नीति श्लोक अर्थ सहित

नीति श्लोक अर्थ सहित – नीति श्लोक संस्कृत में – Neeti shloka Artha Sahit in Hindi – Niti Shlok Meaning

नीति श्लोक अर्थ सहित : आज के समय में हर कोई उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला प्राप्त करना चाहता हैं। इस कला को नीति कहते हैं। यदि आपके पास यह कला हैं तो आपको जीवन में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। इसके कारण ही आप अपने जीवन की किसी भी कठनाई का डटकर सामना कर सकते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए niti sloka, आदि की जानकारी लाए हैं जिसे पढ़कर आपको बनाये गये सिद्धान्तों पर चले में आसानी होगी।

नीति श्लोक अर्थ सहित

दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि ।

एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते ॥

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।

पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

संस्कृत श्लोक

चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ।।

हिंदी अर्थ 

( अर्जुन ने श्री हरि से पूछा ) हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है ; उसका निग्रह ( वश में करना ) मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ ।

संस्कृत श्लोक

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते ।।

हिंदी अर्थ 

( श्री भगवान् बोले ) हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुंतीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है ।

संस्कृत श्लोक

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥

हिंदी अर्थ

कोई भी काम कड़ी मेहनत से ही पूरा होता है सिर्फ सोचने भर से नहीं। कभी भी सोते हुए शेर के मुंह में हिरण खुद नहीं आ जाता।

नीति श्लोक संस्कृत में

संस्कृत श्लोक

अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ।।

हिंदी अर्थ

आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ ।

संस्कृत श्लोक

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।

हिंदी अर्थ

मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है । परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता ।

संस्कृत श्लोक

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ।।

हिंदी अर्थ

जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है ।

संस्कृत श्लोक

बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः ।
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ।।

हिंदी अर्थ

जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है ।

संस्कृत श्लोक

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति ।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ।।

हिंदी अर्थ

अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है । चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी ) कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है ।(आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती ।

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