मलिक मुहम्मद जायसी
मलिक मुहम्मद जायसी : मलिक मुहम्मद जायसी, मलिक वंश के थे। मिस्त्र में मलिक सेनापति और प्रधानमंत्री को कहते थे। खिलजी राज्यकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चचा को मारने के लिए बहुत से मलिकों को नियुक्त किया था। इस कारण यह नाम इस काल में काफी प्रचलित हो गया। इरान में मलिक जमींदार को कहते हैं। मलिक जी के पूर्वज निगलाम देश इरान से आये थे और वहीं से उनके पूर्वजों की पदवी मलिक थी। मलिक मुहम्मद जायसी के वंशज अशरफी खानदान के चेले थे और मलिक कहलाते थे। तारीख फीरोजशाही में है कि बारह हजार रिसालदार को मलिक कहा जाता था।
मलिक मुहम्मद जायसी
मलिक मूलतः अरबी भाषा का शब्द है। अरबी में इसके अर्थ स्वामी, राजा, सरदार आदि होते हैं। मलिक का फारसी में अर्थ होता है – “अमीर और बड़ा व्यापारी’। जायसी का पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था। मलिक इनका पूर्वजों से चला आया “सरनामा’ है। मलिक सरनामा से स्पष्ट होता है कि उनके पूर्वज अरब थे। मलिक के माता- पिता जापान के कचाने मुहल्ले में रहते थे। इनके पिता का नाम मलिक शेख ममरेज था, जिनको लोग मलिक राजे अशरफ भी कहा करते थे। इनकी माँ मनिकपुर के शेख अलहदाद की पुत्री थी।
मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म :-
मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म 900 हिजरी ( सन् 1492 के लगभग ) हुआ माना जाता है। जैसा कि उन्होंने खुद ही कहा है :-
या अवतार मोर नव सदी।
तीस बरस उपर कवि बदी।।
कवि की दूसरी पंक्ति का अर्थ यह है कि वे जन्म से तीस वर्ष पीछे अच्छी कविता कहने लगे। जायसी अपने प्रमुख एवं प्रसिद्ध ग्रंथ पद्मावत के निर्माण- काल के संबंध में कहा है :-
सन नव सै सत्ताइस अहा।
कथा आरंभ बैन कवि कहा।।
इसका अर्थ यह है कि “पदमावत’ की कथा के प्रारंभिक वचन कवि ने सन 927 हिजरी ( सन् 1520ई. के लगभग ) में कहा था। ग्रंथ प्रारंभ में कवि ने “”शाहे वक्त” शेरशाह की प्रशंसा की है, जिसके शासनकाल का आरंभ 947 हिजरी अर्थात सन् 1540 ई. से हुआ था। उपर्युक्त बात से यही पता चलता है कि कवि ने कुछ थोड़े से पद्य 1540 ई. में बनाए थे, परंतु इस ग्रंथ को शेरशाह के 19 या 20 वर्ष पीछे समय में पूरा किया होगा।
जायसी का जन्म स्थान :-
जायसी ने पद्मावत की रचना जायस में की –
जाएस नगर धरम् अस्थान।
तहवां यह कबि कीन्ह बखानू।।
जायसी के जन्म स्थान के विषय में मतभेद है कि जायस ही उनका जन्म स्थान था या वह कहीं और से आकर जायस में बस गए थे। जायसी ने स्वयं ही कहा है :-
जायस नगर मोर अस्थानू।
नगर का नवां आदि उदयानू।।
तहां देवस दस पहुँचे आएउं।
या बेराग बहुत सुख पाय।।
जायस वालों और स्वयं जायसी के कथानुसार वह जायस के ही रहने वाले थे। पं. सूर्यकांत शास्री ने लिखा है कि उनका जन्म जायस शहर के “कंचाना मुहल्लां’ में हुआ था। कई विद्वानों ने कहा है कि जायसी गाजीपुर में पैदा हुए थे। मानिकपुर में अपने ननिहाल में जाकर रुके थे।
डा. वासदेव अग्रवाल के कथन व शोध के अनुसार :-
जायसी ने लिखा है कि जायस नगर में मेरा जन्म स्थान है। मैं वहाँ दस दिनों के लिए पाहुने के रुप में पहुँचा था, पर वहीं मुझे वैराग्य हो गया और सुख मिला।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जायसी का जन्म जायस में नहीं हुआ था, बल्कि वह उनका धर्म-स्थान था और वह वहीं कहीं से आकर रहने लगे थे।
जायसी की काव्य रचना
साहित्यिक विद्वानों तथा अनेकों शोधकर्ताओं के साक्ष्या की बुनियाद पर जायसी की निम्नलिखित काव्य रचनाएँ हैं–
1. पद्मावत
2. अखरावट
3. सखरावत
4. चंपावत
5. इतरावत
6. मटकावत
7. चित्रावत
8. सुर्वानामा
9. मोराईनामा
10. मुकहरानामा
11. मुखरानामा
12. पोस्तीनामा
13. होलीनामा
14. आखिरी कलाम
15. धनावत
16. सोरठ
17. जपजी
18. मैनावत
19. मेखरावटनामा
20. कहारनामा
21. स्फुट कवितायें
22. लहतावत
23. सकरानामा
24. मसला या मसलानामा
कहरानामा में आले मुहम्मद की सूची दी गई है। कहा जाता है कि पास्तीनामा अपने गुरु के अमल पर व्यंग करते हुए लिखा था। जब जायसी ने यह कृति पूरी की, तो इसे अपने गुरु के सामने प्रस्तुत किया, इनके गुरु बहुत नाराज हुए। उन्होंने नाराज होकर जायसी को शाप दे डाला कि तुम्हारे सातों बच्चे छत गिरने से मर जायेंगे। इसी शाप के कारण इनके सातों बच्चे प्राणांत कर गए। इसके साथ ही गुरु ने यह भी कहा था कि जायसी तुम्हारा नाम तुम्हारे चौदह ग्रंथों के द्वारा जिंदा रहेगा। अंत में यह सब वैसा ही हुआ।
मुसलमानी धर्म के विविध अंगों पर काव्य लिखने की परंपरा जायसी ने ही आरंभ की थी, जो बाद तक चली आ रही है। “आखरी कलाम’ में जायसी ने कयामत के दिन का चित्रण काफी सुंदरता से किया है।
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