उत्सर्जन किसे कहते हैं ? मानव वृक्क की संरचना एवं वृक्क की क्रियाविधि
उत्सर्जन किसे कहते हैं? शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में अनेक अपशिष्ट या वर्ज्य पदार्थ बनते हैं । इनका शरीर में कोई उपयोग नहीं होता । कभी – कभी तो ये अत्यधिक विषैले भी हो सकते हैं ।
उत्सर्जन किसे कहते हैं?
शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में अनेक अपशिष्ट या वर्ज्य पदार्थ बनते हैं । इनका शरीर में कोई उपयोग नहीं होता । कभी – कभी तो ये अत्यधिक विषैले भी हो सकते हैं । विषैले न होने पर भी अपशिष्ट पदार्थ कोशिकाओं में संचित नहीं किये जा सकते , अत : उनको शरीर से बाहर निकालना ही आवश्यक होता है । अपशिष्ट पदार्थो को शरीर से बाहर निकालना ही उत्सर्जन ( excretion ) कहलाता है ।
प्रमुख उत्सर्जी अंग मानव शरीर में प्रमुख उत्सर्जी अंग एक जोड़ी वृक्क ( kidneys ) होते हैं । वृक्कों के अतिरिक्त मनुष्य में यकृत , त्वचा , फेफड़े और आंत भी उत्सर्जन में मदद करते है ।
मानव वृक्क की संरचना
मानव शरीर में वृक्क ( kidneys ) मुख्य उत्सर्जी अंग होते हैं । इनका कार्य रुधिर से यूरिया व यूरिक अम्ल आदि उत्सर्जी पदार्थों को छानकर अलग करना तथा उन्हें मूत्र ( urine ) के रूप में शरीर से बाहर निकालना है ।

मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क , सेम के बीज की आकृति वाले होते हैं । ये उदरगुहा में कशेरुक दण्ड के दोनों ओर ( दायें व बाये ) स्थित होते हैं । बायाँ वृक्क दायें वृक्क से कुछ नीचे ( पश्च ) स्थित होता है । प्रत्येक वृक्क का अन्दर का किनारा मध्य में धंसा हुआ होता है ।
इसे नाभि ( hilum ) कहते हैं । बाहरी किनारा उभरा या उत्तल होता है । प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा , 6 सेमी चौड़ा और 2.5 सेमी मोटा होता है । पुरुष के वृक्क का भार लगभग 150 ग्राम , किन्तु स्त्री में कम होता है । वृक्क के ऊपर अधिवृक्क ग्रन्थि पायी जाती है ।
वृक्क की आन्तरिक संरचना
आन्तरिक संरचना में वृक्क दो स्पष्ट भागों में बँटा होता है – बाहरी गहरे रंग का कॉर्टेक्स ( cortex ) तथा भीतरी हल्के रंग का मेड्यूला ( medulla ) | वृक्क का मध्य भाग खोखला ( hollow ) होता है । यह भाग क्रमशः सँकरा होकर भीतरी किनारे पर अधिक संकरा होकर शीर्षगुहा या श्रोणि ( jelris ) बनाता है ।
मेड्यूला कुछ शंक्वाकार पिरामिड जैसे उभारों में श्रोणि की ओर उभरा रहता है । श्रोणि से ही मूत्रवाहिनी ( ureter ) निकलती है । वृक्क में अनगिनत वृक्क नलिकायें या नेफ्रॉन्स ( uriniferous tubules or hephrons ) होती हैं ।
प्रत्येक नलिका के सिरे पर एक ग्रन्थि के समान भाग होता है , इसको मैलपीघी कणिका ( malpighian corpuscle ) कहते हैं । मैलपीघी कणिका में भी दो भाग होते हैं । अन्दर केशिकाओं का जाल , केशिकागुच्छ या ग्लोमेरूलस ( glonerulus ) तथा बाहर एक कप जैसा बोमेन्स सम्पुट ( Howrman’s capsule ) /
इसके बाद नलिका को कई भागों में बाँट सकते हैं ; जैसे — समीपस्थ कुण्डलित नलिका , हेनले का लूप तथा दूरस्थ कुण्डलित नलिका । प्रत्येक नलिका के बोमेन सम्पुट में जो रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है ,
वह एक अभिवाही रुधिर केशिका से बनता है , बाद में , एक अपेक्षाकृत संकरी अपवाही रुधिर केशिका सम्पुट से निकलने के पश्चात् नलिका के अन्य भागों पर जाल बनाती है।
इन केशिकाओं में बहने वाले रुधिर से वृक्क नलिका में मूत्र छनता है । दूरस्थ कुण्डलित नलिकायें संग्रह नलिका में खुलती हैं और कई संग्रह नलिकायें मिलकर मोटी संग्रह नलिका में खुलती हैं , जो श्रोणि या पेल्विस में खुलती है ; यहीं से मूत्रवाहिनी निकलती है ।
वृक्क की क्रिया – विधि
वृक्कों का प्रमुख कार्य शरीर के उत्सर्जी पदार्थों ; जैसे — यूरिया , यूरिक अम्ल आदि को रुधिर से अलग कर मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालना है ।
इसके अतिरिक्त वृक्क रुधिर में उपस्थित अतिरिक्त जल व लवणों को भी शरीर से निकालकर जल सन्तुलन और लवण सन्तुलन को बनाये रखते हैं । वृक्क नलिका की मैलपीघी कणिका में उपस्थित केशिकाओं के जाल , केशिकागुच्छ में एक अपेक्षाकृत चौड़ी रुधिर वाहिनी से रुधिर प्रवेश करता है ।
केशिकाओं के जाल के बाद रुधिर को केशिकागुच्छ से बाहर लाने वाली रुधिर वाहिनी अपेक्षाकृत सँकरी होती है ; अत : केशिकागुच्छ में जितना रुधिर प्रवेश करता है , उतना बाहर नहीं निकलता , जिसके फलस्वरूप यहाँ रुधिर का दाब बढ़ जाता है ।
इस अधिक दाब पर रुधिर कोशिकाओं व प्रोटीन को छोड़कर रुधिर का अधिकांश भाग केशिकागुच्छ की पतली भित्ति से छनकर सम्पुट में आ जाता है ।
इस छने हुए द्रव में अधिकांश जल तथा अन्य घुलनशील पदार्थ ; जैसे यूरिया , यूरिक अम्ल , ग्लूकोज , अनेक लवण आदि होते हैं । छनने की इस क्रिया को अतिसूक्ष्म निस्यन्दन ( ultrafiltration ) कहते हैं ।
जब यह छना हुआ द्रव वृक्क नलिका के कुण्डलित भाग में आगे बढ़ता है , तो उस भाग की रुधिर केशिकायें इसमें उपस्थित लाभप्रद पदार्थों ; जैसे – ग्लूकोज , कुछ लवण , जल आदि को अवशोषित करके पुन : रुधिर में पहुँचा देती हैं ।
धीरे – धीरे वृक्क में यूरिया , यूरिक अम्ल , कुछ जल व अन्य हानिकारक लवण रह जाते हैं , यह मूत्र ( urine ) कहलाता है । मूत्र वृक्क नलिका से संग्राहक नलिकाओं में होता हुआ मूत्रवाहिनी में पहुँच जाता है । मूत्रवाहिनी द्वारा मूत्र , मूत्राशय में पहुँच जाता है और समय – समय पर मूत्रमार्ग से बाहर निकाल दिया जाता है ।
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उत्सर्जन किसे कहते हैं?
शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में अनेक अपशिष्ट या वर्ज्य पदार्थ बनते हैं । उन अपशिष्ट पदार्थो को शरीर से बाहर निकालना ही उत्सर्जन ( excretion ) कहलाता है ।
मनुष्य में कितने जोड़ी वृक्क होते है?
मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क होते है ।
वृक्क का मुख्या कार्य क्या होता है ?
वृक्कों का प्रमुख कार्य शरीर के उत्सर्जी पदार्थों ; जैसे — यूरिया , यूरिक अम्ल आदि को रुधिर से अलग कर मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालना है ।
वृक्क कहाँ पाया जाता है?
मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क , सेम के बीज की आकृति वाले होते हैं । ये उदरगुहा में कशेरुक दण्ड के दोनों ओर ( दायें व बाये ) स्थित होते हैं ।
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