पारिभाषिक शब्दावली का अर्थ – गुण-दोष

पारिभाषिक शब्दावली का अर्थ – गुण-दोष

पारिभाषिक शब्दावली का अर्थ – गुण-दोष : पारिभाषिक शब्दावली के गुण-दोषों का निरूपण कीजिए।

महेन्द्र चतुर्वेदी के अनुसार-“पारिभाषिक शब्द के दो मुख्य गुण होते हैं

(1) नियतार्थता,

(2) परस्पर अपवर्णिता।

पारिभाषिक शब्द का अर्थ नियत निश्चित होना चाहिए और एक अर्थ को व्यक्त करने वाला केवल एक ही शब्द होना चाहिए।”

प्रथम गुण से अभिप्राय है कि शब्द विशेष एक विशेष अर्थ का ही द्योतक होना चाहिए । द्वितीय गुण से अभिप्राय है कि एक शब्द के यदि दो या दो से अधिक अर्थ हों तो उनमें अर्थ स्वभाव की छाया का सूक्ष्म अन्तर अवश्य होता है। अतः विषम परिस्थिति के अनुसार उचित शब्द का चयन करना चाहिए।

पारिभाषिक शब्द का रूप यथासम्भव लघु होना चाहिए, जिससे प्रयोग करने में असुविधा न हो।

पारिभाषिक शब्द के नियमों में प्रत्यय, उपसर्ग या अन्य उपयुक्त शब्द जोड़कर परिवर्तन किए जाने की छूट होनी चाहिए।

पारिभाषिक शब्दों के अन्य गुण-

  1. पारिभाषिक शब्दोंके अर्थ में संदिग्धता, अस्पष्टता, दुर्बोधता नहीं होनी चाहिए।
  2. एक संकल्पना के लिए एक ही पारिभाषिक शब्द होना चाहिए।
  3. पारिभाषिक शब्दछोटा व सरल होना चाहिए जिससे कि वह स्पष्ट रूप में सरलतापूर्वक याद हो सकेगा।
  4. पारिभाषिक शब्दोंको बोलने का ढंग-प्रकृति और व्याकरण के नियम उस भाषा के अनुसार होना चाहिए जिस भाषा में उसका प्रयोग किया जा रहा है।
  5. पारिभाषिक शब्दोंमें उर्वरता होनी चाहिए तथा एक श्रेणी विशेष के पारिभाषिक शब्द एक ही प्रकार के होने चाहिए।
  6. पारिभाषिक शब्दयथासम्भव ‘एक शब्द’ और ‘मूल शब्द’ हों परन्तु जहाँ एक शब्द से काम न चलता हो वहाँ संयुक्त या मिश्रित शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
  7. पारिभाषिक शब्दोंका चयन करते समय यह ध्यातव्य रहे कि उनका जन-जीवन से सम्बन्ध हो । सामान्य जन में जो विदेशी शब्द रूढ़ हो गये हैं, उन्हें यथावत् स्वीकार कर लेना चाहिए; यथा-टिकट, रेल,रेडियो आदि।
  8. पारिभाषिक शब्द व्याख्यात्मक नहीं होने चाहिए।

निष्कर्षतः पारिभाषिक शब्द सरल,संक्षिप्त, अर्थपूर्ण व परस्पर अपवर्णित होने चाहिए।

पारिभाषिक शब्दावली के दोष (अशुद्धियाँ)

“भाषा की व्याकरणिक तथा संरचनात्मक व्यवस्था से हटकर असंगत या अनुचित अर्थ प्रकट करने वाले असामान्य प्रयोग ‘दोष’ कहलाते हैं।” पारिभाषिक शब्दावली के अधोलिखित दोष हैं-

(1) प्रयुक्ति सम्बन्धी दोष,

(2) सहप्रयोग सम्बन्धी दोष,

(3) निर्माण सम्बन्धी दोष,

(4) अर्थ सम्बन्धी दोष,

(5) प्रयोग सम्बन्धी दोष ।

(1) प्रयक्ति सम्बन्धी दोष-

हिन्दी का पारिभाषिक शब्द भण्डार अधिक समृद्ध हो जाने के कारण प्रयुक्ति सम्बन्धी दोष की सम्भावना भी बढ़ गई हैं क्योंकि किस शब्द का प्रयोग किस क्षेत्र में किस विषय के साथ कैसा है इसका ध्यान न रखने पर दोष आ जाता है।

(2) सहप्रयोग सम्बन्धी दोष-

कोश में पारिभाषिक शब्द का जो रूप पाया जाता है वह वाक्य में प्रयोग होते समय कुछ बदल जाता है । शब्दों के रूपान्तरों से परिचित न होने के कारण तथा विशिष्ट क्षेत्र के लिए सही शब्द का चयन न कर पाने से त्रुटि की संभावना रहती है, यथा-पंजीकरण का रूप पत्र के साथ पंजीकृत बन जाता है।

(3) निर्माण सम्बन्धी दोष-

शब्दों का निर्माण प्रत्ययों, उपसर्गों तथा समास की सहायता से होता है। सन्धि, समास, उपसर्ग व प्रत्यय सम्बन्धी नियमों का ज्ञान  न होने पर यह दोष आ जाता है, जैसे-Re-observation को पुनरावलोकन न लिखकर पुनः अवलोकन लिखना।

(4) अर्थ सम्बन्धी दोष-

रूप-साम्य होते हुए भी शब्द के अर्थ में पर्याप्त भिन्नता होती है, जैसे-‘भाग’ शब्द में प्र, अनु, वि उपसर्ग जोड़कर क्रमशः प्रभाग, अनुभाग,विभाग शब्द बनते हैं । अर्थ का पूर्ण ज्ञान न होने पर इस दोष की सम्भावना बढ़ जाती है।

(5) प्रयोग सम्बन्धी दोष-

शब्द के अर्थ के छोटे भेद को बिना पहचाने हुए उसका प्रयोग करने पर त्रुटि की सम्भावना रहती है,जैसे-अंग्रेजी शब्द ‘इमोशनल’ के दो पर्याय हैं-भावना प्रधान और भावुक । पुस्तक के लिए भावना प्रधान’ और व्यक्ति विशेष के लिए भावुक’ शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो उसमें प्रयोग सम्बन्धी दोष आ जाता है।

अन्य दोष-

(1) पारिभाषिक शब्द का सबसे बड़ा दोष दुरूहता है। कुछ पारिभाषिक शब्दों में ऐसा आशय छिपा रहता है जो शब्द के विश्लेषण से भी स्पष्ट नहीं होता।

(2) भारतीय संस्कृति मिश्रित संस्कृति है इसका विचार न कर यदि ‘अति शुद्धता’ पर बल दिया जाता है तो वह समाज से अलग-थलग हो जाता है। – अतिशुद्धता के फेर में शब्द हास्यास्पद और भौंड़े हो गए हैं।

(3) हमारी अंग्रेजी दासताजन्य मनोवृत्ति व उदासीनता इनका प्रयोग करने से हमें रोकती है जिसके कारण इनमें सुबोधता नहीं है । पारिभाषिक शब्दावली उपयुक्त तभी होगी जब उसका उपयोग किया जायेगा।

इस सम्बन्ध में देवेन्द्रनाथ शर्मा जी ने ठीक ही कहा है-“कहीं से इक्के-दुक्के शब्दों को लेकर उपहास करने या उन पर व्यंग्य कसने से न तो परिस्थिति सुधरेगी और न कोई लाभ होगा। यदि पाते हैं कि कोई शब्द पूर्ण संतोषप्रद नहीं है तो आलोचना मत कीजिए, व्यंग्य मत कीजिए, बल्कि उससे अच्छा शब्द सझाइए. क्योंकि याद रखिए, वह शब्द आपका है, भाषा आपकी है और अपनी वस्तु का उपहास नहीं किया जाता।

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