लोक साहित्य की विशेषताएँ
लोक साहित्य की विशेषताएँ: लोक साहित्य वह साहित्य है जो जनमानस की चित्तवृत्तियों से संबंधित है। यह मानव मन की उपज है। लोक साहित्य शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है लोक और साहित्य। लोक का अर्थ है जन सामान्य वर्ग और साहित्य का अर्थ है उस जन सामान्य वर्ग की संपूर्ण भावनाओं की अभिव्यक्ति। लोक साहित्य किसी भी समाज, वर्ग या समूह के सामूहिक जीवन का दर्पण होता है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष का चिंतन, विवेचन या विश्लेषण नहीं होता बल्कि सामूहिक चेतना, अनुभवों, संवेदनाओं की अभिव्यक्ति रहती है। किसी भी समाज के इतिहास और संस्कृति को समझने के लिए लोक साहित्य का अध्ययन आवश्यक होता है। मानवता का वास्तविक इतिहास लोक साहित्य के आधार पर ही निर्मित होता है।
लोक साहित्य की विशेषताएँ | Lok Sahity ki visheshtayen
लोक साहित्य को परिभाषित करने के लिए विद्वानों ने निम्नलिखित मत दिए हैंः-
धीरेंद्र वर्मा, “ वास्तव में लोक साहित्य वह मौखिक अभिव्यक्ति है जो भले ही किसी व्यक्ति ने गढ़ी हो पर आज इसे सामान्य लोक समूह अपनी ही मानता है। इसमें लोकमानस प्रतिबिंबित रहता है।”
डॉ त्रिलोचन पांडे के अनुसार, “ जन-साहित्य या लोक-साहित्य उन समस्त परंपराओं, मौखिक तथा लिखित रचनाओं का समूह है जो किसी एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा निर्मित तो हुआ है परंतु उसे समस्त जन समुदाय अपना मानता है। इस साहित्य में किसी जाति, समाज या एक क्षेत्र में रहने वाले सामान्य लोगों की परंपराएं, आचार-विचार, रीति-रिवाज, हर्ष-विषाद आदि समाहित रहते हैं।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि लोक साहित्य लोक का साहित्य है, लोक चेतना का साहित्य है, लोक मानस और लोक संस्कृति का साहित्य है, लोगों के जीवन अनुभवों का सत्य है। यह सहज, सरल, अनौपचारिक और आडंबर रहित साहित्य है। इसमें आम जनता के रीति-रिवाज, विधि-विधान, क्रियाकलाप, विश्वास, प्रथाएं, परंपराएं आदि सभी कुछ समाहित रहता है।
लोक साहित्य का स्वरूप और विशेषताएँ-
लोक साहित्य एक शास्त्र है जो अपने अपने कई शास्त्र और एक बड़े इतिहास को समाहित किए हुए हैं। विद्वानों ने लोक साहित्य के स्वरूप को निम्नलिखित शब्दों में स्पष्ट किया है-
- लोक साहित्य और लोक का साहित्य है जो सभ्यता की सीमा से बाहर है और सभ्य समाज में जिस का स्थान नहीं है।
- यह जंगली जातियों का साहित्य है यहां एक शब्द का तात्पर्य उन लोगों के साहित्य से है जो आदिम परंपराओं को सुरक्षित रखे हुए हैं।
- लोक साहित्य ग्रामीण साहित्य है इस साहित्य पर समस्त जनसमूह का अधिकार है।
- लोक साहित्य समस्त लोक के राग-विराग, हर्ष-विषाद, सुख-दुख, जीवन-मरण की सहज एवं सरस अभिव्यक्ति है।यह साहित्य सर्व व्यापक है। यह है उससे अधिक राष्ट्रव्यापी है और जितना राष्ट्रव्यापी है उससे भी कहीं अधिक अंतरराष्ट्रीय है।
- यह संपूर्ण मानव जाति की विरासत है। लोक साहित्य जनता द्वारा रचित, जनता का, जनता के लिए साहित्य है।
- लोक साहित्य में किसी व्यक्ति विशेष की नहीं अभी तो समस्त जगत के कल्याण की भावना समाहित होती है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर लोक साहित्य की विशेषताएं इस प्रकार है-
- मौखिक परंपरा का साहित्यः लोक साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अधिकांशतः मौखिक है। यह मौखिक रूप से ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहा है। लोग अपने सुख दुख, राग विराग, जीवन मरण से संबंधित समस्त भावनाओं को एक दूसरे के साथ जिस रूप में बांटते हैं उसे लोक साहित्य का ही हिस्सा माना जाता है। लोक साहित्य का सौंदर्य उनके मौखिक रूप में ही माना जाता है। इस संबंध में फ्रेंक सिजविक का कथन है, ‘ लोक साहित्य का लिपिबद्ध होना उसकी मृत्यु है।’
- निरंतर परिवर्तनशीलःलोक साहित्य निरंतर परिवर्तनशील होता रहता है। प्रत्येक समाज और जाति से जुड़ी परंपराएं और प्रथाएं तथा उनसे जुड़ी कथाएं, कहानियां, गीत आदि पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तित होते रहते हैं। व्यक्ति उनमें अपने अनुसार कथ्य जोड़ता चलता है। भाषा और सभ्यता के विकास के साथ साथ लोक साहित्य की भाषा भी बदल जाती है तथा समय और स्थिति के अनुकूल लोक रचनाकार उसमें कुछ नया जोड़कर चलता है।
- साहित्य शास्त्र के अनुशासन से रहितःलोक साहित्य में शिष्ट साहित्य की तरह साहित्य शास्त्र के नियमों का बंधन नहीं रहता। यह साहित्य मानव के जीवन की वास्तविक अनुभूतियां है, इसलिए यह उसी रूप में अभिव्यक्त होती है। इस साहित्य में कला या सौंदर्य से जुड़ी किसी तरह की नियमावली का बंधन नहीं रहता।
- अज्ञात रचनाकारःलोक साहित्य में रचनाकार का व्यक्तित्व सदैव अज्ञात ही रहता है। लोक साहित्य का विशाल भंडार हमारे सामने है पर उसका निर्माण किसने किया है यह बतलाना कठिन है। मौखिक परंपरा के रूप में चलने से लोक रचनाकार का नाम अज्ञात हो जाता है और संपूर्ण समुदाय उसे अपना ही मानता है।
- विविध विषयःलोक साहित्य का विषय क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। लोक जीवन के जन्म से लेकर मरण तक के जितने भी पहलू है वह सभी इसके भीतर समाहित होते हैं। एक छोटे से गांव से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक इसकी पहुंच है।
- अकृत्रिम एवं नैसर्गिक साहित्यःलोक साहित्य की अभिव्यक्ति स्वाभाविक, सहज, स्वच्छंद एवं प्रवाहमयी होती है। बनावटीपन, दिखावा, अलंकार प्रियता, सजावट का इसमें कोई स्थान नहीं होता। यह पूर्ण रूप से अपने प्राकृतिक अवस्था में ही बना रहता है जिसकी सरलता और सहजता ही इसका प्राण बिंदु है।
- लोक संस्कृति का अभिन्न अंगःलोक साहित्य लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है। संस्कृति एक ऐसी जीवन पद्धति है जो प्राकृतिक और अर्जित संस्कारों के माध्यम से मनुष्य के भीतर की समस्त क्षमताओं को जागृत करती है। संस्कृति का संबंध किसी भी देश या जाति या किसी विशिष्ट समाज की समस्त धार्मिक आस्थाओं, प्रवृत्तियों, विचारधाराओं, रुचियों, व्यवहारों, रीति- रिवाज एवं रहन-सहन से होता है और यही तमाम भावनाएं लोक साहित्य में अभिव्यक्त होती है।
- शिष्ट साहित्य का जनकःलोक साहित्य का विषय क्षेत्र इतना व्यापक है कि शिष्ट साहित्य का विषय चुनाव इसी के भीतर से होता है। शिष्ट साहित्य की विधाएं जैसे कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक आदि का उद्भव और विकास लोक साहित्य के ही विभिन्न रूपों से होता है। राम और कृष्ण को लेकर जो तथ्य लोकमानस में रचे गए थे उन्हीं को आधार बनाकर शिष्ट साहित्य की अमूल्य रचनाएँ रची गई हैं। यदि लोक साहित्य का सम्यक अनुशीलन एवं संवर्धन किया जाए तो शिष्ट साहित्य में भी वृद्धि होगी।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि लोक साहित्य लोक जीवन को प्रतिध्वनित करने वाला साहित्य है। यह साहित्य मौखिक है तथा कृत्रिमता और आडंबर से कोसों दूर है। इसमें आमजन के हास-परिहास तथा दैनिक क्रियाकलापों का स्वाभाविक वर्णन मिलता है।
इसे भी पढ़ें : लोक साहित्य का अर्थ एवं परिभाषाएँ