उदारीकरण क्या है ?
उदारीकरण क्या है ?: व्यवस्था से अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाकर उसे उदारवादी बनाने की प्रक्रिया उदारीकरण कहलाती है। आर्थिक उदारीकरण की बात करे तो इसका अर्थ व्यापार को अनावश्यक प्रतिबंधों से मुक्त करना है। नियम कानूनों को सरल बनाना ताकि स्वंतंत्र बाजार व्यवस्था का निर्माण किया जा सके।
उदारीकरण क्या है ?
आर्थिक उदारीकरण क्या है ?
आर्थिक उदारीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत व्यापार का सरलीकरण किया जाता है। व्यापारियों को एक स्वंतंत्र माहौल प्रदान किया जाता है जिसमे वे बाजार कारकों के अनुसार नीतिगत फैसले कर सके और उत्पादों के दाम तय कर सके। उदारीकरण प्रक्रिया के तहत सरकार अर्थव्यवस्था की गतिविधियों मे अपने हस्तक्षेप को कम कर देती है। अर्थव्यवस्था को सभी के लिए खोल दिया जाता है और बाजार पूरी तरह से मांग और पूर्ति पर आधारित रहते है।
बीते कुछ दशकों मे आर्थिक उदारीकरण नीति के कारण अंतराष्ट्रीय व्यापार मे काफी वृद्धि देखने को मिली है। साल 1948 और 1997 के बीच अंतरष्ट्रीय व्यापार मे औसतन ६ प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा मिला और विदेशी मुद्रा भंडार मे अभूतपूर्व वृद्धि हुई। उदारीकरण नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को भूमंडलीकरण की तरफ प्रोत्साहित किया है।
उदारीकरण की विशेषता क्या है ?
1) व्यापारिक प्रतिबंधों का उन्मूलन : उदारीकरण नीति के तहत व्यापारिक प्रतिबंधों का उन्मूलन किया जाता है। ऐसे नियमों और कानूनों को रद्द किया जाता है जो अर्थव्यवस्था के विकास मे रुकावटे उत्पन्न करते है।
2) निजीकरण को बढ़ावा : अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण को धीरे धीरे कम किया जाता है। निजीकरण प्रक्रिया के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों , उद्यमों और संस्थानों मे सरकारी स्वामित्व को निजी क्षेत्र मे परिवर्तित किया जाता है।
3) करों मे रियायत :व्यापारिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार व्यापरिक करों मे रियायत प्रदान करती है। टैक्स रिबेट, टैक्स पर छूट, टैक्स डिडक्शन जैसे रियायतों द्वारा सरकार बाजार मे व्यापार के लिए सकारत्मक माहौल बनाने का प्रयास करती है।
4) सीमा शुल्क मे कटौती : अंतराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार आयात और निर्यात के सीमा शुल्क मे कटौती करती है। निर्यात उद्योगों से जुडी इकाइयों को निर्यात सहायता राशि देकर प्रोत्साहित किया जाता है। श्रेष्ठ गुणवत्ता और उत्तम तकनिकी आयात करने के लिए आयात शुल्क मे कमी की जाती है।
5) मुक्त बाजार व्यवस्था : उदारीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत मुक्त बाजार व्यवस्था का निर्माण होता है। मुक्त बाजार व्यवस्था ऐसी व्यवस्था है जिसमे पदार्थों की कीमत पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहता है। ऐसी व्यवस्था जिसमे उत्पादों और सेवाओं की कीमत बाजार की मांग और पूर्ति पर निर्भर करती है।
उदारीकरण के लाभ और हानि क्या है?
हर सिक्के के दो पहलू होते है। उसी प्रकार उदारीकरण प्रक्रिया के भी दोनों पहलुओं को समझना जरुरी है। आर्थिक उदारीकरण राष्ट्र के विकास की गति को तेजी प्रदान करता है। लेकिन इसी के साथ इस नीति से अर्थव्यवस्था को कुछ नुकसान भी झेलने पड़ते है। भारतीय अर्थव्यवस्था को मद्देनजर रखते हुए उदारीकरण नीति के लाभ और हानि को समझने का प्रयास करते है।
उदारीकरण के लाभ :
विदेशी निवेश मे वृद्धि : उदारीकरण नीति का सबसे अधिक सकारत्मक प्रभाव विदेशी निवेश पर पड़ता है। निवेशक ऐसी अर्थव्यवस्था को आकर्षक समझते है जो बाजार प्रणाली पर निर्भर हो और जिसमे सरकारी नियंत्रण न्यूनतम हो।
जीडीपी विकास दर मे वृद्धि : सामान्यता उन राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है जिन्होंने आर्थिक उदारीकरण की नीति को अपनाया है। भारत , दक्षिण अफ्रीका और चीन जैसे राष्ट्रों ने आर्थिक उदारीकरण प्रक्रिया को अपनाया। आज ये सभी देश विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।
आधुनिकरण : उदारीकरण नीति अर्थव्यवस्था को वैश्वीकरण की तरफ उन्मुख करती है। वैश्वीकरण के चलते न केवल दो राष्ट्रों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित होते है बल्कि व्यापार के आधुनिक तौर तरीकों का भी आदान प्रदान होता है।
उच्च तकनीक और श्रेष्ठ गुणवत्ता : वैश्वीकरण के इस दौर मे उदारीकरण नीति से अंतरष्ट्रीय व्यपार को प्रोत्साहन मिलता है। विश्व के साधन संपन्न राष्ट्र व्यापारिक मार्गों से उच्च तकनीक भी साथ लाते है। उद्योगों मे उच्च स्तर की तकनिकी वृद्धि से उत्पादों की गुणवत्ता मे भी सुधार होता है।
मंदी पर लगाम : उदारीकरण प्रक्रिया के तहत सरकार व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन प्रकार के टैरिफ मे छूट देती है। जिसके कारण उत्पादन की लागत कम हो जाती है। इसलिए उत्पादों के दाम भी कम होते है। दूसरी तरफ उदारीकरण प्रक्रिया के कारण बाजार मे प्रतिस्पर्धा के अवसर बढ़ते है जिसका परिणाम भी उत्पादों के दामों मे कमी आती है।
उदारीकरण से हानि :
कुटीर और लघु उद्योगों को नुकसान : उदारीकरण नीति का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव छोटे, लघु और कुटीर उद्योगों पर होता है। उदारीकरण व्यवस्था से बड़े उद्योग और बहुराष्ट्रीय उद्योगों का विकास हुआ किन्तु आर्थिक तौर पर पिछड़े छोटे और लघु उद्योगों बुरी तरह से प्रभावित हुए।
कृषि क्षेत्र के अस्तित्व को खतरा : अगर भारत के आर्थिक उदारीकरण नीति की बात करे तो इससे निर्माण और सेवा क्षेत्र का विकास हुआ है। किन्तु आंकड़े बताते है की उदारीकरण प्रक्रिया के बाद कृषि क्षेत्र की स्थिति पहले से भी दयनीय हो गयी है। नयी व्यपार नीति के चलते उद्योग कारखाने की संख्या से बढ़ी नतीजन कृषि क्षेत्र से लोग अधिक आमदनी के लिए बड़े शहरों की तरफ चले गए।
पर्यवरण को नुकसान : आर्थिक उदारीकरण के चलते उद्योगों और कारखानों की संख्या मे भारी इजाफा हुआ। कारखानों मे काम काज के चलते प्रदुषण भी पहले से अधिक तेजी से बढ़ रहा है। नए उद्योगों के लिए जमीन की मांग बढ़ रही है जिसके कारण पेड़ों की कटाई हो रही है। आधुनिकरण के चलते हानिकारक उर्वकों का उपयोग हो रहा है जिससे जमीन प्रदूषित हो रही है।
उदारीकरण की आवश्यकता क्या है ?
हमने उदारीकरण की परिभाषा समझा। उदारीकरण निति से होने वाले आर्थिक और सामाजिक लाभ और हानि को समझा। किन्तु प्रश्न उठता है की क्या अर्थव्यवस्था के लिए उदारीकरण आवश्यक है ?
अगर वर्तमान समय को देखा जाए तो कहना गलत नहीं होगा की मुक्त बाजार व्यवस्था ही सबसे व्यवस्था सबसे उत्तम है। निमिन्लिखित बिंदुओं से उदारीकरण की आवश्यकता को समझते है :
- वर्तमान समय भूमंडलीकरण का है। आज पूरी दुनिया एक बाजार बन कर सिमट गयी है। ऐसी परिस्थतियों मे अर्थव्यवस्था का सरलीकरण अत्यंत जरुरी है। आज सभी राष्ट्रों को दुनिया के साथ कदम मिलका कर चलना होगा। इसलिए उदारीकरण की नीति आज के समय की मांग है।
- विकसित राष्ट्रों के लिए उदारीकरण नीति सबसे ज्यादा प्रभावशाली साबित हुई है। चीन , भारत , दक्षिणा अफ्रीका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने आर्थिक उदारीकरण को अपनाया और आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गए है। इसलिए कहना गलत नहीं होगा की विकसित देशों के लिए उदारीकरण नीति संजीवनी बूटी से कम नहीं है।
- उदारीकरण प्रक्रिया के द्वारा वैश्वीकरण को बढ़ावा मिलता है। पूंजी और साधन संपन्न राष्ट्र आर्थिक तौर पर पिछड़े देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करते है। परिणामस्वरूप इन गरीब देशों मे पूंजी प्रवाह होता है और इन्हे विकसित होने का अवसर प्राप्त होता है।
- आर्थिक उदारीकरण का सबसे बड़ा लाभ उपभोक्ता वर्ग को मिलता है। एक तरफ व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के बढ़ने के कारण उन्हें विकल्प भी मिल जाता है। तो दूसरी तरफ पदार्थों की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर मिलती है। अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के चलते दामों मे गिरावट होती भी होती है। इसलिए उपभोक्ता के लिए तो दोनों हाथों मे लड्डू और मुँह मे खीर वाला अवसर है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर उदारीकरण का प्रभाव :
भारतीय अर्थव्यवस्था समाजवाद और पूंजीवाद का मिश्रण है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था को मिश्रित अर्थव्यवस्था की श्रेणी मे रखा जाता है। भारत मे आर्थिक उदारीकरण की शरुवात साल 1991 से हुई थी। खस्ता अर्थव्यवस्था की हालत से उबरने के लिए सरकार ने नयी आर्थिक नीति अपनायी। इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था को ज्यादा उदार बनाया गया। सार्वजनिक उद्योगों को निजी निवेश के लिए खोल दिया गया। इस प्रकार पूरी अर्थव्यवस्था का रूपांतरण किया गया। आजाद भारत के इतिहास मे यह सबसे बड़ा आर्थिक फैसला था।
लाइसेंस परमिट की व्यवस्था को समाप्त किया और व्यापारिक नियमों का सरलीकरण किया गया। उदारीकरण किस प्रकार अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित रही यह निमिनलिखित बिंदुओं से समझते है :
अर्थव्यवस्था का आकार: साल 1991 से पहले भारत की आर्थिक परिस्थियाँ काफी कमजोर हो गयी थी। उस समय भारत के सरकारी कोष मे केवल अगले २ हफ़्तों के निर्यात बिल चुकाने की क्षमता बची थी। उदारीकरण नीति को अपनाने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था उत्तरोतर बढ़ती चली गयी। आज भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
राजकोषीय घाटा : जब सरकार का खर्चा उसकी आमदनी से ज्यादा हो जाता है तो इसे बजट घाटा कहते है। साल 1990-91 मे देश का बजट घाटा जीडीपी का 8.5 फीसदी था। वर्तमान समय मे यह 3.5 से 4 फीसदी के आस पास रहता है।
गरीबी रेखा: नयी आर्थिक नीति अपनाने के बाद देश मे गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या मे कमी आयी। साल 1993 मे 45 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले थे। साल 2011 मे यह आंकड़ा 22 प्रतिशत पर आ गया।
जीडीपी मे वृद्धि: साल 1991 मे भारत की जीडीपी 5,86,212 लाख करोड़ थी। जो 2015-16 मे बढ़कर 1,35,76,086 लाख करोड़ के पार पहुँच गयी है।
विदेशी निवेश मे वृद्धि: साल 1991 मे भारत मे कुल 7 करोड़ डॉलर का विदेशी निवेश हुआ था। जो आज 60 अरब डॉलर से भी ज्यादा हो गया है।
बजट अकार मे विस्तार : साल 1991 मे भारत के बजट का आकार १ लाख करोड़ रुपए का था। साल २०१७ तक अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ और बजट का आकार २० लाख करोड़ से भी ज्यादा हो गया।
विदेशी मुद्रा भण्डार: साल 1991 मे भारतीय मुद्रा भंडार केवल 1 अरब डॉलर पर था। साल 2017 मे मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर के पार गया।
विदेशी ऋण: जीडीपी के अनुपात मे विदेशी ऋण का प्रतिशत घटा है। साल 1991 मे यह संख्या 38% थी तो 2015 तक यह 24 % पर आ गयी।
उदारीकरण प्रक्रिया के अंतर्गत उठाये गए कुछ महत्वपूर्ण कदम :
- अर्थव्यवस्था के अधिकतर क्षेत्रों मे व्यापारिक लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया
- पूंजी संग्रह पर सीमाएं हटाई गयी
- अधिकतर सामान के आयात करने के लिए लाइसेंस व्यवस्था समाप्त की गयी
- व्यापार पर लगने वाले टैरिफ दरों को कम किया गया
- निजी क्षेत्र के अर्थव्यवस्था को खोल दिया गया
- विदेशी निवेश को प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया गया
यह भी पढ़े :
भारत में हरित क्रांति और उसके प्रभाव
1 thought on “उदारीकरण क्या है ?”