माँ पर कविता | Maa par Kavita in Hindi
जब जब पाप बढ़े धरती पर,माँ आती बन मीत।
झूठ की हार सदा होती है,सत्य की होती जीत।।
परम् दयालू है माँ देखो,हरती सभी कलेश।
भर जाते आँसू आंखों में,देख जगत की रीत।।
माँ की ममता का ना होता, जग में कोई मोल।
सबको गले लगाती माता, ऐसी उसकी प्रीत।।
माँ है तो सबकुछ है जग में,बिन माता सब सून।
जब जब बात करे माता तब,बजे सुरीला गीत।।
सिंह सवारी करती माता,लेकर हाथ कपाल।
लाल लाल भृकुटी जब ताने,होता काल प्रतीत।।
माधुरी मिश्रा
वाराणसी
माँ पर कविता | Maa par Kavita in Hindi
ममतामयी माँ
माँ को तड़फता
सिसकता कराहता
देख मन विचलित
हो जाता है ।
आँखो मे आंसू नही
मन तड़फ जाता है ।
मां की जिन्दगी के
अंतिम पडाव का ये
हाल देखा नही जाता है ।
दर्द दिल का
सहा नही जाता है ।
अन्न जल मोह माया
सभी तो त्याग दिया है ।
सांसो ने जैसे फिर से
जकड लिया है ।
मृत्यु के ऐसे अन्त ने
मन को झकझोरा है ।
इस समय न कोई
तेरा है न मेरा है ।
धन न दौलत पति
न बेटा रिश्ते न नाते ।
डाक्टर न दवा
न कोई नेता कोई भी
कुछ कर पाने मे
असमर्थ असहाय
निरूतर हो गये है ।
वाह रे ईश्वर
वाह रे जीवन का अन्त
वह विहंगम दृष्य देख
जैसे सभी सो गये है ।
जिस मां ने पाल
पोसकर इतना सामर्थ
साहसी बनाया ।
उस माँ को
इस हाल मे देख
कुछ नही कर पाया ।
अपने आपको आसमर्थ
आसहाय पाया ।
जिस माँ को सौ वर्ष
जीने की दुआ माँगता था ।
उस माँ का अन्त
सौ मिनिट देखना
मुश्किल था ।
हे ईश्वर अब तो
इस करूणामयी
माँ का दुख
हरण कर लीजिये ।
हफ्तो से तड़फती
ममतामयी माँ का
अन्त कीजिए ।
और हमेशा के लिये
इस तडफती जिन्दगी
से मुक्ति दीजिए ।
✍अनन्तराम चौबे
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