे दी जाए तो मैं अपना जीवन जीने के अतिरिक्त और किसी का जीवन जीने की कामना न करूँगा—उसकी सब त्रुटियों, कमियों, भूलों, पाछतावों के साथ।
सबसे बड़ा कारण, कि इसी के बल पर तो मैं दुनिया के साधारण जनों के साथ अपनी एकता का अनुभव करता हूँ।
इतने बड़े संसार में अपने को अकेला अनुभव करने से बड़ा बन्धन नहीं। सायुज्य मुक्ति यही है—सबसे युक्त होकर मुक्त।
आपका भी यह विश्वास हो तो मुझ साधारण से युक्त होना आपके सर्वसाधारण से युक्त होने का एक कदम हो सकता है।
युक्त होना दोनों पर निर्भर है—कितना आप हो सकते हैं, कितना मैं कर सकता हूँ। मेरी ईमानदारी आपके सम्मुख है। पता नहीं यह आपकी कितनी सहानुभूति पा सकेगी।
‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ मेरी पूरी योजना का एक तिहाई भाग है। इतने ही बड़े दो और भाग यथासमय आपके सामने आएँगे-‘नीड़ का निर्माण फिर’ और ‘जीवन की आपाधापी में’ यदि समय और स्वास्थ्य ने साथ दिया।
मैं यह भी बताना चाहता था कि यह आत्म-चित्रण मैंने किस मनोवृत्ति से किया है, पर जिन शब्दों में उसे मैं बता सकता था उनसे कहीं अधिक समर्थ और सशक्त शब्दों में आज से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व फ्रांस का एक महान लेखक, मानतेन, अपना आत्म-चित्रण करते समय उसे व्यक्त कर चुका है। जब-जब मैंने इस आत्म-चित्रण के लिए लेखनी उठाई है तब-तब मैंने उसे स्वस्ति-वाचन की श्रद्धा से पढ़ लिया है; और आपसे यह प्रार्थना करना चाहूँगा कि जब-जब आप इस आत्म-चित्रण को पढ़ें, आप उसे भी पढ़ लें। आप उसे इस कृति के प्रथम पृष्ठ के पूर्व पाएँगे।
मैं जो कुछ लिखता हूँ उसपर अपने पाठकों की प्रतिक्रिया जानना चाहता हूँ, उससे लाभान्वित भी होता हूँ। यदि आप यथासुविधा अपनी प्रतिक्रिया मुझे देंगे तो आप मेरा उपकार करेंगे।
खेद है, जब पान्डुलिपि को प्रेस भेजने का समय आया है, मैं लम्बेगो में पड़ा हूँ। प्रेस के लिए इसे अन्तिम रूप देने का कार्य श्री सत्येन्द्र शरत् ने किया है। इस सहयोग के लिए मैं उन्हें जितना भी धन्यवाद दूँ कम है।
अगस्त, 1969
क्या भूलू क्या याद करू किसकी रचना है?
क्या भूलूं क्या याद करूँ हरिवंश राय बच्चन की बहुप्रशंसित आत्मकथा तथा हिन्दी साहित्य की एक कालजयी कृति है। यह चार खण्डों में हैः ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’, नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ रचना किस विधा पर आधारित है?
क्या भूलूं क्या याद करूँ ” हरिवंशराय बच्चन जी की बहु प्रशंसित आत्मकथा है। क्या भूलूं क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
प्रवास की डायरी कुछ विशिष्ट पन्ने के लेखक कौन है?
प्रवास की डायरी हरिवंश राय बच्चन की एक कृति है।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है?
प्रमुख कृतियाँ
- तेरा हार (1929),
- मधुशाला (1935),
- मधुबाला (1936),
- मधुकलश (1937),
- आत्म परिचय (1937),
- निशा निमंत्रण (1938),
- एकांत संगीत (1939),
- आकुल अंतर (1943),
हरिवंशराय बच्चन की पत्नी का नाम क्या है?
हरिवंशराय बच्चन का 19 वर्ष की उम्र में विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो उस समय 14 वर्ष की थीं। सन 1936 में टीबी के कारण श्यामा की मृत्यु हो गई। पाँच साल बाद 1941 में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं।
इसे भी पढ़ें : नीति श्लोक अर्थ सहित
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