Satsangati Essay in Hindi- सत्संगति पर निबंध हिन्दी में
सत्संगति पर निबंध : In this article, we are providing Satsangati Essay in Hindi | Satsangati Par Nibandh सत्संगति पर निबंध | Nibandh in 100, 200, 300,400, 500 words For Students & Children.
दोस्तों आज हमने Satsangati | Essay on Satsangati in Hindi लिखा है, सत्संगति पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है।
Satsangati Essay in Hindi- सत्संगति पर निबंध हिन्दी में
Essay on Satsangati in Hindi- सत्संगति पर निबंध
मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि वह कभी अकेला रहना पसन्द नहीं करता। वह सुखपूर्वक जीवन बिताने के लिए अन्य मनुष्यों का संग ढूँढता है। मनुष्य वैसे भी सभी काम अकेला नहीं कर सकता, उसे अन्यों की सहायता लेनी पड़ती है; अतः वह उनका संग करता है। संग या साथ को ही संगति कहते हैं। संगति अच्छी हुई तो जीवन सुखपूर्वक चलता है, संगति बुरी हुई तो जीवन दुखपूर्ण हो जाता है। एक ही स्वाति बूंद केले के गर्भ में पड़कर कपूर बनती है, सीप में पड़कर मोती बनती है तो साँप के मुँह में पड़कर विष बन जाती है। इससे सिद्ध हुआ कि जैसी संगति में मनुष्य रहता है, उस पर उसका वैसा प्रभाव पड़ता है। अतः सत्संगति का ही सेवन करना चाहिए।
सत्संगति के अनेक लाभ हैं। सत्संगति बुद्धि की जड़ता दूर करती है; वाणी में सत्य को लाती है, कीर्ति बढ़ाती है, पाप दूर करती हैं, आत्मा को उच्च बनाती है तथा चित्त को प्रसन्न रखती है। जैसे पारस के छूने से लोहा सोना बन जाता है, ऐसे ही दुष्ट भी सत्संगति में रहकर सज्जन बन जाते हैं। जैसे पुष्प की संगति से कीड़ा भी देवता के मस्तक पर पहुँच जाता है और श्रेष्ठजनों द्वारा प्रतिष्ठित पाषाण भी देवता बनकर पूजा जाता है, चन्दन के पास रहने पर जैसे नीम में भी चन्दन की सुगन्ध आ जाती है। ऐसे ही सत्संगति व्यक्ति को महान् बना देती है।
महर्षि वाल्मीकि का पहला नाम रत्नाकर था। रत्नाकर ब्राह्मण था; किन्तु भीलों की संगति में रहकर डाकू बन गया। बाद में वही देवर्षि नारद की संगति से तपस्वी बनकर वाल्मीकि नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी प्रकार अंगुलिमाल नाम का भयंकर डाकू भगवान् बुद्ध की संगति पाकर महात्मा बन गया। सन्तों, महात्माओं और ज्ञानियों की संगति में रहने पर मनुष्य का उद्धार हो जाता है। इसके विपरीत यदि कुसंगति में रहेगा तो उसका पतन हो जायेगा, उसमें भी दुर्गुण आ जाएँगे। गधों के साथ रहने पर घोड़े भी दुलत्ती झाड़ना शुरू कर देते हैं। शराबियों, जुआरियों और डाकुओं के साथ रहकर मनुष्य वैसा ही बन जाता है ओर तक अनेक कष्ट पाता है।
अतः मनुष्य को चाहिए कि वह अपने उन्नति के लिए सत्संगति का ही सेवन करे; क्योंकि सत्संगति ही मानव को महान् बनाती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसीलिए कहा है “सत संगति मुद मंगल मूला।
Satsangati Par Nibandh- सत्संगति पर निबंध 400 words
सत्संगति का शाब्दिक अर्थ है ‘अच्छी संगति’। मानव के लिए समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने हेतु सत्संगति उतनी ही आवश्यक है जितनी कि जीवित रहने के लिए रोटी। वह शैशवकाल से ही उदर को भरने का प्रयास करता हैं, तब से ही उसे सत्संगति मिलनी चाहिए। जिससे वह अपनी अवस्थानुसार सत्कर्मों को कर सके और कुसंगति के भयानक पंजों से अपनी रक्षा कर सके। यदि बह ऐसा न कर सका तो शीघ्र ही बुरा बन जाता है। बुरे व्यक्ति का समाज में बिल्कुल भी सम्मान नहीं होता है। उसके कुकर्म उसके जीवन के लिए त्रिशुल बन जाते हैं। फिर वह गले-सड़े हुए फल के समान ही स्वजीवन का अन्त कर डालता है। अतः हर मानव को कुसंगति से बचना चाहिए। उसे अच्छाई, बुराई, धर्म-अधर्म, ऊँचे-नीचे, सत्य-असत्य और पाप-पुण्यों में से उसे चुनना चाहिएं, जिसके बल वह अपना जीवन सार्थक बना सके।
इस निश्चय के साथ ही उसे अपने पथ पर अविचल गति से अग्रसर होना चाहिए। सत्संगति ही उसकी सच्ची राह को प्रदर्शित करती है। उस पर चलता हुआ मानव देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है। इस राह में चलने वाले के सामने धर्म रोड़ा बन कर नहीं आता है। अतः उसे किसी तरह के प्रलोभनों से विचलित नहीं होना चाहिए।
कुसंगति, काम, क्रोध, लोभ, मोह और बुद्धि भ्रष्ट करने वालों की जननी है। इसकी सन्ताने सत्संगति का अनुकरण करने वाले को अपने जाल में फंसाने का प्रयास करती हैं। महाबली भीष्म, धनुर्धर द्रोण और महारथी शकुनि जैसे महापुरुष भी इसके मोह जाल में फंस कर राह से भटक गए थे। उनके आदर्शों का तत्काल ही हनन हो गया था । अतः हरेक हो चाहिए कि वह चन्दन वृक्ष के समान अटल रहे। जिस प्रकार विषधर दिन रात लिपटे रहने पर भी उस पर विष का प्रभाव नहीं डाल सकते, उसी प्रकार सत्संगति के राही का कुसंगति वाले कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं।
सत्संगति कुन्दन है। इसकी प्राप्ति के बाद काँच के समान मानव हीरे के समान चमक उठता है । अतः आज के युग में प्रगति की एक मात्र सीढ़ी सत्संगति ही है । मानव को सज्जन पुरुषों की संगति में ही रह कर अपनी जीवन रूपी नौका को समाज रूपी सागर में पार लगानी चाहिए। तभी वह आदर को प्राप्त कर सकता है।
Long Satsangati Essay in Hindi- सत्संगति पर निबंध हिंदी में
भूमिका
सत्संगति दो शब्दों के मेल से बना है- सद् और संगति। सद् का अर्थ है ‘अच्छी’ और संगति का अर्थ है ‘साथ’ । अच्छी संगति या अच्छे लोगों के साथ रहने को सत्संगति कहते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता है। उसे सूनेपन और अकेलेपन से बचने के लिए किसी न किसी की संगति चाहिए। अब विचारणीय प्रश्न है कि वह कैसे लोगों के साथ रहे और किनकी संगति में उठे-बैठे। सभी जानते हैं कि अच्छी संगति या सत्संगति ही मनुष्य के लिए कल्याणकारी है। कुसंगति से मनुष्य में अनेक दुर्गुण पैदा होते हैं।
सत्संगति के लाभ और महत्व
सत्संगति से अनेक लाभ हैं। जैसे पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है वैसे ही अच्छी संगति में रहने से बुरा से बुरा व्यक्ति भी चरित्रवान बन जाता है। सत्संगति को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता हैंआध्यात्मिक और सामाजिक। साधु-संतों की संगति से मनुष्य में सात्विक भाव पैदा होते हैं। हमारी भीतरी शक्तियाँ विकसित होती हैं, हमारा आत्मोत्थान होता है। हमारे भीतर जो अवगुण होते हैं वे दूर हो जाते हैं और सद्गुणों का विकास होता है। हमारे भीतर उदारता, करुणा, सहिष्णुता, परोपकारिता, निर्भयता आदि उत्तम गुण पैदा होते हैं।
चरित्रवान व्यक्ति की संगति से हम भी चरित्रवान बनते हैं। चरित्रवान व्यक्ति समाज में पूजनीय होता है। लोक उससे श्रद्धा रखते हैं। समाज में उसका आदर-सत्कार होता है। संसार में जितने महापुरुष हुए हैं वे सभी सच्चरित थे। सामाजिक संगति का अर्थ है कि समाज के अच्छे गुणों आदर्शों वाले व्यक्तियों के साथ रहें और उनके गुणों का अनुकरण करें। रहीम कवि ने संगति के बारे में ठीक ही कहा है-
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम अफसोस। ।
महिमा घटी समुद्र की, रावण बसा परोस।
बुरी संगति में रहने से किसी का भी कल्याण नहीं होता है। ऐसी संगति से मनुष्य को सदा बचना चाहिए। सत्संगति हमारे विकास का एक मात्र मार्ग हैं।
इतिहास साक्षी है कि सत्संगति से अनेक बुरे व्यक्ति अच्छे व्यक्ति बन गए। बाल्मीकि ऋषि के नाम से प्रसिद्ध रत्नाकर पहले डाकू था, किन्तु सत्संगति से वह विश्व ‘ का महान कवि बन गये। पुष्प की संगति में रहने वाला साधारण कीट-पतंग देवताओं के सिर पर सुशोभित होते हैं। तुलसीदास बचपन में उपेक्षित और प्रताड़ित थे, किन्तु साधु-संतों की संगति में रहकर महान, महात्मा और महाकवि बन गए। श्रेष्ठ जनों के साथ रहकर नीच व्यक्ति भी श्रेष्ठ बन जाता है। ..
कुसंगति से हानि
कुसंगति में रहने के कारण अनेक बालकों तथा युवकों का जीवन नष्ट हो जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि यदि हम अच्छे हैं तो हम पर बुरी संगति का प्रभाव नहीं पड़ेगा। वे कहते हैं- जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकै कुसंग। चन्दन विष व्यायत नहीं, लपटे रहते भुजंग। यह साधारण व्यक्तियों में नहीं लागू होती हैं। हाँ, कुछ असाधारण व्यक्ति हो सकते हैं जिन पर बुरी संगति का असर नहीं पड़ता। प्रायः साधारण व्यक्ति बुरी संगति में पड़कर धीरे-धीरे अपना जीवन नष्ट कर देता है। वर्तमान समाज में बुरे लोगों की बाढ़ आ गई है जबकि अच्छे लोगों का बहुत अभाव हो गया है। अतः हमें किनकी संगति करनी है, किनकी नहीं, इसे बहुत सावधानी से तय करने की आवश्यकता है।
उपसंहार
बचपन से ही हमें यह सावधानी रखने की आवश्यकता है कि हम अच्छे लोगों से मिले-जुलें उनके साथ उठे-बैठे और बुरे लोगों की संगति से बचें। सत्संगति में रहने के लिए हमें कष्ट उठाना पड़ेगा और इसके लिए परिश्रम करना पड़ेगा। बराइयों की ओर मनुष्य का चित्त शीघ्र आकर्षित होता है। इसके लिए मन को काबू में रखना थोड़ा कठिन होता है। लाख असुविधा होने पर भी हमें सत्संगति में रहना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है- “काजल की कोठरी में कैसेउ सयाने जाए। एक लीक लागि हैं पै लागि हैं।”
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इस लेख के माध्यम से हमने Satsangati Par Nibandh | Satsangati Essay in Hindi का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।
Satsangati ka mahatva
Essay on Satsangati Ka Mahatva in Hindi
Sangati Ka Prabhav
सत्संगति के या सत्संग के लाभ
Satsangati Ke Labh
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