पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व:  पारिभाषिक शब्दावली की व्याख्या करते हुए इसके प्रमुख गुण बताइए।  अथवा  ‘’ पारिभाषिक शब्दावली से आप क्या समझते हैं ? पारिभाषिक शब्दावली की विशेषताएँ बताइए। अथवा ‘’ पारिभाषिक शब्दावली का परिचय प्रस्तुत करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।

पारिभाषिक शब्दावली का स्वरूप एवं महत्व

जब किसी शब्द का प्रयोग एक सुनिश्चित अर्थ में किया जाता है और लक्षणा-व्यंजना में उनका कोई अन्य अर्थ निकालने की कोशिश नहीं होती; उनके अर्थ को पूरी तरह सीमित कर दिया जाता है । तब वह पारिभाषिक शब्द कहलाता है। इस प्रकार की विशेष शब्दावली ही पारिभाषिक शब्दावली कहलाती है।

डॉ. रघुवीर सहाय के अनुसार, जिन शब्दों की सीमा बाँध दी जाती है। वे पारिभाषिक शब्द हो जाते हैं और जिनकी सीमा नहीं बाँधी जाती वे साधारण शब्द होते हैं।

डॉ. गोपाल शर्मा की मान्यता है कि पारिभाषिक शब्द वह शब्द है जो किसी ज्ञान विशेष के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होता हो तथा जिसका अर्थ एक परिभाषा द्वारा स्थिर किया गया हो।

डॉ. भोलानाथ तिवारी के शब्दों में, पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो रसायनभौतिकीदर्शनराजनीति आदि विभिन्न विज्ञान या शास्त्रों के शब्द होते हैं तथा जो अपने-अपने क्षेत्रों में विशिष्ट अर्थ में सुनिश्चित रूप से पारिभाषिक होते हैं। अर्थ और प्रयोग की दृष्टि से निश्चित रूप से पारिभाषिक होने के कारण ही ये शब्द पारिभाषिक शब्द कहे जाते हैं।

सामान्यतः पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग ज्ञान-विज्ञान विशेष के क्षेत्र में होता है। इन शब्दों का अर्थ सुनिश्चित होता है।

पारिभाषिक शब्दों के प्रमुख गुण-

महेन्द्र चतुर्वेदी के अनुसार पारिभाषिक शब्द के दो मुख्य गुण होते हैं

(1) नियतार्थता,

(2) परस्पर अपवर्णिता।

पारिभाषिक शब्द का अर्थ नियत निश्चित होना चाहिए और एक अर्थ को व्यक्त करने वाला केवल एक ही शब्द होना चाहिए।”

प्रथम गुण से अभिप्राय है कि शब्द विशेष एक विशेष अर्थ का ही द्योतक होना चाहिए। द्वितीय गुण से अभिप्राय है कि एक शब्द के यदि दो या दो से अधिक अर्थ हों तो उनमें अर्थ स्वभाव की छाया का सूक्ष्म अन्तर अवश्य होता है। अतः विषम परिस्थिति के अनुसार उचित शब्द का चयन करना चाहिए।

पारिभाषिक शब्दों के अन्य गुण

  1. पारिभाषिक शब्दोंके अर्थ में संदिग्धता, अस्पष्टता, दुर्बोधता नहीं होनी चाहिए।
  2. एक संकल्पना के लिए एक हीपारिभाषिक शब्द होना चाहिए।
  3. पारिभाषिक शब्दछोटा व सरल होना चाहिए जिससे कि वह स्पष्ट रूप में सरलतापूर्वक याद हो सकेगा।
  4. पारिभाषिक शब्दों को बोलने का ढंग-प्रकृति और व्याकरण के नियम उस भाषा के अनुसार होना चाहिए। जिस भाषा में उसका प्रयोग किया जा रहा है।
  5. पारिभाषिक शब्दोंमें उर्वरता होनी चाहिए तथा एक श्रेणी विशेष के पारिभाषिक शब्द एक ही प्रकार के होने चाहिए।
  6. पारिभाषिक शब्दयथासम्भव ‘एक शब्द’ और ‘मूल शब्द’ हों परन्तु जहाँ एक शब्द से काम न चलता हो वहाँ संयुक्त या मिश्रित शब्द का प्रयोग करना चाहिए।
  7. पारिभाषिक शब्दोंका चयन करते समय यह ध्यातव्य रहे कि उनका जन-जीवन से सम्बन्ध हो। सामान्य जन में जो विदेशी शब्द रूढ़ हो गये हैं, उन्हें यथावत् स्वीकार कर लेना चाहिए; यथा-टिकट, रेल, रेडियो आदि।
  8. पारिभाषिक शब्दव्याख्यात्मक नहीं होने चाहिए।

पारिभाषिक शब्दों का महत्व-

पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण से हिन्दी का शब्द भण्डार निरन्तर समृद्ध हो रहा है। आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की समृद्ध शब्द-सम्पदा की ठोस पहचान बनी है। यही कारण है कि विश्व में हिन्दी का प्रसार बहुत व्यापक स्तर पर तो हो ही रहा है, साथ ही हिन्दी सीखने और प्रयोग में लाने की मानसिकता में भी सकारात्मक बदलाव आया है।

जिसके कारण पारिभाषिक शब्द ‘विशेषज्ञ’ विशेष की सम्पत्ति न रहकर जनसाधारण की भी सम्पत्ति बन गए हैं। नियतार्थता एवं परस्पर अपवर्णिता जैसे गुणों के कारण ही इसका महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

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