उत्साह – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : कविता का भावार्थ

उत्साह – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला/utsah kavita/suraykant tripathi ki kavita utsah/Utsah kavita ka saar/उत्साह कविता का भावार्थ

उत्साह – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : कविता का भावार्थ : उत्साह – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला/utsah kavita/suraykant tripathi ki kavita utsah/Utsah kavita ka saar/उत्साह कविता का भावार्थ

उत्साह – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : कविता का भावार्थ

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुंघराले,
बाल कल्पना के से पाले,
विद्युत छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल गरजो!

उत्साह कविता की व्याख्या

प्रसंग:  प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज (भाग 2)’ में संकलित कविता ‘उत्साह’ से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी हैं। इस कविता में कवि ने बादल के माध्यम से पीड़ित मानव में उत्साह भरने का कार्य किया है।

भावार्थ: इस कविता में कवि ने बादल के बारे में लिखा है। कवि बादलों से गरजने का आह्वान करता है। कवि का कहना है कि बादलों की रचना में एक नवीनता है। काले-काले घुंघराले बादलों का अनगढ़ रूप ऐसे लगता है जैसे उनमें किसी बालक की कल्पना समाई हुई हो। उन्हीं बादलों से कवि कहता है कि वे पूरे आसमान को घेर कर घोर ढ़ंग से गर्जना करें। बादल के हृदय में किसी कवि की तरह असीम ऊर्जा भरी हुई है। इसलिए कवि बादलों से कहता है कि वे किसी नई कविता की रचना कर दें और उस रचना से सबको भर दें।

उत्साह कविता की व्याख्या

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

प्रसंग: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज (भाग 2)’ में संकलित कविता ‘उत्साह’ से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी हैं। इस कविता में कवि ने बादल के माध्यम से पीड़ित मानव में उत्साह भरने का कार्य किया है। इन पंक्तियों में कवि बादल से बरस कर तप्त धरा व  मानवों को शीतल करने का आह्वान कर रहा है।

भावार्थ: इन पंक्तियों में कवि ने तपती गर्मी से बेहाल लोगों के बारे में लिखा है। सभी लोग तपती गर्मी से बेहाल हैं और उनका मन कहीं नहीं लग रहा है। ऐसे में कई दिशाओं से बादल घिर आए हैं। कवि उन बादलों से कहता है कि तपती धरती को अपने जल से शीतल कर दें।

उत्साह कविता का काव्य सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य :

यहां कवि ने बादल को गरजने के लिए आह्वान किया है, क्योंकि वह संपूर्ण वातावरण में जोश, उत्साह और क्रांति उत्पन्न कर सकता है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने तत्सम व तद्भव शब्दावली युक्त साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है। भाषा ओजपूर्ण युक्त तथा वीर रस प्रधान है। संबोधन शैली में रचित यह पंक्तियां छंद मुक्त हैं। व्यंजना शब्द-शक्ति की प्रधानता है। नाद व दृश्य बिंब का प्रयोग दर्शनीय है।

उत्साह कविता के अभ्यास के प्रश्न :-

प्रश्न: कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?

उत्तर: कवि का मानना है कि केवल रिमझिम बारिश से काम नहीं चलने वाला है। कवि तो चाहता है कि प्रचुर मात्रा मे बारिश हो जिससे उसका सबसे अधिक फायदा मिल सके। इसलिए वह बादलों से गरजने के लिए कहता है।

प्रश्न: कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है?

उत्तर: यह कविता उस उत्साह को चित्रित करता है जिस उत्साह से हर भारतीय मानसून का इंतजार और स्वागत करता है। मानसून का हमारी अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिए बहुत महत्व है। इसलिए इस कविता का शीर्षक उत्साह रखा गया है।

प्रश्न: कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?

उत्तर: इस कविता में बादल कई अर्थों की ओर संकेत करता है; जैसे कि कोई अनगढ़ बालक, कोई नवीन रचना या फिर कोई अनजान दिशा से आया पथिक।

प्रश्न: शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।

उत्तर: विद्युत छबि, बज्र, इत्यादि ऐसे शब्द हैं जिससे नाद सौंदर्य का भाव मिलता है।

उत्साह कविता के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएं:

काव्य शिल्प का अर्थ है – कविता का कला पक्ष। इसे हम अभिव्यक्ति पक्ष भी कहते हैं। निराला जी ने इन कविताओं में संस्कृत निष्ठ तत्सम प्रधान साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है।  कवि का शब्द चयन सर्वथा उचित और सटीक है।  लेकिन कहीं-कहीं वे ठेठ ग्रामीण शब्दों का प्रयोग करते हैं । कवि ने इन कविताओं में नाद सौंदर्य का विशेष ध्यान रखा है।  गीती शैली की सभी विशेषताएं जैसे यथार्थ, अनुभूति, गेयता, प्रभाहमयी भाषा इन कविताओं में देखी जा सकती है।

यही नहीं छायावादी कविताएं होने के कारण कवि ने सांकेतिक तथा प्रतीकात्मक शब्दावली का भी प्रयोग किया है। मुक्त छंद में रचित इन कविताओं में निराला जी ने अनुप्रास, पुनरुक्ति-प्रकाश, उपमा, विशेषोक्ति एवं मानवीकरण अलंकारों का सफल प्रयोग किया है।

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