Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो से महत्वपूर्ण तथ्य

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो से महत्वपूर्ण तथ्य

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो से महत्वपूर्ण तथ्य : पृथ्वीराज रासो के रचनाकार चंदबरदाई हैं । चंदबरदाई का जन्म 1168 ईस्वी में लाहौर में हुआ । इनका वास्तविक नाम पृथ्वीभट्ट था। यह बलिद्दह नाम से प्रसिद्ध थे।

पृथ्वीराज रासो | Prithviraj Raso

पृथ्वीराज रासो 69 समय में विभाजित है । इनका सबसे छोटा पुत्र जल्हण था । जिसने पृथ्वीराज रासो के अंतिम 10 समय लिखे थे।

पुस्तक जल्हणन हत्थै दै चली गज्जन नृप काज”।।

पृथ्वीराज रासो में 68 प्रकार के छंद देखने को मिलते हैं। इसे आदिकाल में रचित छंदों का पिटारा या छंदों का अजायबघर कहा जाता है।चंदबरदाई का प्रिय छंद छप्पय छंद है ।

  • डॉ नामवर सिंह ने चंदबरदाई को छंदों का राजा कहा है।
  • शिव सिंह सेंगर ने भी इनके लिए यही बात कही है ।
  • पृथ्वीराज रासो का उद्धारक कर्नल टॉड को कहा जाता है।
  • शंभूनाथ सिंह ने पृथ्वीराज रासो को विकसन शील काव्य की संज्ञा दी है ।
  • डॉ बच्चन सिंह ने पृथ्वीराज रासो को महाकाव्यात्मक राजनीतिक त्रासदी कहा है।

इसका रचना काल 1343 ईस्वी माना जाता है । कथानक रूढियों का सबसे सुंदर प्रयोग पृथ्वीराज रासो में देखा जा सकता है। यह ग्रंथ डिंगल पिंगल शैली में लिखा गया है ।

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो के प्रमुख समय

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो के प्रमुख समय : दोस्तों ! हम आपको बता दें कि पृथ्वीराज रासो के गुणोत्तर समयो में कुछ समय प्रसिद्ध है जो इस प्रकार है :

  1. समय: आदि पर्व सम्यौ (समय)
  2. समय: दासम सम्यौ
  • इस समय में विष्णु के 10 अवतारों का चित्रण मिलताहै। इस प्रकार हिंदी में पहली बार राम कथा और कृष्ण कथा का उल्लेख पृथ्वीराज रासो में मिलता है ।

20वां समय : पद्मावती समय

57वां समय : कयमास वध समय

  • यह पृथ्वीराज रासो का सर्वाधिक मार्मिक समय माना जाता है ।

61वां समय : कन्न उज्ज समय

  • यह पृथ्वीराज रासो का सबसे बड़ा समय है ।

65वां समय : विवाह सम्यौ

69वां समय : महोबा जुद्ध सम्यौ

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो के रूपांतरण

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो के रूपांतरण : राजस्थान में पृथ्वीराज रासो की 60 से अधिक प्रतियां प्राप्त हुई है । नरोत्तम दास स्वामी ने पृथ्वीराज रासो के चार रूपांतरण निर्धारित किए हैं जो इस प्रकार है :

रूपांतरण छंद अध्याय का नाम
बृहद रूपांतरण 16306 समय / सम्यौ (69)
मध्यम रूपांतरण 7000 प्रस्ताव
लघु रूपांतरण 3500 खंड
लघुत्तम रूपांतरण 1300
  • माता प्रसाद गुप्त व डॉ दशरथ शर्मा ने लघुत्तम रूपांतरण को सर्वाधिक प्रमाणिक माना है ।
  • मथुरा प्रसाद दीक्षित ने केवल मध्यम रूपांतरण को प्रमाणिक माना है ।
  • वृहद रूपांतरण सर्वाधिक अप्रमाणिक माना गया है और यह सर्वाधिक लोकप्रिय भी है ।

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो को प्रमाणिक व अप्रमाणिक मानने वाले विचारक :

Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो को प्रमाणिक व अप्रमाणिक मानने वाले विचारक : पृथ्वीराज रासो को प्रमाणिक व अप्रमाणिक मानने वाले विचारक इस प्रकार हैं :

सर्वप्रथम डॉ. वूलर’ ने 1875 ई.में कश्मीर यात्रा के दौरान जयानक द्वारा रचित पृथ्वीराज विजय”( 12 सर्ग में रचित संस्कृत महाकाव्य) के आधार पर पृथ्वीराज रासो को अप्रमाणिक घोषित किया । तत्पश्चात विद्वानों के 4 वर्ग बन गए जो इस प्रकार है:-

पहला वर्ग

पहला वर्ग – अप्रमाणिक मानने वाले विद्वान

  1. डॉ. वूलर
  2. श्यामल दास
  3. मुरारी दीन
  4. गौरीशंकर हीरानंद ओझा
  5. रामचंद्र शुक्ल
  6. रामकुमार वर्मा
  7. डॉ. मॉरीसन
  8. देवी प्रसाद
  9. अमृतलाल शील

दूसरा वर्ग

दूसरा वर्ग – प्रमाणिक मानने वाले विद्वान

  1. श्यामसुंदर दास
  2. कर्नल टॉड
  3. मोहनलाल विष्णु लाल पांडेय
  4. मिश्र बंधु
  5. मथुरा प्रसाद दीक्षित

तीसरा वर्ग

तीसरा वर्ग – अर्द्ध प्रमाणिक मानने वाले विद्वान

  1. हजारी प्रसाद द्विवेदी
  2. सुनीति कुमार चटर्जी
  3. मुनि जिनविजय
  4. अगरचंद नाहटा
  5. माता प्रसाद गुप्त
  6. डॉ. दशरथ शर्मा

चतुर्थ वर्ग

चतुर्थ वर्ग – मुक्तक रचना मानने वाले

  1. नरोत्तम दास स्वामी।

पृथ्वीराज रासो को सर्वप्रथम अप्रमाणिक मानने वाले विद्वान डॉ. वूलर हैं। पृथ्वीराज रासो को सर्वथा अप्रमाणिक घोषित करने वाले विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल है । इन्होंने पृथ्वीराज रासो के लिए जाली शब्द का प्रयोग किया है।

श्यामसुंदर दास ने 1905 ईसवी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से पृथ्वीराज रासो का संपादन किया। अर्धप्रमाणिक मानने वाले विद्वानों का विचार है कि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो महाकाव्य की रचना की तो है लेकिन आज उसमें बहुत सारे प्रक्षिप्त अंश पाए जाते हैं।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मूल रूप में पृथ्वीराज रासो को शुक- शुकी संवाद में रचित माना है । इसी आधार पर पर हजारी प्रसाद द्विवेदी ने संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो का संपादन किया है । जिसमें उन्होंने 7 सर्गो को स्थान दिया है।

रासो शब्द की व्युत्पत्ति :

रासो शब्द की व्युत्पत्ति : मुनि जिनविजय ने पुरातन प्रबंध संग्रह 1441 ईस्वी के आधार पर पृथ्वीराज रासो की अर्धप्रमाणिकता को सिद्ध किया है। रासो शब्द की व्युत्पत्ति किस शब्द से मानी गई है । इसमें भी विद्वानों के विभिन्न मत पाए गए हैं जो इस प्रकार है:-

विद्वान व्युत्पत्ति शब्द
रामचंद्र शुक्ल ने माना है – रसायण से
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने माना है – रासक से
गार्सा – द – तासी ने माना है – राजसूय से
ग्रियर्सन ने माना है – राजदेश से
विंदेश्वरी प्रसाद दुबे ने माना है – राजयश: से
नरोत्तम दास स्वामी ने माना है – रसिक से
कविराज श्यामल दास ने माना है – रहस्य से
पोपटलाल शाह ने माना है – रस से

इस प्रकार विभिन्न विद्वानों ने उक्त दिए गए शब्दों से रासो शब्द की उत्पत्ति मानी है।

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Prithviraj Raso | पृथ्वीराज रासो के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यह परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य है। यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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