Sanskrit varnamala

Sanskrit varnamala । संस्कृत वर्णमाला व उच्चारण स्थान । The Sanskrit Alphabet and The pronunciation of letters,

संस्कृत वर्णमाला  (The Sanskrit Alphabet)

Sanskrit varnamala : संस्कृत भाषा विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है । इसका साहित्य विश्व में प्रसिद्ध है । इस भाषा की वैज्ञानिकता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है । आज की पोस्ट में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे । 

Sanskrit varnamala

संस्कृत वर्णमाला-

वर्णमाला शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- वर्ण+माला , वर्ण= अक्षर और माला= समूह , अर्थात् वर्णो का समूह ही वर्णमाला कही जाती है । भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। इसी ध्वनि को ही वर्ण कहा जाता है । वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। संस्कृत भाषा में कुल 46 वर्ण होते हैं। जिसमें 13 स्वर33 व्यंजन हैं ।

# वर्ण भाषा की वह इकाई है जिसके और खण्ड नहीं हो सकते । वर्ण दो प्रकार के होते हैं-

स्वर-

स्वर वर्ण के उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं ली जाती, अर्थात् जिन वर्णों को स्वतंत्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं। । ये 13 स्वर इस प्रकार हैं-

सामान्य स्वर – 

मिश्रित स्वर  – 

Sanskrit varnamala

व्यंजन-

व्यंजन वर्ण स्वरों की सहायता से उच्चारित किए जाते हैं, ये कुल 33 हैं-

स्पर्श-वर्ण-

कवर्ग   क्  ख्  ग्  घ्  ङ्

 चवर्ग   च्  छ्  ज्  झ्  ञ्

 टवर्ग    ट्  ठ्  ड्  ढ्  ण्

 तवर्ग    त्  थ्  द्  ध्  न्

 पवर्ग    प्  फ्  ब्  भ्  म्

अन्तःस्थ –

य्  र्  ल्  व्

ऊष्म –

श् ष्  स्  ह्

विशेष-  इनके अतिरिक्त अनुस्वार (ं )  अनुनासिक (ँ ) उपूपध्मानीय, जिह्वामूलीय और विसर्ग (:) इनको अयोगवाह कहलाते हैं ।

Sanskrit varnamala

संयुक्त व्यंजन-

दो य दो से अधिक व्यंजन अक्षरों से मिलकर बने अक्षर को संयुक्त व्यंजन अक्षर कहते हैं । जैसे-

1.क्+ष् = क्ष्       2. त्+र् =त्र्     3. ज्+ञ् =ज्ञ्

संयुक्त व्यंजन

वर्णो के उच्चारण स्थान

मुख के जिस भाग से अक्षर का उच्चारण किया जाता है स्थान को उस अक्षर का उच्चारण स्थान कहते हैं ।

1. अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठ:-

अकार, कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार और विसर्जनीय का उच्चारण स्थान “ कण्ठ ” है ।

कण्ठ

2. इ-चु-य-शानां तालु-

इकार, चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार और शकार इनका “ तालु ” उच्चारण स्थान है ।

तालु

3. ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा-

ऋकार, टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ और षकार इनका “ मूर्धा ” उच्चारण स्थान है ।

मूर्धा

4. लृ-तु-ल-सानां दन्ता:-

लृकार, तवर्ग ( त, थ, द, ध, न ), लकार और सकार इनका उच्चारण स्थान “ दन्त ” है ।

दन्त

5. उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ-

उकार, पवर्ग ( प, फ, ब, भ, म ) और उपध्मानीय इनका उच्चारण स्थान “ ओष्ठ ” है ।

ओष्ठ

6. ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च-

ञकार-मकार-ङकार-णकार-नकार इनका उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

 

 

7. ऐदैतौ: कण्ठ-तालु:-

ए और ऐ का उच्चारण स्थान “ कण्ठ-तालु ” है ।

कण्ठ-तालु

8. ओदौतौ: कण्ठोष्ठम्-

ओ और औ का उच्चारण स्थान “ कण्ठ-ओष्ठ ” है ।

कण्ठ-ओष्ठ

8. ‘ व ’ कारस्य दन्तोष्ठम् –

वकार का उच्चारण स्थान “दन्त-ओष्ठ ” है ।

दन्त-ओष्ठ

9. जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् –

जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान “ जिह्वामूल ” है ।

10. अनुस्वारस्य नासिका-

अनुस्वार का उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

नासिका

11. (क, )(ख इति क-खाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्गसद्दशो जिह्वा-मूलीय:-

क, ख से पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ जिह्वामूलीय ” कहलाते है ।

12. (प, )(फ इति प-फाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्ग सदृश उपध्मानीय:-

प, फ के आगे पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ उपध्मानीय ” कहलाते है ।

धन्यवाद: ।

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