लोक साहित्य का अर्थ एवं परिभाषाएँ।
लोक साहित्य का अर्थ एवं परिभाषाएँ: साहित्य मानव मन की प्रतिछवि है। यह मानव मन में आने वाले भाव, उतार-चढ़ाव, सामाजिक स्थितियों तथा विभिन्न परिस्थितियों का उद्घाटन करने का माध्यम है। साहित्य को दो वर्गों में विभाजित किया गया है, शिष्ट साहित्य और लोक साहित्य। लोक साहित्य वास्तव में एक लोक जीवन की उपज है।
लोक साहित्य का अर्थ एवं परिभाषाएँ : lok sahity ka arth paribhasha
लोक साहित्य से अभिप्राय उस साहित्य से है जिसकी रचना लोक करता है। ‘लोक’ शब्द समस्त जन समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है। लोक शब्द का अर्थ है- देखने वाला। वैदिक साहित्य से लेकर वर्तमान समय तक लोक शब्द का प्रयोग जनसामान्य के लिए हुआ है। लोक शब्द से अभिप्राय उस संपूर्ण जन समुदाय से है जो किसी देश में निवास करता है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “ लोक शब्द का अर्थ जनपद या ग्राम्य नहीं है, बल्कि नगरों और गांव में फैली हुई वह समस्त जनता है, जिसके व्यवहारिक ज्ञान का आधार पोथियाँ नहीं है।”
कहने का भाव यह है कि जिन का ज्ञान जीवन के अनुभवों पर आधारित है अतः लोक साहित्य जन सामान्य के जीवन अनुभवों की अभिव्यक्ति करने वाले साहित्य का नाम है।
लोक साहित्य उतना ही प्राचीन है जितना की मानव क्योंकि इसमें जनजीवन की प्रत्येक अवस्था, प्रत्येक वर्ग प्रत्येक समय और प्रकृति सभी कुछ समाहित है। लोक साहित्य एक तरह से जनता की संपत्ति है। इसे लोक संस्कृति का दर्पण भी कहा जाता है। जन संस्कृति का जैसा सच्चा एवं सजीव चित्रण लोक साहित्य में मिलता है वैसा अन्य कहीं नहीं मिलता। सरलता और स्वभाविकता के कारण यह अपना एक विशेष महत्व रखता है। साधारण जनता का हंसना, रोना खेलना गाना जिन शब्दों में अभिव्यक्त हो सकता है वह सब कुछ लोग साहित्य में आता है।
लोक साहित्य का विषय क्षेत्र जन्म से लेकर मृत्यु तक के समस्त भावों को संजोए हुए हैं। यह साहित्य मनुष्य के अतीत पर प्रकाश डालता है। यह जनसामन्य की प्राचीन संस्कृति, मान्यताओं एवं परंपराओं में पूर्ण विश्वास की अभिव्यक्ति करता है।
हिंदी में प्रचलित लोक साहित्य शब्द अंग्रेजी के Folk literature शब्द का अनुवाद है। ‘लिटरेचर’ शब्द ‘लैटर्स’ से निकला है जिसका अर्थ साहित्य में केवल लिखित और पठित रूप को अभिव्यक्ति देता है, जबकि विद्वानों का मानना है कि साहित्य को केवल लिपि में संकुचित नहीं किया जा सकता इसलिए मौखिक रूप से अभिव्यक्त साहित्य को यदि साहित्य में शामिल कर लिया जाए तो इसका स्वरूप और भी व्यापक हो जाता है। लोक साहित्य अधिकतर मौखिक रूप में ही मिलता है जिससे वर्तमान में लिपिबद्ध भी किया जा रहा है।
लोक साहित्य को परिभाषित करने के लिए विद्वानों ने निम्नलिखित मत दिए हैंः-
धीरेंद्र वर्मा, “ वास्तव में लोक साहित्य वह मौखिक अभिव्यक्ति है जो भले ही किसी व्यक्ति ने गढ़ी हो पर आज इसे सामान्य लोक समूह अपनी ही मानता है। इसमें लोकमानस प्रतिबिंबित रहता है।”
डॉ त्रिलोचन पांडे के अनुसार, “ जन-साहित्य या लोक-साहित्य उन समस्त परंपराओं, मौखिक तथा लिखित रचनाओं का समूह है जो किसी एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा निर्मित तो हुआ है परंतु उसे समस्त जन समुदाय अपना मानता है। इस साहित्य में किसी जाति, समाज या एक क्षेत्र में रहने वाले सामान्य लोगों की परंपराएं, आचार-विचार, रीति-रिवाज, हर्ष-विषाद आदि समाहित रहते हैं।”
कृष्ण देव उपाध्याय के अनुसार, “ सभ्यता के प्रभाव से दूर रहने वाली अपनी सहज अवस्था में वर्तमान जो निरक्षर जनता है उसकी आशा-निराशा, हर्ष-विषाद, जीवन-मरण, लाभ- हानि, सुख-दुख आदि की अभिव्यंजना जिस साहित्य में प्राप्त होती है उसे लोक-साहित्य कहते हैं इस प्रकार लोक साहित्य जनता का वह साहित्य है जो जनता के द्वारा जनता के लिए लिखा गया हो।”
डॉ. रवींद्र भ्रमर के अनुसार, “ लोक साहित्य जनमानस की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। यह बहुधा अलिखित ही रहता है और अपनी मौखिक परंपरा द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आगे बढ़ता है।”
डॉ. सत्येंद्र के अनुसार, “लोक साहित्य के अंतर्गत वह समस्त बोली या भाषागत अभिव्यक्तियाँ आती है जिनमें आदिम मानव के अवशेष उपलब्ध है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि लोक साहित्य और लोक जीवन को अभिव्यक्त करने वाला साहित्य है। यह सर्वसाधारण की संपत्ति है लोक साहित्य जीवन का वर समुद्र है जिसमें भूत भविष्य वर्तमान सभी कुछ संचित रहता है। इस साहित्य में लोग जीवन की सच्ची झलक देखने को मिलती है। यह कैसी कृति है जिस पर समस्त लोग का समान अधिकार है। लोक व्यवहार शिक्षा का आधार कहा जाता है।
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