पुष्प की अभिलाषा – माखनलाल चतुर्वेदी
पुष्प की अभिलाषा – माखनलाल चतुर्वेदी : प्रस्तुत कविता पुष्प के माध्यम से उन भावनाओं की प्रस्तुति है, जिनमें राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव और आत्म त्याग की वृत्ति को अभिव्यक्त किया गया है। कविता में पुष्प का मानवीकरण किया गया है। पुष्प पर मानवीय भावनाओं का आरोप लगाते हुए राष्ट्र के प्रति बलिदान की भावनाओं को सर्वोपरि मानते हुए राष्ट्र समर्पण का आवाहन किया गया है। कवि पुष्प के माध्यम से उन आकांक्षाओं, अभिलाषा ओं को व्यक्त करता है, जो इस भारत के नागरिक होने के नाते हम सभी में होनी चाहिए। एक सामान्य पुष्प देश के लिए जिस समर्पण भावना को प्रकट करता है, वह मनुष्य होने के नाते राष्ट्र पर प्राण न्यौछावर करने के लिए हमें भी उद्युक्त करती है।
पुष्प की अभिलाषा – माखनलाल चतुर्वेदी
पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक
– माखनलाल चतुर्वेदी
पुष्प की अभिलाषा कविता की व्याख्या :
पुष्प कहता है उसकी कोई इच्छा नहीं है कि किसी देवांगना के गहनों में गूंथ कर वह उसके सौंदर्य में वृद्धि करें। आमतौर पर पुष्प आदि का प्रयोग स्त्री सौंदर्य को बढ़ाने के, प्रसाधन के रूप में सदियों से किया जाता है। अतः सौंदर्य उपासक पुष्प की सार्थक सौंदर्य वृद्धिकारक के रूप में ही मानते है। पर यह सौंदर्य, जो ऐहिक है, चिरंतन नहीं है, बल्कि क्षणिक है, नश्वर है। अतः ऐसी नश्वरता के प्रलोभन में पुष्प पडना नहीं चाहता। न केवल सौंदर्य प्रसाधन के रूप में अपने अस्तित्व इति चाहता है।
सदियों से प्रेमीजनों के लिए भी पुष्प ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मानवी विविध भावनाओं के रंगों के साथ पुष्प के अपने आप को समर्पित किया है. मात्र यह पुष्प न किसी प्रेमी के प्रेम का प्रतीक बनना चाहता है, न प्रेमी के लुभाने किसी माला में वह बंधना चाहता है। अर्थात पुष्प के साथ जुड़े पारम्परिक अर्थों के समान वह किसी प्रेमिका को ललचाना के प्रयोग की वस्तु भी बनना नहीं चाहता है।
इतिहास पुरुष और सम्राट जिन्होंने अपने पराक्रम से अतीत को रोशन किया है, उनके पराक्रम, वीरता को नमन करने लिए, उनके प्रति आदर भाव प्रकट करने लिए समाज पुष्पों का सहारा लेकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है। पुष्प ऐसे सम्राटों के शव पर भी पड़ना नहीं चाहता, जहां किसी और की श्रद्धा का वह प्रतीक बने।
न ही देवताओं को समर्पित होकर, देवताओं के सिर पर चढ़कर वह अपने भाग्य की प्रशंसा चाहता है। किसी का सौंदर्य बढ़ाना, किसी के प्रेम का प्रतीक बनाना, किसी की श्रद्धा तो किसी की भक्ति का रूप पाना पुष्प की अभिलाषा नहीं है।
बल्कि वह पुष्प वनमाली से यह निवेदन करता है कि हे वनमाली, मुझे तोड़कर तुम उस मार्ग पर फेंक देना, जिस मार्ग से मातृभूमि पर अपना बलिदान देने के लिए अनेक वीर जाते हैं। अर्थात पुष्प की अभिलाषा उन कदमों तले कुचलने की है, जो कदम अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए बढ़ते जाते हैं।
इसी प्रकार यह कविता सामान्य जीवन से अधिक देश के लिए बलिदान देने में मनुष्य जीवन की सार्थकता मानती है।
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